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Woman IAF pilot: दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला; महिला को एयरफोर्स पायलट के पद पर नियुक्त करे वायु सेना

12 पन्नों के अपने फैसले में अदालत ने केंद्र को आदेश दिया कि महिला उम्मीदवार को तुरंत फ्लाइंग ब्रांच के 20 खाली पदों में से एक पर नियुक्त किया जाए...

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📍नई दिल्ली | 1 Sep, 2025, 11:45 AM

Woman IAF pilot: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि एक महिला उम्मीदवार को भारतीय वायुसेना में पायलट के पद पर नियुक्त किया जाए। कोर्ट ने कहा कि आज के समय में सशस्त्र बलों में लैंगिक भेदभाव की कोई जगह नहीं है।

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यह फैसला जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की बेंच ने सुनाया। मामला 2023 में आयोजित नेशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकेडमी परीक्षा से जुड़ा हुआ था, जिसमें महिला उम्मीदवार ने सातवां स्थान हासिल किया था।

Woman IAF pilot: क्या है पूरा मामला

याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी थी कि 17 मई 2023 को जारी नोटिफिकेशन के तहत वायुसेना की फ्लाइंग ब्रांच में 92 पद निकाले गए थे, जिनमें से केवल दो सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। नतीजों की घोषणा के बाद दोनों महिला सीटें भर गईं, लेकिन कुल 90 में से केवल 70 सीटें ही भरी गईं और बाकी 20 पद खाली रह गए।

महिला याचिकाकर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया कि उसे इन 20 खाली पदों में से एक पर नियुक्ति दी जाए। उसने कहा कि भर्ती के नोटिफिकेशन में कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि 90 सीटें केवल पुरुष उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।

केंद्र सरकार ने दिया ये तर्क

केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि शेष 90 सीटें केवल पुरुष उम्मीदवारों के लिए थीं। उनका कहना था कि इन खाली पदों को बाद में अन्य भर्ती प्रक्रियाओं जैसे एयरफोर्स कॉमन एडमिशन टेस्ट (AFCAT) और संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा (CDSE) के जरिए भरा जाएगा।

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हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया। जजों ने कहा कि नोटिफिकेशन में कहीं भी यह उल्लेख नहीं था कि 90 पद केवल पुरुषों के लिए सुरक्षित हैं। यह पद महिला और पुरुष दोनों उम्मीदवारों के लिए खुले थे।

कोर्ट ने सख्त शब्दों में कहा कि “आज के समय में महिला और पुरुष के बीच का फर्क केवल एक क्रोमोसोमल परिस्थिति है। इससे अधिक महत्व देना न तो तार्किक है और न ही प्रासंगिक। हम सौभाग्य से अब उस दौर में नहीं हैं जब पुरुष और महिला उम्मीदवारों के बीच भेदभाव किया जा सकता था।”

12 पन्नों के अपने फैसले में अदालत ने केंद्र को आदेश दिया कि महिला उम्मीदवार को तुरंत फ्लाइंग ब्रांच के 20 खाली पदों में से एक पर नियुक्त किया जाए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार खुद अपनी नीतियों में लैंगिक संतुलन की बात करती है और अधिसूचना में भी यह लिखा गया था कि “सरकार ऐसी वर्कफोर्स चाहती है जो लैंगिक संतुलन को दर्शाती हो।” ऐसे में महिला उम्मीदवार को अवसर न देना भेदभाव होगा।

महिला उम्मीदवार ने न केवल परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन किया बल्कि उसके पास “फिट टू फ्लाई” मेडिकल सर्टिफिकेट भी था। इसके बावजूद उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। याचिकाकर्ता के वकील साहिल मोंगिया ने कोर्ट में कहा कि उम्मीदवार महिला मेरिट लिस्ट में सातवें स्थान पर थीं और सभी आवश्यक योग्यताएं पूरी करती थीं।

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उन्होंने दलील दी कि जब 20 सीटें खाली रह गईं, तो उन्हें भरने के लिए योग्य महिला उम्मीदवारों पर विचार किया जाना चाहिए था। अदालत ने भी इस दलील को सही ठहराते हुए कहा कि किसी भी योग्य उम्मीदवार को सिर्फ लिंग के आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

जस्टिस हरि शंकर और जस्टिस शुक्ला ने कहा कि भेदभाव को जगह देने का मतलब है अतीत की उन गलतियों को दोहराना, जो अब समाज में स्वीकार्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है और सरकार की नीतियां भी इसी दिशा में संकेत करती हैं।

बता दें कि हाल के वर्षों में महिलाओं की भूमिका भारतीय सशस्त्र बलों में लगातार बढ़ी है। वायुसेना में महिला पायलटों की संख्या भी पहले से अधिक हो रही है। इस फैसले के बाद महिला उम्मीदवारों के लिए और अधिक रास्ते खुल सकते हैं। महिला अधिकारियों को पहले से ही फाइटर पायलट, हेलीकॉप्टर पायलट और विभिन्न ग्राउंड ड्यूटी ब्रांचों में नियुक्त किया जा रहा है।

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