📍नई दिल्ली | 23 Oct, 2025, 11:42 AM
Agniveer Retention Rate: भारतीय सेना ने स्पष्ट किया है कि आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में अग्निवीर रिटेंशन रेट को 25 फीसदी से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का प्रस्ताव पूरी तरह से गलत और काल्पनिक हैं। सेना ने गुरुवार को एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि इस तरह की रिपोर्टें “बिना सत्यापन प्रकाशित की गईं” हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने खबर छापी थी कि सरकार जैसलमेर में चल रही आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस के एजेंडे में अग्निवीर नीति में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया है। जिसमें 25 फीसदी से बढ़ा कर 75 फीसदी अग्निवीरों को स्थाई करने का प्रस्ताव है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जैसलमेर में चल रही आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस के एजेंडे में अग्निवीर नीति में बदलाव, थिएटर कमांड पर चर्चा और मिशन सुदर्शन चक्र की समीक्षा शामिल है।
भारतीय सेना ने इन सभी दावों को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “यह रिपोर्ट पूरी तरह से काल्पनिक और गलत है। कॉन्फ्रेंस के एजेंडा से जुड़ी जो बातें इस लेख में कही गई हैं, वे सत्य नहीं हैं। यह एक क्लोज-डोर और क्लासिफाइड बैठक होती है।
आर्मी हेडक्वार्टर ने अपने बयान में कहा कि कॉन्फ्रेंस की प्रकृति पूरी तरह स्ट्रैटेजिक और क्लासिफाइड होती है, जिसमें एजेंडा या चर्चाओं की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती। सेना के प्रवक्ता ने कहा कि रिपोर्ट में शामिल अधिकांश बिंदु जैसे कि अग्निवीर रिटेंशन का प्रतिशत बढ़ाना, मिशन सुदर्शन चक्र की समीक्षा और थिएटर कमांड से जुड़ी चर्चाएं कॉन्फ्रेंस का हिस्सा नहीं हैं।
Agniveer Retention Rate
सेना का कहना है, “आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस के सभी सेशन राष्ट्रीय सुरक्षा, ऑपरेशनल रणनीति और संगठनात्मक सुधारों पर केंद्रित होते हैं। इस बैठक में क्या चर्चा होगी, यह पहले से सार्वजनिक नहीं किया जाता।
आर्मी कमांडर्स कॉन्फ्रेंस भारतीय सेना का सबसे महत्वपूर्ण डिसिजन मेकिंग प्लेटफॉर्म है। यह बैठक साल में दो बार होती है। इस कॉन्फ्रेंस में सेना प्रमुख, सातों कमान के प्रमुख, उप-सेना प्रमुख और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भाग लेते हैं। जिसमें ऑपरेशनल तैयारियों, ट्रेनिंग, संगठनात्मक बदलाव और प्रशासनिक मुद्दों की समीक्षा करते हैं। यह दो चरणों में होती है, पहली दिल्ली में और दूसरी किसी फील्ड लोकेशन पर।
जैसलमेर में चल रही यह बैठक ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार हो रही है। इस बैठक में सुरक्षा स्थिति, सीमावर्ती इलाकों की तैयारियां और संसाधन आवंटन जैसे विषयों पर चर्चा की जा रही है। सेना ने कहा कि यह मंच किसी नीति परिवर्तन या भर्ती-संबंधी फैसला की सार्वजनिक घोषणा के लिए नहीं होता। ऐसे किसी प्रस्ताव का उल्लेख करना गलत है।
अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, सेना इस मुद्दे पर विचार कर रही है क्योंकि पहला अग्निवीर बैच अगले साल चार वर्ष की सेवा पूरी करेगा, और ऐसे में यह तय करना आवश्यक है कि कितने अग्निवीरों को स्थायी सेवा में रखा जाए। अभी तक नीति के अनुसार केवल 25 फीसदी अग्निवीरों को स्थायी सेवा में रखा जाता है, जबकि बाकी को सिविल सेक्टर में रीसेटलमेंट के लिए भेजा जाता है।
रिपोर्ट में रिटेंशन रेट बढ़ाने के पीछे वजह बताई गई है कि सीमावर्ती इलाकों में लगातार तैनाती, प्रशिक्षण लागत और कर्मियों की निरंतरता को बनाए रखना जरूरी है। इससे सेना में अनुभवी जवानों की संख्या बनी रहेगी और प्रशिक्षण में निवेश का लाभ लंबे समय तक मिलेगा।
साथ ही, इस बार के सम्मेलन में इक्विपमेंट्स का स्टैंडर्डाइजेशन, कॉमन लॉजिस्टिक चेन और जॉइंट ट्रेनिंग पर भी चर्चा होगी।” इसके अलावा, रिपोर्ट में मिशन सुदर्शन चक्र के तहत चल रही पहलों की समीक्षा और वेटरन्स के बेहतर उपयोग की बात भी शामिल थी। वर्तमान में अधिकांश वेटरन्स केवल आर्मी वेलफेयर एजुकेशन सोसाइटी ईसीएचएस पॉलीक्लिनिक जैसी सीमित भूमिकाओं में एक्टिव हैं। वहीं सेना देख रही है कि कैसे इन्हें फॉर्मेशंस और ट्रेनिंग सेंटर्स में अहम भूमिकाएं दी जा सकती हैं।
इसके अलावा अखबार की रिपोर्ट में सेना, नौसेना और वायुसेना के बीच बेहतर जॉइंटनेस के लिए कई उपायों पर चर्चा होने की बात कही गई है, जिनमें कॉमन ट्रेनिंग, स्टैंडर्डाइज्ड लॉजिस्टिक्स चेन, और इंटीग्रेटेड पोस्टिंग सिस्टम शामिल हैं। सेना का मानना है कि आधुनिक युग में किसी भी देश की सैन्य ताकत केवल हथियारों से नहीं, बल्कि जॉइंट कॉर्डिनेशन से तय होती है। ऑपरेशन सिंदूर ने यह दिखा दिया कि जब तीनों सेनाएं एक लक्ष्य पर साथ काम करती हैं, तो परिणाम निर्णायक होते हैं।
