📍नई दिल्ली | 3 months ago
India-China Border: भारत और चीन के बीच कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक बातचीत के बावजूद, चीन लगातार वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपने सैन्य ढांचे को मजबूत कर रहा है। पिछले साल अक्टूबर में देपसांग और डेमचोक से सैनिकों के हटने के बावजूद, पूर्वी लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक चीन अपनी गतिविधियों को तेजी से बढ़ा रहा है।

सैन्य सूत्रों के मुताबिक पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) कई जगहों पर मिलिट्री कैंप्स और सड़क निर्माण में लगी हुई है। खासतौर पर अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में चीन रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है। यहां भारत को रणनीतिक बढ़त हासिल है, लेकिन चीन नई सड़कों और सैन्य सुविधाओं के जरिए अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
India-China Border: सर्दियों में भी सड़क बनाने में जुटा चीन
सैटेलाइट विश्लेषक @NatureDesai के अनुसार, चीन सर्दियों के मौसम में भी यांग्त्से क्षेत्र में दो नई सड़कों का निर्माण कर रहा है। इनमें से एक सड़क लैम्पुग से टांगवु की ओर बनाई जा रही है। PLA ने न केवल नए सैन्य कैंप बनाए हैं, बल्कि तवांग सेक्टर में टांगवू गांव से एलएसी तक एक पक्की सड़क का निर्माण भी किया है। इसके अलावा, इलाके में कुछ कच्चे रास्तों को भी अपग्रेड किया गया है, जिससे चीन जरूरत पड़ने पर बड़ी संख्या में सैनिकों को जल्दी तैनात कर सके। चीन यांग्त्से क्षेत्र में भारतीय सेना की टैक्टिकल एज को खत्म करने के लिए तेजी से निर्माण कार्य में जुटा हुआ है। सेटेलाइट तस्वीरों से भी खुलासा हुआ है कि चीन ने पिछले कुछ महीनों में इस क्षेत्र में दो नई सड़कें बनाई हैं, जिससे उसके सैनिकों को बेहतर लॉजिस्टिक्स सपोर्ट मिलेगा।

India-China Border: पीएलए का फोकस तवांग, नाकू ला पर
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, पीएलए का फोकस तवांग, नाकू ला (उत्तर सिक्किम) और अरुणाचल प्रदेश के अन्य संवेदनशील इलाकों में आखिरी बिंदु तक कनेक्टिविटी को मजबूत करने पर है। ये इलाके पहले से ही भारत-चीन के बीच विवाद का केंद्र रहे हैं।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन लगातार यांग्त्से क्षेत्र में नई सड़कें और पुल बना रहा है, जिससे उसके सैनिकों को ऊंचाई वाले इलाकों में बेहतर पहुंच मिल रही है। इससे भारतीय सेना की पेट्रोलिंग और चौकसी प्रभावित हो सकती है। अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से, असफिला और सुबनसिरी नदी घाटी इलाकों में चीन की गतिविधियां बढ़ रही हैं। इन इलाकों में भारतीय सेना का नियंत्रण दशकों से रहा है, लेकिन चीन बार-बार इस क्षेत्र पर अपना दावा जताता रहा है।
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उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में भी सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा चीन
चीन केवल अरुणाचल प्रदेश में ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के क्षेत्रों में भी अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा है। नई सड़कों, पुलों, हेलिपैड और आर्टिलरी के निर्माण की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। पूर्वी लद्दाख में देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में चीन की सैन्य गतिविधियां भारत के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं। पिछले साल अक्टूबर में दोनों देशों के बीच इन स्थानों से सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमति बनी थी, लेकिन इसके बावजूद चीन की नई तैयारियों के चलते सीमा पर तनाव कम नहीं हुआ है।
1. पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख) में एलएसी के पास चीन ने कई नए सैन्य शिविर और लॉजिस्टिक सपोर्ट बेस बनाए हैं। सीमा पर तोपखाने और मिसाइल सिस्टम की तैनाती बढ़ा दी गई है। वहीं, पैंगोंग झील क्षेत्र में चीनी सैनिकों की उपस्थिति बनी हुई है।
2. मध्य सेक्टर (उत्तराखंड-हिमाचल) की बात करें, तो बाराहोटी क्षेत्र में चीन की गतिविधियां बढ़ी हैं। यहां नई सड़कें बनाई गई हैं, जिससे सैनिकों की आवाजाही तेज हो गई है।
3. पूर्वी सेक्टर (सिक्किम-अरुणाचल) के तवांग सेक्टर में चीन लगातार सड़क निर्माण और सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है। यांग्त्से और असफिला जैसे संवेदनशील इलाकों में PLA की नई संरचनाएं देखी गई हैं। चीन की नई सड़कों और ब्रिज निर्माण से भारतीय पोस्ट्स और सैन्य ठिकानों की निगरानी करना आसान हो जाएगा।
भारतीय सेना के अधिकारियों के अनुसार, चीन और भारत दोनों ही अपनी उत्तरी सीमाओं पर समझौतों और प्रोटोकॉल के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप कर रहे हैं। हालांकि, चीन द्वारा किसी भी प्रकार के समझौतों के उल्लंघन की स्थिति में भारत उचित स्तर पर इसका विरोध भी दर्ज करा रहा है।
सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने हाल ही में एक प्रेस वार्ता में कहा था कि भारत ने किसी भी संवेदनशील क्षेत्र में चीनी सेना को “पेट्रोलिंग राइट्स” नहीं दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया था कि सभी कॉर्प्स कमांडरों को यह अधिकार दिया गया है कि वे छोटी-मोटी बॉर्डर पेट्रोलिंग और चरागाहों से जुड़ी समस्याओं को शुरुआती स्तर पर ही सुलझा सकें, ताकि वे बाद में गंभीर विवाद का रूप न लें।
चीन नहीं चाहता डी-एस्केलेशन और डी-इंडक्शन
पिछले साल अक्टूबर में जब देपसांग और डेमचोक में चीन ने सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमति जताई थी, तब उम्मीद जताई गई थी कि आगे भी तनाव कम होगा। लेकिन अब तक चीन ने पूरी तरह डी-एस्केलेशन (तनाव कम करने) और डी-इंडक्शन (सैनिकों की वापसी) पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इसके विपरीत, चीन ने एलएसी पर अपनी उपस्थिति और मजबूत कर ली है।
हालांकि भारत ने भी चीन की इन गतिविधियों के जवाब में अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। हाल ही में भारतीय सेना ने पूर्वोत्तर और लद्दाख क्षेत्रों में अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप करने के लिए कई नए प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। आधुनिक हथियारों और सर्विलांस सिस्टम से लैस एडवांस पोस्ट बनाई जा रही हैं। इसके अलावा, भारतीय वायुसेना भी एलएसी पर लगातार गश्त कर रही है ताकि किसी भी अप्रत्याशित गतिविधि पर नजर रखी जा सके। सेना और वायुसेना के कॉर्डिनेशन से स्ट्रैटेजिक तौर पर महत्वपूर्ण इलाकों में निगरानी बढ़ाई गई है।