📍नई दिल्ली | 19 Sep, 2025, 10:12 PM
60 Years of 1965 War: 1965 में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग को हुए भले ही 60 साल बीत चुके हैं। लेकिन जंग में अपना शौर्य दिखा चुके कई वेटरन के जहन में आज भी जंग की यादें ताजा हैं। ठीक वैसे ही जैसे कल ही जंग हुई हो। हालांकि 1965 जंग की शुरुआत अप्रैल 1965 में रन ऑफ कच्छ के बंजर इलाकों से हुई, जहां पाकिस्तान ने भारत की इच्छाशक्ति को परखने के लिए छोटी-छोटी झड़पें शुरू कीं। इन झड़पों ने माहौल गरमा दिया और पाकिस्तान को यह भ्रम हुआ कि अगर वह जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करेगा तो भारत जल्दी दबाव में आ जाएगा।
60 Years of 1965 War: ऑपरेशन जिब्राल्टर और हाजीपीर की लड़ाई
अगस्त 1965 में पाकिस्तान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया। हजारों सशस्त्र घुसपैठियों को जम्मू-कश्मीर भेजा गया ताकि स्थानीय विद्रोह खड़ा किया जा सके। भारतीय सेना ने तुरंत कार्रवाई की और हालात को नियंत्रण में लिया। इसी दौरान 28 अगस्त 1965 को भारतीय सैनिकों ने हाजीपीर पास पर कब्जा कर लिया। यह पास सामरिक दृष्टि से बेहद अहम था क्योंकि यहीं से घुसपैठिए भारत में दाखिल होते थे।
उस जंग में शामिल रहे वेटरन रिटायर्ड ब्रिगेडियर अर्विंदर सिंह (1 पैरा) इस ऑपरेशन में कंपनी कमांडर थे। उन्होंने कहा, “हाजीपीर पर कब्जा आसान नहीं था। 8500–9000 फीट ऊंचाई पर सांस लेना भी मुश्किल था। ऊपर से दुश्मन ऊंचाई से हमला कर रहा था। हमारे पास तोपखाने का सपोर्ट भी नहीं था, सिर्फ छोटे हथियार थे। हाथ से हाथ की लड़ाई भी हुई। मेरे सात जवान शहीद हुए, 22 घायल हुए और मैं खुद भी घायल हुआ। लेकिन दर्रे पर कब्जा हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि थी।”
उनकी यादों में उस दौर की मुश्किलें आज भी ताजा हैं। उन्होंने कहा कि अगर आज हाजीपीर पास भारत के पास होता तो घाटी में होने वाली घुसपैठ 90 फीसदी तक कम हो जाती।
“Saluting the Brave: Veterans Who Shaped History.”
The Indian Army commemorated the 60th Anniversary of the 1965 India-Pakistan War at a solemn ceremony held at #SouthBlock, #NewDelhi. The event was graced by Shri Rajnath Singh, Hon’ble Raksha Mantri, as the Chief Guest. The… https://t.co/AhPB2XlsGT pic.twitter.com/Ihj3kDW6kT
— ADG PI – INDIAN ARMY (@adgpi) September 19, 2025
60 Years of 1965 War: पाकिस्तान का ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम
ऑपरेशन जिब्राल्टर की नाकामी से पाकिस्तान निराश हो गया। सितंबर की शुरुआत में उसने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया। इसका लक्ष्य था अखनूर पर कब्जा कर कश्मीर घाटी का भारत से संपर्क तोड़ देना। साथ ही, पाकिस्तान ने पंजाब के खेमकरण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर टैंक हमले किए।
लेकिन भारतीय सेना ने डटकर मुकाबला किया। खेमकरण में हुई असल उत्तर की लड़ाई को भारत की सबसे बड़ी जीतों में से एक माना जाता है। भारतीय सैनिकों ने 100 से अधिक पैटन टैंकों को तबाह कर दिया। इस जीत के बाद खेमकरण को “ग्रेवयार्ड ऑफ पैटन्स” टैंक कहा जाने लगा।
वेटरन कर्नल बंसी लाल (1/9 गोरखा रेजिमेंट) उस लड़ाई के गवाह थे। उन्होंने बताया, “8 सितंबर की सुबह दुश्मन ने टैंकों के साथ हमला किया। हमारी टुकड़ी ने पहले ही मोर्चा संभाल लिया था। दुश्मन के 94 टैंक तबाह हुए। कई दिनों तक तोपखाने और हवाई हमलों के बावजूद हमने जमीन नहीं छोड़ी।”
उन्होंने बताया, “5 सितंबर को हमें खेमकरण सेक्टर में भेजा गया था। 8 सितंबर की सुबह दुश्मन ने टैंकों से हमला किया। हमने पहले ही मोर्चा संभाल लिया था। हमारी टुकड़ी ने कई दुश्मन टैंक तबाह किए। लगातार तोपखाने और हवाई हमलों के बावजूद हमने जमीन नहीं छोड़ी। इस इलाके में पाकिस्तान के 94 टैंक तबाह हुए। इसीलिए इसे ग्रेवयार्ड ऑफ पैटन्स कहा गया।”
इस जंग में कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद की वीरता आज भी याद किया जाता है। उन्होंने अकेले कई पैटन टैंक तबाह कर दिए और परमवीर चक्र से सम्मानित हुए।

60 Years of 1965 War: लाहौर और सियालकोट की ओर बढ़ी भारतीय सेना
6 सितंबर 1965 को भारत ने पहल करते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की और लाहौर व सियालकोट की ओर बढ़ना शुरू किया। इस दौरान डोगराई की जंग बेहद अहम रही।
वेटरन मेजर आरएस बेदी (14 हॉर्स – सिंध हॉर्स) ने इस मोर्चे पर टैंक टुकड़ी की अगुवाई की। उन्होंने कहा, “17 सितंबर को हमें डोगराई की ओर बढ़ने का आदेश मिला। दुश्मन ने जोरदार फायरिंग की। मेरा टैंक दुश्मन की गोली से जल उठा। दो साथी मारे गए, मैं गंभीर रूप से घायल हुआ। लेकिन मैंने अपने चालक को जलते टैंक से बाहर निकाला। यह वीरता का काम माना गया और मुझे वीर चक्र मिला।”
बेदी ने आगे बताया कि युद्ध के बाद भारत ने खुफिया एजेंसियों को मजबूत किया। यही कारण था कि 1969 में रॉ बनी और बाद में एनटीआरओ की स्थापना हुई, जिसे उन्होंने 2003 में खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि 1965 के युद्ध के बाद भारत में इंटेलिजेंस सिस्टम और मजबूत हुआ।
60 Years of 1965 War: फिल्लौरा और चाविंडा की जंग
लाहौर और सियालकोट की तरफ बढ़ते हुए भारतीय सेना ने फिल्लौरा और चाविंडा में भीषण टैंक लड़ाइयां लड़ीं। यहां भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के हमले को रोकते हुए अपनी ताकत दिखाई। वहीं, राजस्थान सेक्टर में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के अंदर मोर्चाबंदी शुरू करते हुए मुनाबाओ और गडरा रोड पर कब्जा किया। इससे भारतीय सेना ने यह साबित किया कि वह रेगिस्तानी मोर्चों पर भी बड़े पैमाने पर युद्ध लड़ सकती है। वहीं, शकरगढ़ बुल्ज क्षेत्र में टैंकों की भीषण लड़ाई हुई। भारतीय सेना ने पाकिस्तान को रोकते हुए जम्मू–पठानकोट मार्ग की सुरक्षा सुनिश्चित की।

60 Years of 1965 War: मेजर सुदर्शन सिंह ने साझा की यादें
1965 के भारत–पाक युद्ध को गुजरे हुए 60 साल बीत चुके हैं, लेकिन उस दौर की यादें आज भी जीवंत हैं। 1 डोगरा रेजिमेंट के अधिकारी रहे वेटरन मेजर सुदर्शन सिंह उस समय सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर थे। उन्होंने उस दौर के अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया, “हमें बिना ज्यादा ट्रेनिंग के आदेश मिला कि सीमा पर जाना है। मुझे बस आदेश मिला और मैंने सोचा कि आदेश का पालन करना ही मेरा कर्तव्य है। उस समय यह नहीं सोचते थे कि आगे क्या होगा। बस ड्यूटी समझकर सीमा पर जाना था।”
मेजर सुदर्शन सिंह ने कहा कि उस समय वे प्लाटून कमांडर थे। उनका मुख्य काम रात में सामान और गोला-बारूद पहुंचाना था, जो बेहद तनावपूर्ण होता था। रात के अंधेरे में कभी नहीं पता होता था कि दुश्मन कब सामने आ जाएगा। दिन में ज्यादा मूवमेंट संभव नहीं था क्योंकि दुश्मन के हवाई हमले का खतरा हमेशा मंडराता था।
उन्होंने एक खास मिशन का जिक्र करते हुए कहा, “मुझे आदेश मिला कि ढोलन गांव की स्थिति का पता लगाओ। अगर वह पाकिस्तान के कब्जे में है, तो दुश्मन को आगे बढ़ने मत देना और अगर खाली है तो उसे कब्जे में लेना। यह काम बेहद जोखिम भरा था लेकिन यही हमारी जिम्मेदारी थी।”
60 Years of 1965 War: पहुंच चुके थे लाहौर के नजदीक
मेजर सुदर्शन सिंह से जब पूछा गया कि क्या 1965 में भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी, तो उन्होंने कहा कि उस समय सैनिकों को स्पष्ट आदेश नहीं दिए जाते थे। कई बार सिर्फ यह बताया जाता था कि आगे बढ़ो और कब्जा करो। “हम लाहौर के बिल्कुल नजदीक तक पहुंचे थे, लेकिन उसके बाद हमें वापस बुला लिया गया।”
“युद्ध कभी अच्छा नहीं होता”
आज की आधुनिक युद्ध प्रणाली और 1965 के युद्ध की तुलना पर उन्होंने कहा, “वह पारंपरिक युद्ध था और आज का युद्ध ड्रोन और तकनीक पर आधारित है। लेकिन सच्चाई यह है कि युद्ध कभी अच्छा नहीं होता। यह देश की अर्थव्यवस्था और व्यवस्था को पीछे धकेल देता है। युद्ध से कोई लाभ नहीं होता।”
23 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से युद्धविराम हुआ। पाकिस्तान की कोशिश थी कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति बदली जाए, लेकिन भारतीय सेना ने उसे पूरी तरह नाकाम कर दिया।

