📍नई दिल्ली | 22 Oct, 2025, 9:49 PM
Civil-Military Fusion: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ तीनों सेनाओं के बीच अभूतपूर्व जॉइंटनेस और समन्वय देखने को मिला है। उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन ने यह साबित किया कि भारत अब पारंपरिक युद्ध की सोच से आगे बढ़कर संयुक्त, अनुकूलनशील और पूर्व-नियोजित रणनीतियों से काम कर रहा है।
राजधानी दिल्ली में रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल राज शुक्ला की नई किताब “CIVIL-MILITARY FUSION AS A METRIC OF NATIONAL POWER AND COMPREHENSIVE SECURITY” के बुक लॉन्च के मौके पर रक्षा मंत्री ने कहा कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में युद्ध की प्रकृति लगातार बदल रही है। अब युद्ध सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि हाइब्रिड और असिमेट्रिक रूपों में लड़े जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर सशस्त्र बलों को “फ्यूचर-रेडी” बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं।
रक्षा मंत्री ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर ने यह दिखाया कि जब तीनों सेनाएं थल, नौसेना और वायुसेना एक साथ तालमेल से काम करती हैं, तो परिणाम ऐतिहासिक होते हैं। उन्होंने कहा पाकिस्तान आज भी उस रणनीतिक झटके से उबर नहीं पाया है।

Civil-Military Fusion को बताया राष्ट्रीय शक्ति का नया आधार
इस अवसर पर रक्षा मंत्री ने लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) राज शुक्ला की पुस्तक ‘Civil-Military Fusion as a Metric of National Power & Comprehensive Security’ का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि सिविल-मिलिट्री फ्यूजन केवल “इंटीग्रेशन” नहीं है, बल्कि एक ऐसा “स्ट्रैटेजिक एनेबलर” है जो इनोवेशन, टेलेंट और तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
राजनाथ सिंह ने कहा, “सिविल और मिलिट्री सेक्टर को जोड़ना केवल रणनीति नहीं, बल्कि यह एक राष्ट्रीय मिशन है। जब हमारी इंडस्ट्री, अकादमिक संस्थान और डिफेंस सेक्टर एक साथ काम करते हैं, तो देश की आर्थिक उत्पादकता और सामरिक क्षमता दोनों बढ़ती हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब “डिविजन ऑफ लेबर” से आगे बढ़कर “इंटीग्रेशन ऑफ पर्पज” की दिशा में काम कर रहा है। यानी अलग-अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारियां भले अलग हों, लेकिन लक्ष्य एक ही है- राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी ताकत का समन्वय।
Civil-Military Fusion: जरूरी हो गया है सिविल-मिलिट्री तालमेल
रक्षा मंत्री ने कहा कि आज की तकनीकी दुनिया में रक्षा और नागरिक क्षेत्रों के बीच की सीमाएं लगभग समाप्त हो गई हैं।
उन्होंने कहा, “आज सूचना, सप्लाई चेन, व्यापार, रेयर मिनरल्स और अत्याधुनिक तकनीक– ये सब दोनों क्षेत्रों के लिए समान रूप से जरूरी हो गए हैं। ऐसे में सिविल-मिलिट्री फ्यूजन कोई फैशन नहीं, बल्कि समय की मांग है।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत की कई तकनीकें केवल नागरिक इस्तेमाल तक सीमित रहती हैं, जबकि अगर इन्हें ‘डुअल-यूज कॉन्सेप्ट’ के तहत सैन्य क्षेत्र में लाया जाए, तो देश की सामरिक क्षमता कई गुना बढ़ सकती है।
रक्षा मंत्री ने बताया कि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में रक्षा उद्योग और सेना के बीच साझेदारी को नई दिशा दी है। उन्होंने कहा कि भारत अब दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातक देशों में नहीं, बल्कि एक उभरता हुआ मैन्युफैक्चरिंग हब बन चुका है।
रक्षा उत्पादन 1.51 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा
राजनाथ सिंह ने कहा कि “देश का रक्षा उत्पादन पिछले दशक में 46,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1.51 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसमें लगभग 33,000 करोड़ रुपये का योगदान निजी क्षेत्र का है।” उन्होंने बताया कि यह परिवर्तन सरकार, सशस्त्र बलों, उद्योग, स्टार्टअप, और रिसर्च संस्थानों के साझा प्रयास से संभव हुआ है।
सीडीएस की भूमिका को बताया ऐतिहासिक
रक्षा मंत्री ने तीनों सेनाओं के बीच समन्वय बढ़ाने के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की स्थापना को एक ऐतिहासिक कदम बताया। उन्होंने कहा कि सीडीएस की भूमिका से अब नीति निर्धारण, ऑपरेशनल योजना और तकनीकी तालमेल में एक समान दृष्टिकोण विकसित हुआ है।
उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य सिर्फ रक्षा तैयारियों को मजबूत करना नहीं, बल्कि “राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ रणनीतिक स्वायत्तता” सुनिश्चित करना भी है।