back to top
Monday, September 1, 2025
HomeGeopoliticsModi-Xi Meeting in Tianjin: क्या भारत से अपनी शर्तों पर अच्छे संबंध...

Modi-Xi Meeting in Tianjin: क्या भारत से अपनी शर्तों पर अच्छे संबंध चाहता है चीन? सीमा विवाद क्यों है अब भी बड़ी चुनौती?

सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ रिटायर्ड कोमोडर सी. उदय भास्कर ने कहा, “तियानजिन में जो हुआ उसे प्रगति तो कहा जा सकता है, लेकिन इसे ‘ब्रेकथ्रू’ कहना सही नहीं होगा। सीमा विवाद अब भी वहीं का वहीं है। दोनों देशों की कोशिश फिलहाल संवाद बनाए रखने और रिश्तों को स्थिर करने तक ही सीमित है।”

रक्षा समाचार WhatsApp Channel Follow US
Read Time 0.24 mintue

📍तियानजिन (चीन) | 1 Sep, 2025, 12:57 PM

Modi-Xi Meeting in Tianjin: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान तियानजिन में हुई। यह बैठक ऐसे समय में हुई जब भारत और अमेरिका के रिश्तों में ट्रंप प्रशासन की टैरिफ पॉलिसी के चलते तनाव आया है। लिहाजा, इस मुलाकात पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी थीं।

China role in Op Sindoor: भारतीय सेना ने बताया ऑपरेशन सिंदूर में एक नहीं तीन थे दुश्मन! चीन की भूमिका का किया खुलासा, पाकिस्तान को मोहरा बना की हथियारों की टेस्टिंग!

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “हमारे विशेष प्रतिनिधियों के बीच बॉर्डर मैनेजमेंट को लेकर सहमति बनी है। कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हुई है और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों को भी बहाल किया जा रहा है। 2.8 अरब लोगों के हित आपसी सहयोग से जुड़े हैं। भारत रिश्तों को आपसी विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता के आधार पर आगे ले जाना चाहता है।”

राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, “दुनिया परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। भारत और चीन दो सबसे प्राचीन सभ्यताएं हैं। हम दोनों ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं। ड्रैगन और एलिफेंट का साथ आना एशिया और पूरी दुनिया के लिए जरूरी है।”

Modi-Xi Meeting in Tianjin: सीमा पर क्या हैं हालात: शांति लेकिन नहीं है भरोसा

हालांकि भारत और चीन ने डिसएंगेजमेंट की प्रक्रिया पूरी करने का दावा किया है, लेकिन जमीनी हालात अब भी चिंताजनक हैं। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “गलवान और पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर अस्थायी बफर जोन बनाए गए थे। इन्हें अस्थायी कहा गया था, लेकिन अब तक गश्त पूरी तरह बहाल नहीं हुई। भारतीय जवान उन इलाकों में नहीं जा पा रहे जिन्हें वे पहले नियमित रूप से गश्त करते थे।”

एक अन्य अधिकारी ने बताया, “पीएलए की कई ब्रिगेड अब भी आगे की चौकियों पर मौजूद हैं। उनके पास टैंक, तोपें और सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम तैनात हैं। उन्होंने अपने डिफेंस रेजिमेंट्स को पीछे नहीं हटाया है। यह भरोसा न होने की सबसे बड़ी वजह है।”

पूर्वी लद्दाख में तैनात एक अधिकारी ने कहा, “हमारी प्राथमिकता पैट्रोलिंग राइट्स को बहाल करना है। जब तक हमारे जवान पारंपरिक इलाकों में गश्त नहीं कर पाते, तब तक सीमा पर स्थायी शांति की बात अधूरी रहेगी।”

यह भी पढ़ें:  India-Bangladesh: मोदी और मुहम्मद यूनुस की संभावित मुलाकात; क्या BIMSTEC शिखर सम्मेलन में हो सकता है बड़ा फैसला?

पूर्वी लद्दाख में 2020 से 2022 के बीच बने “नो पैट्रोल बफर जोन” भारत के लिए नुकसानदेह साबित हुए हैं। इनमें गलवान, पैंगोंग त्सो का उत्तर किनारा, कैलाश रेंज और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे क्षेत्र शामिल हैं। ये बफर जोन अस्थायी तौर पर बनाए गए थे, जिनकी चौड़ाई 3 से 10 किलोमीटर तक है। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, इन्हें केवल अस्थायी व्यवस्था के तौर पर स्वीकार किया गया था, लेकिन अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

Modi-Xi Meeting in Tianjin: सीमा विवाद अब भी वहीं का वहीं

सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ रिटायर्ड कोमोडर सी. उदय भास्कर ने कहा, “तियानजिन में जो हुआ उसे प्रगति तो कहा जा सकता है, लेकिन इसे ‘ब्रेकथ्रू’ कहना सही नहीं होगा। सीमा विवाद अब भी वहीं का वहीं है। दोनों देशों की कोशिश फिलहाल संवाद बनाए रखने और रिश्तों को स्थिर करने तक ही सीमित है।”

उन्होंने कहा, तियानजिन बैठक का नतीजा सावधानी से स्वागत करने लायक है। यह दोनों नेताओं का उस सहमति को राजनीतिक स्तर पर समर्थन था, जो अगस्त की शुरुआत में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की दिल्ली यात्रा के दौरान बनी थी। भारत सरकार के आधिकारिक बयान में कहा गया कि “दोनों नेताओं ने पिछले साल रूस के कजान में हुई मुलाकात के बाद से रिश्तों में सकारात्मक प्रगति और स्थिरता का स्वागत किया।”

Modi-Xi Meeting in Tianjin: संदेह और अविश्वास कायम है

पूर्व राजनयिक विजय गोखले का कहना है, तियानजिन में सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात को न केवल दिल्ली बल्कि दुनिया की कई राजधानियों में गंभीरता से देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, “भारत हमेशा से चाहता है कि चीन के साथ कामकाजी रिश्ते बने रहें। लेकिन 2020 की गलवान झड़प ने उस प्रक्रिया को झटका दिया था। अब तियानजिन की बैठक को उसी प्रक्रिया की बहाली माना जा रहा है। फिर भी संदेह और अविश्वास कायम है।”

वह कहते हैं, राजीव गांधी के बाद से भारत के हर प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन के साथ स्थिर रिश्ते बनाए रखने की कोशिश की है। नरेंद्र मोदी भी इससे अलग नहीं हैं। हालांकि यह सच है कि मौजूदा भारत-चीन संबंध हाल के दशकों की तुलना में कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन हर प्रधानमंत्री को यही उम्मीद रही है कि वे सीमा पर स्थिरता लाएंगे और चीन के साथ संबंधों को सही दिशा में मोड़ेंगे।

यह भी पढ़ें:  Nyoma Airbase: पूर्वी लद्दाख में चीन से सटे इस एडवांस लैंडिंग ग्राउंड से जल्द उड़ान भरेंगे फाइटर जेट, पहली टेस्ट फ्लाइट की हो रही तैयारी

उन्होंने कहा, हालांकि, यह भी सच है कि भारत-चीन संबंधों ने कई बार गंभीर झटके खाए हैं। 2017 का डोकलाम संकट, 2020 की गलवान झड़प ने इस दिशा में हुई प्रगति को बाधित किया है। इस बार भी, तिआनजिन की बैठक से उम्मीद की जा रही है कि यह फिर से दोनों देशों के बीच भरोसे का माहौल बना सकती है। इसके साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि भारत और चीन, दो बड़े एशियाई देश, वैश्विक अस्थिरता के दौर में स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक साझा इच्छा रखते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत को अब देखना होगा कि चीन के शब्दों के पीछे ठोस कार्रवाई भी होती है या नहीं। चीन ने पहले भी कहा है कि भारत को कृषि उत्पाद, दवा उद्योग और आईटी सेवाओं के लिए बड़ा बाजार मिलेगा। लेकिन जब भी भारत ने अपने निर्यात को बढ़ाने की कोशिश की, तो चीन ने गैर-शुल्क बाधाओं और “प्रतिबंधों” का सहारा लिया।

वह आगे कहते हैं, भारत को यह समझना होगा कि अमेरिका अगर अपनी विदेश नीति को केवल अपने स्वार्थ के आधार पर पुन: संतुलित करता है, तो भारत को भी चीन के साथ रणनीतिक पुनर्संतुलन तलाशने का अधिकार है। भारत के लिए अब सवाल यह है कि क्या वह चीन और अमेरिका दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रख सकता है। तिआनजिन की बैठक इस बात का संकेत हो सकती है कि भारत एक नए संतुलन की ओर बढ़ रहा है, जहां भारत-चीन संबंध और भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी साथ-साथ चलें।

Modi-Xi Meeting in Tianjin: कांग्रेस ने उठाए सवाल

कांग्रेस ने इस बैठक पर सवाल उठाए। पार्टी नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा, “गलवान में 20 जवानों की शहादत के बावजूद मोदी सरकार चीन के साथ सुलह की राह पर है। प्रधानमंत्री ने चीन की आक्रामकता को नजरअंदाज कर दिया है।”

यह भी पढ़ें:  Takshashila Survey 2024: भारत-चीन संबंधों को लेकर क्या सोचती है जनता, लोग बोले- चीन में होता लोकतंत्र तो ऐसे होते हालात

कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से पोस्ट किया गया, “ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन पाकिस्तान की मदद कर रहा था। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग से हाथ मिलाया और मुस्कुराते हुए तस्वीरें खिंचवाईं।”

चीनी सेना अभी भी अग्रिम मोर्चों पर

भारतीय सेना के एक वरिष्ठ कमांडर ने कहा, “चीनी सेना की कुछ ब्रिगेड जरूर 100 किलोमीटर पीछे हटी हैं, लेकिन कई अब भी अग्रिम मोर्चों पर मौजूद हैं। इसका मतलब यह है कि वे किसी भी वक्त अपनी स्थिति बदल सकते हैं। हमें हर स्थिति के लिए तैयार रहना होता है। डिप्लोमेसी जरूरी है, लेकिन हमारी जिम्मेदारी है कि किसी भी संभावित खतरे का सामना करने के लिए हम तैयार रहें।” एक कॉम्बाइंड आर्म्स ब्रिगेड में लगभग 4,500 से 5,000 सैनिक होते हैं, जिनके पास टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां, तोपखाना और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें होती हैं।

उन्होंने आगे कहा, “चीनी सेना ने सीमा पर बुनियादी ढांचे का विस्तार किया है। नई सड़कें, पुल और एयरबेस बनाए हैं। हमें बराबरी पर खड़े रहने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।” उन्होंने साफ कहा, “भले ही सीमा पर अब स्थिति पहले जैसा ‘हाई अलर्ट’ नहीं है, लेकिन अविश्वास बना हुआ है। जब तक डिएस्केलेशन और डी-इंडक्शन पूरा नहीं होता, तब तक कोई भी पक्ष ढील नहीं देगा।”

व्यापार असंतुलन का क्या होगाा?

तियानजिन में हुई बैठक में आर्थिक मुद्दों पर भी बात हुई। भारत ने व्यापार असंतुलन का मुद्दा उठाया। चीन भारत से कम खरीदता है जबकि भारत चीन से मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और रोजमर्रा की चीजें बड़ी मात्रा में आयात करता है।

इसके अलावा, चीन द्वारा यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) पर विशाल जलविद्युत परियोजना बनाए जाने की योजना पर भारत ने अपनी चिंता जताई। सूत्र मानते हैं कि इसका असर असम और अरुणाचल प्रदेश के जल संसाधनों पर पड़ सकता है। क्योंकि चीन ने हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयर करने को लेकर कुछ भी नहीं कहा है।

रक्षा समाचार WhatsApp Channel Follow US
हरेंद्र चौधरी
हरेंद्र चौधरीhttp://harendra@rakshasamachar.com
हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवादों, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।📍 Location: New Delhi, in 🎯 Area of Expertise: Defence, Diplomacy, National Security

Most Popular

Recent Comments

Share on WhatsApp