📍नई दिल्ली | 19 Sep, 2025, 8:28 PM
Relocation of terror camps: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों की रणनीति में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। खुफिया सूत्रों के मुताबिक ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में कम से कम नौ बड़े आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया था। जिसके बाद घबराए पाकिस्तान ने इन संगठनों को अपने ठिकाने खैबर पख्तूनख्वा (KPK) प्रांत में शिफ्ट करने का फरमान जारी कर दिया है।
सूत्रों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठन अब पीओके को असुरक्षित मानते हैं। उन्हें लगता है कि भारतीय सेना की सटीक हमले की क्षमता के सामने पीओके अब सुरक्षित नहीं है। यही वजह है कि उन्होंने खैबर पख्तूनख्वा यानी केपीके का रुख किया है, क्योंकि यहां भौगोलिक हालात बिल्कुल अलग हैं। वहीं, अफगान बॉर्डर के पास जिहादी सेफ हेवन पहले से मौजूद हैं और पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियों का सीधा समर्थन भी मिलता है।

Relocation of terror camps: मंसेहरा में भर्तियों का खेल
सूत्रों के मुताबिक सबसे बड़ी जानकारी मंसेहरा जिले के गरही हबीबुल्ला कस्बे से सामने आई है। यहां 14 सितंबर 2025 को भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच शुरू होने से करीब सात घंटे पहले जैश-ए-मोहम्मद ने एक पब्लिक भर्ती अभियान का आयोजन किया था।
हालांकि दिखावे के लिए इसे देवबंदी धार्मिक सम्मेलन बताया गया, लेकिन असल में यह जैश और जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम द्वारा मिलकर चलाया गया भर्ती अभियान था। इस कार्यक्रम की अगुवाई जैश के खैबर पख्तूनख्वा और कश्मीर प्रभारी मौलाना मुफ्ती मसूद इलियास कश्मीरी उर्फ अबु मोहम्मद ने की। यह वही व्यक्ति है, जो जैश के संस्थापक मसूद अजहर का करीबी माना जाता है और भारत में वांछित आतंकियों की सूची में शामिल है।
इलियास कश्मीरी ने 14 सितंबर 2025 को खैबर पख्तूनख्वा के गढ़ी हबीबुल्लाह में आयोजित ‘मिशन मुस्तफा कॉन्फ्रेंस’ में बयान दिया था कि ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने बहावलपुर के मारकज सुब्हानअल्लाह (जैश का मुख्यालय) पर हमला किया, जिसमें मसूद अजहर का पूरा परिवार (बीवी, बेटे और बच्चे) “टुकड़े-टुकड़े हो गया”। उसने कहा, “सब कुछ कुर्बान करने के बाद, 7 मई को बहावलपुर में मौलाना मसूद अजहर के परिवार के लोग रेजा-रेजा हो गए, टुकड़ों में तक्सीम हो गए।” कश्मीरी ने दावा किया था कि पाकिस्तानी सेना और सेना प्रमुख आसिम मुनीर जैश को खुला समर्थन देते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय हमलों में मारे गए जैश सदस्यों के अंतिम संस्कार में पाकिस्तानी सेना के जनरल पहुंचे थे।

Relocation of terror camps: पुलिस सुरक्षा में जैश का कार्यक्रम
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यह पूरा कार्यक्रम पुलिस सुरक्षा में हुआ। स्थानीय पुलिस थाने का इंस्पेक्टर लियाकत शाह खुद मौजूद था। जेईएम के हथियारबंद आतंकी अमेरिकी एम-4 राइफल्स लेकर सुरक्षा में खड़े थे। इससे यह साफ है कि पाकिस्तान की सरकारी मशीनरी न सिर्फ इन संगठनों को संरक्षण देती है, बल्कि इनके खुलेआम कार्यक्रमों को भी सहयोग करती है।

Relocation of terror camps: ओसामा बिन लादेन को बताया प्रिंस
सूत्रों ने बताया कि कार्यक्रम में मसूद इलियास कश्मीरी ने करीब 30 मिनट का भाषण दिया। उसने ओसामा बिन लादेन को शोहदा-ए-इस्लाम और प्रिंस ऑफ अरब कहकर पेश किया। साथ ही उसने जेईएम की विचारधारा को सीधे अल-कायदा की विरासत से जोड़ दिया।
उसने लोगों को याद दिलाया कि 1999 के कंधार हाइजैक के बाद जब मसूद अजहर भारत की जेल से छूटकर पाकिस्तान लौटा था, तब उसने खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट को अपना मुख्यालय बनाया था। उसने कहा कि केपीके हमेशा से मुजाहिदीन का सुरक्षित ठिकाना रहा है और आगे भी रहेगा।
Relocation of terror camps: ऑपरेशन सिंदूर का किया जिक्र
कश्मीरी ने अपने भाषण में साफ कहा कि 7 मई को जब भारत ने जैश के मरकज सुब्हानअल्लाह कैंप पर हमला किया और मसूद अजहर के परिवार के कई सदस्य मारे गए, तब पाकिस्तानी सेना ने इसे गंभीर मानते हुए जनरल हेडक्वार्टर (GHQ) से आदेश जारी किया। जिसके अनुसार, सेना के अधिकारियों ने आतंकियों के जनाजे में सलामी दी और पाकिस्तान एयर फोर्स ने ऊपर से सुरक्षा दी। वहीं, कश्मीरी के इस बयान से यह खुलासा हुआ कि पाकिस्तान की सेना खुद इन आतंकियों को शहीद मानती है और खुलेआम उनका सम्मान करती है।

Relocation of terror camps: भर्ती कैंप और नए ट्रेनिंग सेंटर
खुफिया एजेंसियों के मुताबिक यह पूरा आयोजन दरअसल भर्ती के लिए था। सूत्रों ने पुष्टि की है कि मंसेहरा में मरकज शोहदा-ए-इस्लाम नामक ट्रेनिंग कैंप का विस्तार भी किया जा रहा है। लोगों को खुलेआम कहा गया कि वे जैश में भर्ती हों और जिहाद के लिए तैयार रहें।
स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि इस कैंप में पिछले कुछ महीनों से लगातार निर्माण कार्य और सामग्री की सप्लाई बढ़ी है। इससे यह साफ है कि ऑपरेशन सिंदूर में पीओके के अड्डे नष्ट होने के बाद जैश ने अपने नए ठिकाने के रूप में केपीके को चुना है।
Relocation of terror camps: पेशावर में अगला बड़ा इवेंट
सूत्रों ने बताया कि जैश अब 25 सितंबर 2025 को पेशावर में मरकज शहीद मकसूदाबाद में एक और बड़ा कार्यक्रम करने जा रहा है। यह सभा मसूद अजहर के भाई यूसुफ अजहर की याद में होगी, जो ऑपरेशन सिंदूर में मारा गया था।
इस कार्यक्रम का आयोजन जैश के नए नाम अल-मुराबितून के तहत किया जाएगा। यह नाम पश्चिम अफ्रीका के एक अल-कायदा समूह से मिलता-जुलता है, जिसका अर्थ है – इस्लाम की जमीन के रक्षक। सूत्रों का कहना है कि नाम बदलकर जैश अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचना चाहता है, क्योंकि यह पहले से प्रतिबंधित संगठन है।

Relocation of terror camps: हिजबुल मुजाहिदीन का नया ठिकाना
सिर्फ जैश ही नहीं, बल्कि हिजबुल मुजाहिदीन ने भी खैबर पख्तूनख्वा यानी केपीके में अपने ठिकाने बनाने शुरू कर दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक, पूर्व पाकिस्तानी कमांडो खालिद खान की अगुवाई में लोअर दिर जिले के बंडाई इलाके में नया ट्रेनिंग सेंटर एचएम- 313 बनाया जा रहा है।

यह जमीन अगस्त 2024 में खरीदी गई थी और अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद यहां तेजी से निर्माण का काम चल रहा है। 313 नाम का सीधा संबंध इस्लामी इतिहास की बद्र की जंग और अल-कायदा की ब्रिगेड 313 से है। इससे साफ है कि हिजबुल अब वैश्विक जिहादी समूहों से अपनी पहचान जोड़ना चाहता है।
मसूद इलियास कश्मीरी की भूमिका
इस पूरी रणनीति के केंद्र में मसूद इलियास कश्मीरी है। वह 2001 से जैश से जुड़ा और 2007 में उसने पीओके में अपना ट्रेनिंग कैंप बनाया। बाद में उसे केपीके और कश्मीर का अमीर बनाया गया। वह 1980 के दशक में पाकिस्तानी सेना की स्पेशल सर्विस ग्रुप (SSG) में शामिल हुआ था। सोवियत-अफगान युद्ध (1979-1989) में उसने मुजाहिदीनों को माइन वारफेयर की ट्रेनिंग दी। इस दौरान उसने एक आंख और एक उंगली गंवा दी। 1990 के दशक में कश्मीर में भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लामी (HuJI) के नेता कारी सैफुल्लाह अख्तर से मतभेद के बाद 313 ब्रिगेड नामक इसने अपनी यूनिट भी बनाई, जो अल-कायदा से जुड़ी हुई है। एक समय में इसे लादेन का उत्तराधिकारी भी कहा जाता था। वहीं, 2011 में अमेरिकी ड्रोन हमले में इसके मारे जाने की रिपोर्ट भी आई। लेकिन जून 2011 में टीटीपी ने इसे जिंदा बताया। वहीं, 2012 में यूएन ने इसे ‘रिपोर्टेडली डीड’ कहा, लेकिन हाल ही में इसके कई वीडियो सामने आने के बाद यह स्पष्ट है कि इलियास कश्मीरी अभी जिंदा है। इलियास कश्मीरी को दक्षिण एशिया के सबसे खतरनाक जिहादी कमांडरों में गिना जाता है।

भारत की एनआईए चार्जशीट में उसका नाम 2018 के सुंजवां आर्मी कैंप अटैक में आया था, जिसमें छह भारतीय सैनिक और एक नागरिक शहीद हुए थे। 2019 में उसने लश्कर-ए-तैयबा और जैश की साझा ब्रिगेड हिलाल-उल-हक की कमान संभाली, जिसे बाद में पीपुल्स एंटी फासीस्ट फ्रंट (PAFF) नाम दिया गया।
जेईएम का नेता मसूद इलियास कश्मीरी सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका और इजराइल के खिलाफ भी जहर उगलता है। इसके बावजूद पाकिस्तान इन संगठनों को पनाह दे रहा है। यह वही नीति है जिसमें पाकिस्तान एक तरफ सहयोगी दिखता है और दूसरी तरफ आतंकियों को बढ़ावा देता है।