📍नई दिल्ली | 6 days ago
Xenon Gas: हाल ही में चार ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के दौरान जीनॉन गैस का इस्तेमाल करके इतिहास रच दिया। उन्होंने इस गैस की मदद से महज कुछ दिनों में एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी कर ली, जो आमतौर पर हफ्तों लेती है। लेकिन इस नए तरीके ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जीनॉन गैस माउंटेनियरिंग का भविष्य है, या इससे आने वाले खतरों को नजरअंदाज कर रहे हैं? आइए, इस गैस के बारे में विस्तार से जानते हैं, इसके फायदे, नुकसान, और माउंटेनियरिंग में इसके इस्तेमाल पर हो रही बहस को समझते हैं।
क्या है Xenon Gas?
जीनॉन (Xenon) एक रंगहीन, गंधहीन, और स्वादहीन नोबल गैस है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में बहुत कम मात्रा में मौजूद होती है। यह उन छह नोबल गैसों में से एक है जो रासायनिक रूप से बहुत कम प्रतिक्रिया करती हैं। इसका मतलब है कि यह आसानी से किसी अन्य तत्व के साथ मिलकर यौगिक नहीं बनाती। जीनॉन का रासायनिक प्रतीक Xe है और इसका परमाणु क्रमांक 54 है। यह गैस हवा से निकाली जाती है, जिसमें यह लगभग 0.000009% (90 पार्ट्स पर बिलियन) की मात्रा में पाई जाती है।

जीनॉन (Xenon Gas) का सबसे ज्यादा इस्तेमाल औद्योगिक और चिकित्सा क्षेत्र में होता है। मसलन, यह हाई-इंटेंसिटी लैंप (जैसे कि कार की हेडलाइट्स और सिनेमा प्रोजेक्टर्स), लेजर तकनीक, और अंतरिक्ष यान के इंजनों में इस्तेमाल की जाती है। चिकित्सा में, जीनॉन का उपयोग एनेस्थीसिया (बेहोशी की दवा) के रूप में किया जाता है, क्योंकि यह तेजी से काम करती है और मरीज के शरीर से जल्दी बाहर निकल जाती है। लेकिन अब इसका इस्तेमाल माउंटेनियरिंग में होने लगा है, जिसने सबका ध्यान खींचा है।
Xenon Gas कैसे काम करती है?
जब हम ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ते हैं, जैसे कि माउंट एवरेस्ट, तो हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। इसे हाइपोक्सिया कहते हैं, यानी शरीर को जरूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। इससे सिरदर्द, थकान, चक्कर, और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है। पर्वतारोही आमतौर पर इस कमी को पूरा करने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जीनॉन गैस एक नया विकल्प बनकर सामने आई है।
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जीनॉन गैस (Xenon Gas) का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह शरीर में हाइपोक्सिया-इंड्यूस्ड फैक्टर (HIF) नामक प्रोटीन को सक्रिय कर देती है। यह प्रोटीन शरीर को कम ऑक्सीजन वाले माहौल में भी बेहतर ढंग से काम करने में मदद करता है। आसान भाषा में कहें, तो जीनॉन शरीर को यह सिखा देती है कि कम ऑक्सीजन में भी सांस लेना और काम करना कैसे है। इसके चलते पर्वतारोही तेजी से ऊंचाई पर अनुकूलन कर पाते हैं, जिसे आमतौर पर “एक्लिमटाइजेशन” कहा जाता है।
इसके अलावा, जीनॉन गैस (Xenon Gas) का कोई साइड इफेक्ट नहीं माना जाता, क्योंकि यह शरीर में रासायनिक प्रतिक्रिया नहीं करती और जल्दी बाहर निकल जाती है। लेकिन इसका असर कितना सुरक्षित है, इस पर अभी और रिसर्च की जरूरत है।
माउंट एवरेस्ट पर Xenon Gas का इस्तेमाल
माउंट एवरेस्ट, जो दुनिया की सबसे ऊंची चोटी (8,848 मीटर) है, पर चढ़ाई करना हर पर्वतारोही का सपना होता है। लेकिन यह बेहद मुश्किल और खतरनाक है। आमतौर पर पर्वतारोहियों को इस चढ़ाई के लिए हफ्तों की तैयारी करनी पड़ती है। वे धीरे-धीरे ऊंचाई बढ़ाते हैं ताकि उनका शरीर कम ऑक्सीजन वाले माहौल में ढल सके। इस प्रक्रिया में बेस कैंप से लेकर शिखर तक पहुंचने और वापस आने में 6 से 8 हफ्ते लग सकते हैं।
लेकिन हाल ही में चार ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने जीनॉन गैस (Xenon Gas) का इस्तेमाल करके बेहद कम समय में चढ़ाई पूरी कर ली। उन्होंने लंदन से अपनी यात्रा शुरू की और एक हफ्ते से भी कम समय में एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी कर ली। उन्होंने गैस को सांस के जरिए लिया और इसका असर इतना तेज था कि उनका शरीर जल्दी ही ऊंचाई पर ढल गया। यह एक रिकॉर्ड तोड़ उपलब्धि थी, लेकिन इसने कई सवाल भी खड़े किए।
महीनों की ट्रेनिंग, हाइपोक्सिक चैंबर सेशंस और जीनॉन गैस ट्रीटमेंट के बाद, चार ब्रिटिश आर्मी वेटरन्स ने लंदन से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक की सबसे तेज चढ़ाई को सफलतापूर्वक पूरा किया। फर्टेनबाख एडवेंचर्स के मालिक लुकास फर्टेनबाख ने पुष्टि की कि चार वेटरन्स-मेजर गार्थ मिलर, कर्नल एलिस्टेयर स्कॉट कार्न्स, एंथनी जेम्स स्टैजिकर और केविन फ्रांसिस गॉडलिंगटन ने 21 मई को सुबह करीब 7:15 बजे स्थानीय समय पर माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे। लुकास ने कहा, “हमारे पर्वतारोही अपने लक्ष्य को हासिल करने की राह पर हैं: लंदन से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक और वापस, सबसे तेज चढ़ाई।” टीम ने 16 मई की दोपहर को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट से उड़ान भरी और काठमांडू पहुंचकर अपनी ‘एवरेस्ट इन जस्ट 7 डेज’ expedition शुरू किया। वे 17 मई को दोपहर तक एवरेस्ट बेस कैंप पहुंच गए और 20 मई को रात 10:30 बजे अपनी चोटी की चढ़ाई शुरू की
Xenon Gas के फायदे
जीनॉन गैस (Xenon Gas) का इस्तेमाल माउंटेनियरिंग में कई तरह से फायदेमंद हो सकता है। जीनॉन गैस शरीर को कम ऑक्सीजन में जल्दी ढाल देती है। इससे पर्वतारोहियों को हाइपोक्सिया से होने वाली समस्याओं, जैसे सिरदर्द और थकान, से बचने में मदद मिलती है।
वहीं, पारंपरिक तरीके से चढ़ाई में हफ्तों लगते हैं, लेकिन जीनॉन की मदद से यह समय कुछ दिनों तक सिमट सकता है। इससे पर्वतारोहियों को मौसम की मार से बचने में भी मदद मिलती है। हाई एल्टटीट्यूड पर ज्यादा समय बिताने से हिमस्खलन, हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान गिरना), और गिरने का खतरा बढ़ता है। जीनॉन की वजह से कम समय में चढ़ाई पूरी होने से ये जोखिम कम हो सकते हैं। साथ ही, एवरेस्ट पर चढ़ाई में शेरपा गाइड्स की मदद ली जाती है, जो पर्वतारोहियों के लिए सामान ढोते हैं और रास्ता दिखाते हैं। कम समय में चढ़ाई होने से शेरपाओं को भी कम समय तक जोखिम में रहना पड़ता है।
Xenon Gas के नुकसान और खतरे
जीनॉन गैस (Xenon Gas) के फायदों के साथ-साथ इसके कुछ नुकसान और खतरे भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिकों का कहना है कि जीनॉन का शरीर पर लंबे समय तक असर अभी पूरी तरह समझा नहीं गया है। हाइपोक्सिया-इंड्यूस्ड फैक्टर को सक्रिय करने से शरीर में कई बदलाव होते हैं, जो बाद में नुकसानदायक हो सकते हैं। वहीं, कई पर्वतारोही मानते हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ाई सिर्फ शारीरिक चुनौती नहीं, बल्कि एक मानसिक और आध्यात्मिक अनुभव भी है। जीनॉन का इस्तेमाल इस अनुभव को “छोटा” कर देता है, क्योंकि यह चढ़ाई को आसान बना देता है।
नेपाल सरकार का कहना है कि जीनॉन का इस्तेमाल माउंटेनियरिंग की नैतिकता के खिलाफ है। इससे पहाड़ों पर भीड़ बढ़ सकती है, जिससे कचरे और प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो सकती है। वगीं, अगर जीनॉन की वजह से चढ़ाई का समय कम हो जाता है, तो शेरपाओं और स्थानीय गाइड्स की कमाई पर असर पड़ सकता है, क्योंकि उनकी सेवाओं की जरूरत कम हो जाएगी।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
जीनॉन गैस (Xenon Gas) के इस्तेमाल पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। मॉन्टगोमरी कॉलेज यूनिवर्सिटी, लंदन के प्रोफेसर ह्यू मॉन्टगोमरी, जो खुद एक पर्वतारोही भी हैं, कहते हैं कि जीनॉन शरीर में हाइपोक्सिया को सक्रिय करने का काम करती है, लेकिन इसके लंबे प्रभावों का अभी और अध्ययन करना बाकी है। उन्होंने कहा, “हमें यह समझना होगा कि यह गैस कैसे काम करती है और क्या यह वाकई सुरक्षित है।”
वहीं, नेपाल टूरिज्म डिपार्टमेंट से जुड़े हिमाल गौतम इसे गलत मानते हैं। उनका कहना है कि इससे न केवल पहाड़ों पर प्रदूषण बढ़ेगा, बल्कि शेरपाओं की आजीविका पर भी असर पड़ेगा। दूसरी तरफ, इस अभियान में शामिल एक ब्रिटिश पर्वतारोही लुकास फर्टेनबाख का कहना है, “जीनॉन ने दिखा दिया कि यह काम कर सकती है। यह माउंटेनियरिंग को आसान और सुरक्षित बनाती है।”
नैतिकता का सवाल
जीनॉन गैस (Xenon Gas) का इस्तेमाल माउंटेनियरिंग में एक नैतिक सवाल भी खड़ा करता है। माउंटेनियरिंग को हमेशा से एक चुनौतीपूर्ण खेल माना गया है, जिसमें शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत होती है। लेकिन अगर जीनॉन जैसी गैस से यह आसान हो जाए, तो क्या यह इस खेल की मूल भावना को खत्म नहीं कर देगा?
कई पर्वतारोही मानते हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ाई का असली मजा उसकी कठिनाई में है। अगर हर कोई जीनॉन लेकर कुछ दिनों में चढ़ाई कर लेगा, तो इस उपलब्धि का मूल्य कम हो जाएगा। इसके अलावा, यह भी सवाल है कि क्या जीनॉन का इस्तेमाल खेल में “डोपिंग” की तरह तो नहीं है? जैसे ओलंपिक में प्रदर्शन बढ़ाने वाली दवाओं पर बैन है, वैसे ही माउंटेनियरिंग में भी ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए या नहीं?
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जीनॉन गैस (Xenon Gas) का माउंटेनियरिंग में इस्तेमाल अभी शुरुआती दौर में है। इसके फायदे और नुकसान को देखते हुए यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह भविष्य है या नहीं। लेकिन यह साफ है कि इसके इस्तेमाल से माउंटेनियरिंग की दुनिया में एक नई बहस छिड़ गई है। अगर जीनॉन का इस्तेमाल बढ़ता है, तो हो सकता है कि भविष्य में ज्यादा लोग एवरेस्ट और अन्य ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ने की हिम्मत करेंगे। इससे माउंटेनियरिंग को बढ़ावा मिल सकता है। लेकिन इसके साथ ही, सुरक्षा, पर्यावरण, और नैतिकता से जुड़े सवालों का जवाब ढूंढना भी जरूरी है। नेपाल सरकार और अंतरराष्ट्रीय माउंटेनियरिंग संगठनों को इस पर सख्त नियम बनाने की जरूरत होगी, ताकि इस गैस का सही और जिम्मेदारीपूर्ण इस्तेमाल हो।