📍नई दिल्ली | 22 Nov, 2025, 3:37 PM
KC-135 Stratotanker India: भारतीय वायुसेना ने एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग विमान लीज पर लिया है। अमेरिकी कंपनी मेट्रिया मैनेजमेंट का वेट-लीज पर लिया गया केसी-135 स्ट्रेटोटेंकर भारत पहुंचा। यह बड़ा एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग विमान आगरा एयर फोर्स स्टेशन पर उतारा। इसके आने के साथ ही भारतीय वायुसेना की लंबी दूरी तक उड़ान भरने की क्षमता में भी इजाफा हो गया है।
केसी-135 स्ट्रैटो-टैंकर (KC-135 Stratotanker India) दुनिया की सबसे भरोसेमंद रिफ्यूलिंग मशीनों में गिना जाता है। अमेरिकी एयर फोर्स में यह पिछले 60 साल से काम कर रहा है। अब पहली बार यह भारत में ट्रेनिंग और ऑपरेशनल जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल होगा।
आगरा बेस पर लैंडिंग के बाद यह विमान भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना दोनों के लिए उपलब्ध रहेगा। यह टैंकर भारतीय पायलटों को एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग यानी हवा में ईंधन भरने की ट्रेनिंग देगा। इसी क्षमता को आधुनिक युद्ध में “फोर्स मल्टीप्लायर” (KC-135 Stratotanker India) कहा जाता है, क्योंकि इससे फाइटर जेट दूर-दूर तक जा सकते हैं और भारी हथियार लेकर भी ऑपरेट कर सकते हैं।
यह पूरा ऑपरेशन एक “वेट-लीज” है यानी विमान के साथ-साथ पायलट, टेक्नीशियन, मेंटेनेंस टीम और इंश्योरेंस सब अमेरिकी कंपनी ही संभालेगी। भारतीय वायुसेना को सिर्फ मिशन कंट्रोल और ट्रेनिंग की जिम्मेदारी मिलेगी। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि भारतीय वायुसेना के अपने छह आईएल-78 टैंकरों की सर्विसेबिलिटी काफी कम है और कई बार वे मिशन के समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते। वहीं, केसी-135 (KC-135 Stratotanker India) के आने से यह कमी बड़ी हद तक पूरी हो जाएगी।
KC-135 Stratotanker India की खासियतें
यह बोइंग 707 पर आधारित एक मिलिट्री रिफ्यूलर है। इसमें 83,000 पाउंड तक फ्यूल ले जाने की क्षमता है। यह एक साथ दो जेट को हवा में फ्यूल भर सकता है। इसकी स्पीड 480–530 नॉट्स तक रहती है और इसकी रेंज 11,000 किमी (KC-135 Stratotanker India) से ज्यादा है। भारत में आने वाला यह वर्जन “आर-मॉडल” है, जिसमें आधुनिक सीएफएम56 इंजन लगे हैं।
भारतीय वायुसेना के राफेल, सुखोई-30एमकेआई, मिराज-2000, जगुआर जैसे फाइटर भी इससे हवा में उड़ते हुए ईंधन भरवा सकेंगे। वहीं, नौसेना के मिग-29के भी इससे रिफ्यूलिंग कर सकते हैं।
इसमें दो प्रकार के रिफ्यूलिंग सिस्टम हैं, पहला फ्लाइंग बूम सिस्टम औऱ दूसरा प्रोब-एंड-ड्रोग सिस्टम। यानी यह भारत के लगभग सभी लड़ाकू विमानों में हवा में ईंधन भर सकता है।
क्यों पड़ी इसकी जरूरत?
भारतीय वायुसेना के मौजूदा आईएल-78 टैंकर 2003 में आए थे। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते इनके लिए स्पेयर पार्ट्स नहीं मिल पा रहे। कई बार सिर्फ 1 या 2 टैंकर ही उड़ान के लिए उपलब्ध होते हैं। ऐसे में बड़े एयर ऑपरेशन या लंबी दूरी की स्ट्राइक प्लानिंग प्रभावित हो जाती है। (KC-135 Stratotanker India)
भारतीय वायुसेना 2007 से नए टैंकर खरीदने की कोशिश कर रहा है। एयरबस ए330 एमआरटीटी और बोइंग केसी-46 को लेकर कई बार विकल्प के तौर पर परखा गया, लेकिन फैसले नहीं हो पाए।
इसलिए रक्षा मंत्रालय ने मार्च 2025 में मेट्रिया कंपनी से तीन-साल की वेट-लीज पर केसी-135 लेने का फैसला किया। अब विमान भारत आ चुका है और दिसंबर से ऑपरेशनल ट्रेनिंग शुरू हो जाएगी। (KC-135 Stratotanker India)
सैन्य सूत्रों के अनुसार, विमान के आगरा पहुंचते ही टेक्निकल निरीक्षण हुआ। इसके बाद भारतीय पायलटों को ट्रेनिंग शेड्यूल बताया गया। मेट्रिया की अमेरिकी पायलट टीम अब भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना दोनों को एयर टू एय़र रिफ्यूलिंग की ट्रेनिंग देगी।
आगरा बेस को इसलिए चुना गया क्योंकि यह भारत का सेंटर है और यहां से पूरे उत्तर, पश्चिम और पूर्वी क्षेत्र में ट्रेनिंग मिशन आसानी से चलाए जा सकते हैं।
इससे भारत की क्षमता पर क्या होगा असर?
इस टैंकर के आने से भारतीय वायुसेना को दो बड़े फायदे मिलेंगे। पहला, ट्रेनिंग गैप पूरा होगा। कई महीने से एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग ट्रेनिंग सही तरह से नहीं हो पा रही थी। अब 100 से ज्यादा पायलट ट्रेनिंग ले सकेंगे।
दूसरा, ऑपरेशनल रेंज बढ़ेगी। भारतीय फाइटर जेट अब दूर-दराज के मिशनों में बिना बीच में लैंड किए जा सकेंगे। यह क्षमता खासकर उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर बहुत अहम है।
आगरा में परीक्षण उड़ानें शुरू हो चुकी हैं। वायुसेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि यह टैंकर अगले हफ्ते से ट्रेनिंग मिशन शुरू कर देगा। सोशल मीडिया पर केसी-135 (KC-135 Stratotanker India) की लैंडिंग की तस्वीरें और वीडियो वायरल हैं। डिफेंस विशेषज्ञों ने इसे “फोर्स मल्टीप्लायर” और “सही समय पर मिला सहयोग” बताया है।
भारतीय वायुसेना अभी भी 6-8 एयरबस एमआरटीटी खरीदने की योजना पर विचार कर रहा है। डीआरडीओ भी स्वदेशी एयर-टू-एयर रिफ्यूलर बनाने पर स्टडी कर रहा है। लेकिन तब तक केसी-135 एक “ब्रिजिंग सॉल्यूशन” की तरह काम करेगा।
