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Aksai Chin: अक्साई चिन पर भारत के दावे से घबराया ड्रैगन, गुपचुप दो प्रांतों में बांटने का चला दांव, ये है चीन की रणनीति

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📍नई दिल्ली | 30 Dec, 2024, 1:51 PM

Aksai Chin: एक तरफ जहां भारत और चीन में सीमा पर शांति स्थापित करने को लेकर बातचीत चल रही है, तो वहीं दूसरी तरफ चीन ने एक बार फिर विवादास्पद कदम उठाते हुए भारतीय क्षेत्र अक्साई चिन को लेकर अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया है। हाल ही में, चीन ने शिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र में दो नए काउंटी – हेआन काउंटी और हेकांग काउंटी – बनाने का एलान किया है। चीन के इस कदम ने भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।

Aksai Chin: China Secret Move to Divide Region Amid India's Claim

Aksai Chin: क्या है चीन का नया कदम?

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, उत्तर-पश्चिमी चीन के होटन प्रांत द्वारा इन दोनों नए काउंटी का प्रशासन किया जाएगा। हेआन काउंटी की सीट होंगलिउ टाउनशिप में और हेकांग काउंटी की सीट ज़ेयिडुला टाउनशिप में बनाई गई है। हेआन काउंटी लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है, जिसमें भारत का अक्साई चिन का बड़ा हिस्सा शामिल है। यह वही इलाका है जिसे भारत अपना क्षेत्र मानता है और चीन पर अवैध कब्जे का आरोप लगाता है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधि लगभग पांच साल बाद सीमा विवाद पर वार्ता के लिए बीजिंग में मिले थे। इस वार्ता के ठीक 10 दिन बाद चीन ने यह विवादास्पद फैसला लिया।

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Aksai Chin: भारत की प्रतिक्रिया

नई दिल्ली ने चीन के इस कदम पर अपनी नजर बनाए रखी है। हालांकि, भारत की ओर से इस पर आधिकारिक बयान नहीं आया है। वहीं, विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि चीन को डर है कि भारत लगातार अक्साई चिन को लद्दाख का हिस्सा बताता रहा है। 2019 में जब भारत ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया, तब से चीन की चिंता और बढ़ गई। इसी वजह से उसने अक्साई चिन को दो नए प्रांतों में विभाजित करने का फैसला किया।

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Aksai Chin और उसका सामरिक महत्व

अक्साई चिन, जो भारत के लद्दाख क्षेत्र का हिस्सा है, चीन के लिए सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र जी-219 हाईवे से जुड़ा हुआ है, जो चीन के झिंजियांग और तिब्बत को जोड़ता है। होंगलिउ टाउनशिप, जिसे हेआन काउंटी का प्रशासनिक मुख्यालय बनाया गया है, भारतीय सीमा रेखा से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। होंगलिउ को “दाहोंगल्युतन” भी कहा जाता है।

होंगलिउ पहले एक साधारण सैन्य बैरक और ट्रक-स्टॉप था। लेकिन 2017 से इस क्षेत्र का तेजी से विकास किया जा रहा है। यह जगह भारतीय सीमा के करीब है और यहां खनिज संसाधनों, खासकर लिथियम खनन, के चलते इसका रणनीतिक महत्व बढ़ गया है।

चीन का प्रशासनिक बदलाव और रणनीतिक संकेत

चीन ने हेआन काउंटी और हेकांग काउंटी की स्थापना के साथ अक्साई चिन में अपनी स्थिति को और मजबूत करने का संकेत दिया है। हेआन काउंटी में प्रशासनिक मुख्यालय की स्थापना के साथ, यह संभावना है कि क्षेत्र में नई वित्तीय और प्रशासनिक गतिविधियों का विस्तार होगा।

चीन ने इन काउंटी की स्थापना के जरिए यह संकेत दिया है कि वह अक्साई चिन पर अपने कब्जे को और मजबूत करना चाहता है। होंगलिउ जैसे क्षेत्र को काउंटी मुख्यालय बनाकर चीन ने इसे प्रशासनिक और रणनीतिक केंद्र बनाने का प्रयास किया है।

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भारत-चीन सीमा विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चीन ने अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके अलावा, पाकिस्तान ने 1963 में साक्सगाम घाटी के 5,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को चीन को सौंप दिया था।

चीन अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर भी दावा करता है और इसे दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है। इसके अलावा, चीन हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर भी अपना दावा करता है।

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चीन का क्या है उद्देश्य

चीन ने अक्साई चिन में दो नए काउंटी बनाकर एक स्पष्ट संदेश दिया है। हेआन काउंटी और हेकांग काउंटी के माध्यम से चीन न केवल अपने क्षेत्रीय दावों को सशक्त कर रहा है, बल्कि वह इस क्षेत्र में आर्थिक और सामरिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है। साथ ही, अपने दावे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर वैध दिखाने की कोशिश भी है।

चीन की यह चाल, भारत की सीमा पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया कदम है। यह रणनीति न केवल सीमा पर तनाव को बढ़ा सकती है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी चुनौती पेश कर सकती है।

लिथियम खनन और चीन की आर्थिक रणनीति

होंगलिउ टाउनशिप, जो अब हेआन काउंटी का प्रशासनिक मुख्यालय है, एक उभरता हुआ लिथियम खनन केंद्र है। लिथियम, जो बैटरी निर्माण में उपयोग होता है, वैश्विक बाजार में अत्यधिक मांग में है। चीन के इस कदम से संकेत मिलता है कि वह अक्साई चिन को न केवल एक सामरिक संपत्ति के रूप में देख रहा है, बल्कि एक आर्थिक संसाधन के रूप में भी मान रहा है।

भारत के लिए क्या है चिंता की बात?

चीन का यह कदम भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह भारत की सीमाओं के करीब गतिविधियां बढ़ाने का संकेत देता है। भारत को न केवल अपने क्षेत्रीय दावे को सुदृढ़ करना होगा, बल्कि चीन की इन गतिविधियों का जवाब देने के लिए नई रणनीतियां भी अपनानी होंगी।

भारत को अपनी सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन की इस रणनीति का कड़ा विरोध करना होगा। इसके अलावा, भारत को अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास को तेजी से बढ़ावा देना होगा।

चीन की यह नई रणनीति दर्शाती है कि वह अपने क्षेत्रीय दावों को सशक्त करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। अक्साई चिन में नई प्रशासनिक संरचना की स्थापना भारत के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि चीन अपने दावों को लेकर कितना गंभीर है।

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क्या है अक्साई चिन विवाद और इसका इतिहास?

अक्साई चिन भारत और चीन के बीच विवाद का एक अहम क्षेत्र है, जो लद्दाख और चीन के शिनजियांग प्रांत के बीच स्थित है। यह क्षेत्र 38,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और भारत इसे अपने लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश का हिस्सा मानता है, जबकि चीन ने इस पर 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान अवैध रूप से कब्जा कर लिया।

ब्रिटिश शासन के दौरान अक्साई चिन क्षेत्र को लेकर कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं था। 19वीं सदी में ब्रिटिश भारत और तत्कालीन किंग साम्राज्य के बीच दो प्रमुख सीमा रेखाओं की बात हुई—जॉनसन रेखा और मैककार्टनी-मैकडोनाल्ड रेखा। भारत ने जॉनसन रेखा को मान्यता दी, जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा है, जबकि चीन ने मैककार्टनी-मैकडोनाल्ड रेखा को प्राथमिकता दी, जिससे यह क्षेत्र उनके नियंत्रण में आ जाता।

चीन ने 1950 के दशक में अक्साई चिन के माध्यम से शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ने के लिए एक सड़क बनाई। इसने भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जे को मजबूती दी। भारत ने इसका विरोध किया, लेकिन 1962 के युद्ध में चीन ने पूरे अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया।

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  • Aksai Chin: अक्साई चिन पर भारत के दावे से घबराया ड्रैगन, गुपचुप दो प्रांतों में बांटने का चला दांव, ये है चीन की रणनीति

    हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवाद, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

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