📍नई दिल्ली | 8 Sep, 2025, 1:05 PM
Indian Army Drone Shield: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने के लिए ड्रोनों का सहारा लिया था। सैकड़ों सर्विलांस और अटैक ड्रोन भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे, जिन्हें भारतीय सेना ने अपनी एयर डिफेंस गनों और सिस्टम की मदद से मार गिराया। इसके बावजूद, भारतीय सेना ने इस अनुभव से यह सीखा कि भविष्य में ड्रोन वॉरफेयर और भी बड़े खतरे के रूप में सामने आ सकते हैं। अब सेना अपनी ड्रोन शील्ड यानी एरियल सर्विलांस और सिक्योरिटी सिस्टम को और मजबूत बनाने जा रही है।
Indian Army Drone Shield: नया रडार सिस्टम खरीदने की तैयारी
सूत्रों के अनुसार, भारतीय सेना उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर एरियल सर्विलांस की क्षमता बढ़ाने के लिए एडवांस्ड रडार सिस्टम खरीदने की तैयारी कर रही है। यह रडार सिस्टम ऐसे एरियल ऑब्जेक्ट्स की भी पहचान सकेंगे जिनका रडार क्रॉस-सेक्शन (RCS) बहुत कम होता है, और जो आम रडार पर आसानी से पकड़ में नहीं आते। इन रडारों को आकाशतीर (Akashteer) एयर डिफेंस नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। इससे सेना के कमांडर को आसमान की साफ तस्वीर मिलेगी और दुश्मन के ड्रोन या हवाई खतरे का तेजी से जवाब दिया जा सकेगा। जिसके बाद ऐसे ड्रोन या यूएवी भी ट्रैक हो सकेंगे जिन्हें पहले पहचानना मुश्किल था।
Indian Army Drone Shield: रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन और प्रपोजल जारी
सेना ने इस दिशा में औपचारिक प्रक्रिया शुरू कर दी है। दो अलग-अलग रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (RFI) जारी किए गए हैं। इसके तहत 45 तक लो लेवल लाइट वेट रडार-एन्हांस्ड (LLLR-E) और 48 एयर डिफेंस फायर कंट्रोल रडार-ड्रोन डिटेक्टर (ADFCR-DD) की मांग की गई है। इसके अलावा, एक रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) भी जारी किया गया है, जिसमें 10 लो लेवल लाइट वेट रडार-इम्प्रूव्ड (LLLR-I) मांगे गए हैं।
Indian Army Drone Shield: क्या है LLLR-I की क्षमता
LLLR-I एक थ्री-डायमेंशनल यानी 3D एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैनड अरे (AESA) रडार होगा। इसमें कमांडर का डिस्प्ले यूनिट, टारगेट डेजिग्नेशन सिस्टम और पावर सप्लाई यूनिट होगी। यह किसी भी इलाके में काम करने में सक्षम होगा, चाहे वह पहाड़ हो, ऊंचाई वाला क्षेत्र हो, रेगिस्तान हो या समुद्र तटीय इलाका हर जगह ये काम करेगा। इसकी क्षमता होगी कि यह 50 किलोमीटर के दायरे में सभी एरियल टारगेट्स की पहचान सके और एक साथ 100 से ज्यादा टारगेट्स को ट्रैक कर सके।
लो लेवल लाइट वेट रडार-एन्हांस्ड LLLR-E की खूबियां
LLLR-E यानी लो लेवल लाइट वेट रडार-एन्हांस्ड रडार में भी 3D स्कैनिंग की क्षमता होगी, लेकिन इसमें इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल ट्रैकिंग सिस्टम (EOTS) और पैसिव रेडियो-फ्रीक्वेंसी डिटेक्शन सिस्टम भी जोड़ा जाएगा। इससे यह छोटे ड्रोन या ड्रोन स्वार्म्स को भी पकड़ सकेगा और 10 किलोमीटर दूर तक टारगेट डेटा वेपन सिस्टम को भेज सकेगा। इसमें दिन-रात ट्रैकिंग की क्षमता में बढ़ोतरी होगी।
Indian Army Drone Shield: एयर डिफेंस फायर कंट्रोल रडार-ड्रोन डिटेक्टर
एयर डिफेंस फायर कंट्रोल रडार-ड्रोन डिटेक्टर (ADFCR-DD) में सर्च रडार, ट्रैक रडार, फायर कंट्रोल सिस्टम और आइडेंटिफिकेशन फ्रेंड-ऑर-फो (IFF) जैसी सुविधाएं होंगी। यह पूरा सिस्टम एक व्हीकल पर लगाया जाएगा और कम से कम दो L-70 एयर डिफेंस गनों को कंट्रोल कर सकेगा। यानी यह सिस्टम मोबाइल प्लेटफॉर्म पर माउंट होगा जिसमें सर्च रडार, ट्रैक रडार, फायर कंट्रोल सिस्टम और आइडेंटिफिकेशन फ्रेंड-ऑर-फो (Identification Friend-or-Foe – IFF) क्षमता होगी। साथ ही यह डेटा बहुत शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (VSHORADS) तक भी भेजेगा, ताकि दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलों को पहले ही रोका जा सके।
India-China: मोदी-शी के बीच तियानजिन में हालिया मुलाकात के बाद भी सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि मौजूदा हालात में भी सीमा पर कोई कमी नहीं की जाएगी। वहीं सीमा पर विंटर डिप्लॉयमेंट पहले की तरह जारी रहेगाhttps://t.co/8q13ut9Xtq#Ladakh #IndianArmy #China #LAC #ModiXi #EasternLadakh…
— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) September 8, 2025
Indian Army Drone Shield: ऑपरेशन सिंदूर से मिले अनुभव
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने बड़े पैमाने पर स्वार्म ड्रोन का इस्तेमाल किया था। इनका लक्ष्य था भारतीय सेना के ठिकानों और नागरिक प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाना। लेकिन भारतीय सेना की L-70, ZU-23 और शिल्का जैसी एयर डिफेंस गनों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और बड़ी संख्या में ड्रोन गिराए। सेना का मानना है कि अगर इन गनों को आधुनिक फायर कंट्रोल रडार सिस्टम के साथ जोड़ा जाए तो और भी अधिक प्रभावी तरीके से इन खतरों को खत्म किया जा सकेगा।
L-70 गन को अपग्रेड करने की तैयारी
भारतीय सेना अब ऐसा नया फायर कंट्रोल सिस्टम चाहती है जो कई रडार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सिस्टम से डेटा प्रोसेस कर सके। यह सिस्टम फायरिंग सॉल्यूशन तैयार करेगा और यह जानकारी गनों और शोल्डर-फायर एयर डिफेंस मिसाइलों दोनों तक पहुंचाएगा। इसका फायदा यह होगा कि दुश्मन के छोटे से छोटे निगरानी ड्रोन या अटैक UAV को भी समय रहते निशाना बनाया जा सकेगा।
L-70 एयर डिफेंस गन ऑपरेशन सिंदूर में वरदान साबित हुई थी। लेकिन यह गन 20-25 साल पुरानी तकनीक पर आधारित है। अब सेना इसे अपग्रेड कर रही है ताकि यह नई पीढ़ी के खतरों से भी निपट सके। नया फायर कंट्रोल रडार सिस्टम खासतौर पर ड्रोन की पहचान करने और उन्हें तुरंत निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया जा रहा है। सेना के पास वर्तमान में लगभग 800 L-70 गन मौजूद हैं। इनके लिए नए रडार सिस्टम तैयार किए जाएंगे जो कम से कम दो गनों को एक साथ कंट्रोल कर सकें। इससे दुश्मन के ड्रोन को डिटेक्ट करने और उन्हें गिराने में लगने वाला समय बहुत कम हो जाएगा।
भारतीय सेना ने इस बार साफ किया है कि नए सिस्टम को पूरी तरह स्वदेशी रक्षा उद्योग से ही खरीदा जाएगा। पहले सेना ने विदेशी फायर कंट्रोल सिस्टम खरीदे थे जिनमें रूस और हॉलैंड से लिए गए उपकरण शामिल थे। लेकिन ये सिस्टम 70 और 90 के दशक के थे और पूरी तरह डिजिटल नहीं थे। अब सेना चाहती है कि नए सिस्टम अत्याधुनिक हों और ड्रोन सहित सभी प्रकार के हवाई खतरों को डिटेक्ट कर सकें।
ऑपरेशन सिंदूर में आकाशतीर प्रोजेक्ट
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान आकाशतीर प्रोजेक्ट ने भी अपनी क्षमता दिखाई। यह प्रोजेक्ट सभी एयर डिफेंस सेंसर्स को एक नेटवर्क में जोड़ता है। इससे सेना के पास देश के हवाई क्षेत्र की पूरी तस्वीर उपलब्ध हो जाती है। आकाशतीर प्रोजेक्ट का लगभग 60 फीसदी काम ऑपरेशन सिंदूर तक पूरा हो चुका था। इसके तहत अब तक 275 सिस्टम डिलीवर हो चुके हैं और 455 सिस्टम की जरूरत है। इस प्रोजेक्ट से सेना के एयर डिफेंस नेटवर्क को रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस मिलती है।
पहले अलग-अलग रडार सिस्टम से मिली जानकारी को ऑपरेटरों को खुद एनालाइज करना पड़ता था। इसमें समय लगता था और कॉर्डिनेशन में देरी होती थी। लेकिन अब आकाशतीर सिस्टम सभी रडार से डेटा लेकर उसे तुरंत एनालाइज कर देता है और एकीकृत तस्वीर कमांडरों को दिखाता है। इससे दुश्मन के हवाई हमलों का मुकाबला करने में ज्यादा तेजी आती है।