📍नई दिल्ली | 6 Oct, 2025, 10:26 PM
Indian Army Artificial Intelligence: भारतीय सेना अब पारंपरिक लड़ाई की सीमाओं से बाहर निकलकर अब डिजिटल नेटवर्क, ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर फोकस कर रही है। सेना के मॉडर्नाइजेशन में तकनीक बड़ा रोल रहा है। जिस समय दुनिया भर की सेनाएं अपने स्ट्रक्चर में नई तकनीक को तेजी से शामिल कर रही हैं, तो भारतीय सेना ने भी अपनी क्षमताओं को आधुनिक समय के अनुरूप ढालने में एक बड़ा कदम आगे बढ़ाया है। बात ऑपरेशन सिंदूर की ही करें, तो टेक्नोलॉजी के बिना इसे सफलतापूर्वक पूरा कर पाना लगभग असंभव ही था।
दुनियाभर के सेनाएं ऑटोमेशन, डिजिटाइजेशन और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी तकनीकों को अपनाकर अपने कॉम्बैट सिस्टम को स्मार्ट और फास्ट बना रही हैं। चाहे वह लड़ाई के मैदान की स्थिति हो, खुफिया जानकारियों का विश्लेषण हो, लॉजिस्टिक्स का प्रबंधन हो या ट्रेनिंग की प्रक्रिया, हर स्तर पर तकनीक की भूमिका निर्णायक बन चुकी है।
भारतीय सेना में “डिकेड ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन”
भारतीय सेना ने भी इसे समय रहते समझा और “डिकेड ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन” यानी परिवर्तन का दशक शुरू किया। इस अभियान के तहत वर्ष 2024–2025 को “ईयर ऑफ टेक्नोलॉजी एब्सॉर्प्शन” घोषित किया गया ताकि तकनीक केवल हेडक्वॉटर्स तक सीमित न रहे, बल्कि हर सैनिक और हर यूनिट तक पहुंचे।
इस बदलाव में रक्षा मंत्रालय के “ईयर ऑफ रिफॉर्म्स” ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन दोनों पहलों के तालमेल से भारतीय सेना एक आधुनिक, फुर्तीली और तकनीकी रूप से एडवांस हुई है। सेना में ऑटोमेशन और डिजिटाइजेशन केवल नए सिस्टम लगाने भर की प्रक्रिया नहीं रही, बल्कि इसने काम करने के तरीके को मूल रूप से बदल दिया है। सभी प्रणालियां और प्रक्रियाएं अब एक ऐसे स्ट्रक्चर में काम कर रही हैं, जो तेज, भरोसेमंद और नेटवर्क-फोकस फैसले लेने में सक्षम है।
एआई से फैसले लेना हुआ आसान
इस क्रांतिकारी बदलाव के पीछे सेना की “डायरेक्टरेट जनरल ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स” (DGEME) की अहम भूमिका रही है। डीजी ईएमई के नेतृत्व में डिजिटल सिस्टम में जबदस्त इजाफा हुआ है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लेकर क्लाउड सिस्टम और स्मार्ट वेपंस तक भारतीय सेना ने तकनीकी मोर्चे पर कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। ऑटोमेशन के चलते यूजर बेस में 1200 फीसदी की बढ़ोतरी, और डेटा स्टोरेज क्षमता में 620 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस बदलाव ने हर स्तर पर फैसले लेने की रफ्तार बढ़ी है।
एआई बना ‘फोर्स मल्टीप्लायर’
डीजी ईएमई लेफ्टिनेंट जनरल राजीव कुमार साहनी ने बताया कि भारतीय सेना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका अब ‘फोर्स मल्टीप्लायर’ की बन चुकी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने आधुनिक युद्ध की परिभाषा ही बदल दी है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसका प्रभाव साफ तौर पर दिखाई दिया, जब रीयल टाइम डेटा एनालिटिक्स, मौसम संबंधी रिपोर्ट और इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस ने न केवल दुश्मन की गतिविधियों और संभावित खतरों का पता लगाने में मदद की बल्कि सटीक निशाना लगाने में भी अहम भूमिका निभाई। एआई ने स्पष्ट कर दिया कि भविष्य के युद्धों में यह तकनीक निर्णायक भूमिका निभाएगी।
कई स्वदेशी एआई सिस्टम तैयार
पूर्व में डीजी इन्फो सिस्टम रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल राजीव कुमार साहनी के मुताबिक भारतीय सेना ने कई स्वदेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणालियां डेवलप की हैं। इनमें सबसे अहम है इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस कॉलेशन एंड एनालिसिस सिस्टम यानी ECAS। यह सिस्टम रियल टाइम में दुश्मन के खतरों की पहचान कर सकता है। इसके अलावा ऑपरेशन सिंदूर में त्रिनेत्र सिस्टम को प्रोजेक्ट संजय के साथ जोड़ कर ऑपरेशनल कमांड और ग्राउंड यूनिट्स को कॉमन ऑपरेशनल पिक्चर उपलब्ध कराई, जिससे तुरंत फैसले लेने में आसानी हुई। उन्होंने बताया कि ECAS सॉफ्टवेयर को बहुत कम समय में मॉडिफाई किया गया ताकि ऑपरेशन की जरूरतों के अनुसार दुश्मन के सेंसरों का पता लगाया जा सके।
उन्होंने बताया कि भारतीय सेना ने खतरे की भविष्यवाणी में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पूरी तरह शामिल कर लिया है। टाइम, स्पेस और रिसोर्सेज के जटिल मैट्रिक्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित प्रेडिक्टिव थ्रेट मॉडलिंग ने यह सुनिश्चित किया कि सही समय पर सही संसाधनों को सही जगह पर तैनात किया जा सके। मल्टी-सेंसर और मल्टी-सोर्स डेटा फ्यूजन लगभग रीयल टाइम में हासिल किया गया, जिससे बैटल फील्ड में कमांडरों को फैसला लेने में आसानी हुई।
जिज्ञासा- मिलिट्री जनरेटिव एआई मॉडल
डीजी ईएमई के मुताबिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के फील्ड में भारत ने अपने लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स और स्मॉल लैंग्वेज मॉडल्स डेवलप करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। सेना ने जिज्ञासा नामक मिलिट्री जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल तैयार किया है, और एआई ऐज ए सर्विस प्लेटफॉर्म” को भी ऑपरेशनल किया गया है। इन सभी पहल का का उद्देश्य भारत की सैन्य जरूरतों के मुताबिक एक सुरक्षित और स्वदेशी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्ट्रक्चर तैयार करना है।
बैटलफील्ड सर्विलांस सिस्टम शुरू
उन्होंने बताया कि डिजिटाइजेशन के मोर्चे पर भी भारतीय सेना ने तेजी से कदम बढ़ाए हैं। डेटा गवर्नेंस पॉलिसी लागू की गई है। उत्तरी और पश्चिमी मोर्चों पर प्रोजेक्ट संजय के तहत बैटलफील्ड सर्विलांस सिस्टम शुरू किया गया है। प्रोजेक्ट अवागत को पूरे भारतीय थलसेना में लागू किया गया है। दो वर्षों में 70 से अधिक डिजिटल एप्लिकेशन तैयार की गई हैं और एक डेटा डिक्शनरी भी बनाई गई है ताकि सभी विभागों में जानकारी का सिंगल सोर्स बनाया जा सके। उनका कहना है कि इस डिजिटल क्रांति ने डेटा डेमोक्रेटाइजेशन को बढ़ावा दिया है और एक डेटा-सेंट्रिक इंडियन आर्मी की नींव रखी है।
यूनिफाइड एआई प्लेटफॉर्म भी तैयार
डीजी ईएमई ने बताया कि भारतीय सेना ने 18 दिसंबर 2024 को बेंगलुरु में “आर्मी एआई रिसर्च एंड इनक्यूबेशन सेंटर” की स्थापना की थी। यह केंद्र डीआरडीओ, उद्योग जगत और शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर एआई प्रोजेक्ट्स को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। इसके साथ ही एक यूनिफाइड एआई प्लेटफॉर्म भी बनाया जा रहा है जो ऑपरेशन, इंटेलिजेंस, लॉजिस्टिक्स और ट्रेनिंग को एक ही स्ट्रक्चर में जोड़ेगा। इसके अलावा डीजीआईएस और आर्टपार्क-आईआईएससी के सहयोग से “डिफेंस एआई हब” भी तैयार किया जा रहा है, जो एआई प्रोजेक्ट्स की प्रगति की निगरानी करेगा।