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ALG On LaC: भारत-चीन सीमा पर सरकार करने जा रही बड़ी तैयारी, ड्रैगन से बढ़ते खतरे को देखते हुए दो पुराने एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड फिर होंगे एक्टिव!

पिछले बीस सालों में भारत ने कई पुराने एएलजी को दोबारा सक्रिय किया है। लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी और न्योमा जैसे एएलजी पहले ही फिर से चालू हो चुके हैं। इनमें से न्योमा एएलजी को अब पूर्ण एयरबेस में बदलने की प्रक्रिया चल रही है, और अगले महीने से इसे औपचारिक तौर पर ऑपरेशनल किया जाएगा...

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📍नई दिल्ली | 25 Sep, 2025, 1:00 PM

ALG On LaC: चीन से बढ़ते खतरे को देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने दो पुराने एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड को फिर से तैयार करने का फैसला किया है। इनमें पहला चुशूल में है, जो पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा यनी एलएसी के पास स्थित है, और दूसरा अरुणाचल प्रदेश के दूरस्थ इलाके अनीनी में है। दोनों एयरस्ट्रिप सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं और इनके फिर तैयार होने से भारतीय वायुसेना और थलसेना की क्षमताएं मजबूत होंगी।

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ALG On LaC: 1962 की जंग में फोकस में था चुशूल

पूर्वी लद्दाख में स्थित चुशूल समुद्र तल से करीब 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह जगह एलएसी से महज चार किलोमीटर पश्चिम में है। इस इलाके में यही समतल जमीन है, जो एयरस्ट्रिप के लिए मुफीद है।

वहीं, चूशुल 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान ऐतिहासिक भूमिका निभा चुका है। रक्षा मंत्रालय की 1993 में जारी एक “सीक्रेट हिस्ट्री” रिपोर्ट में उल्लेख है कि 25 अक्टूबर 1962 को सोवियत मूल के एएन-12 विमान ने चंडीगढ़ से चुशूल तक एएमएक्स-13 टैंकों और 25-पाउंडर गनों को पहुंचाया था। जिसके बाद टैंकों और गनों ने जंग का रुख बदल दिया था और भारतीय सैनिकों को निर्णायक बढ़त दी थी।

हालांकि, युद्ध के बाद चुशूल की एयरस्ट्रिप बेकार पड़ी रही। समय-समय पर इसे फिर से एक्टिव करने का प्रस्ताव आया, लेकिन चीन की संवेदनशीलता और सीमा पर तनाव को देखते हुए इसे आगे नहीं बढ़ाया गया। अब रक्षा मंत्रालय ने इसे दोबारा डेवलप करने का फैसला लिया है, ताकि यहां से ड्रोन, हेलिकॉप्टर और स्पेशल मिशनों के लिए एयरबस सी-295 और सी-130जे जैसे लॉजिस्टिक एयरक्राफ्ट ऑपरेट किए जा सकें।

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ALG On LaC: अरुणाचल का भूला-बिसरा एयरस्ट्रिप अनीनी

अरुणाचल प्रदेश के दिबांग वैली जिले में स्थित अनीनी भारत-चीन सीमा के पूर्वी छोर पर पड़ता है और सामरिक दृष्टि से बेहद अहम है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहां से अंग्रेज चीन तक सप्लाई पहुंचाने का इसे स्टेजिंग ग्राउंड की तरह यूज करते थे। उस समय सहयोगी सेनाओं के विमान हिमालय के ऊपर से होकर उड़ान भरते थे। इस मार्ग को “द हंप” कहा जाता था, क्योंकि इसमें ऊंचे पर्वतों को पार करना पड़ता था।

आजादी के बाद भारतीय वायुसेना ने यहां मिट्टी से बना रनवे तैयार किया, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ। अब अरुणाचल प्रदेश सरकार ने केंद्र से मांग की थी कि इस एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड यानी एएलजी को दोबारा से डेवलप किया जाए। यहां 1.5 किलोमीटर लंबा रनवे पहले से मौजूद है, जिसे वायुसेना और थलसेना के इस्तेमाल के लिए तैयार किया जाएगा। हाल ही में वायुसेना और रक्षा मंत्रालय की एक टीम ने इस जगह का सर्वे भी किया था।

ALG On LaC: क्या है एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड

एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड एक मिलिट्री टर्म है, जो सीमा के पास मौजूद कच्ची या पक्की हवाई पट्टियों के लिए इस्तेमाल होता है। ये एयरस्ट्रिप फॉरवर्ड मोर्चे पर सैनिकों और सप्लाई पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होती हैं। वहीं, एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड को एक्टिव करने का मतलब है कि यहां रनवे बनाने के अलावा एक छोटी यूनिट को तैनात करनी पड़ी, विमानों और हेलिकॉप्टरों की लैंडिंग-टेकऑफ के लिए गाइडेंस सिस्टम लगाना और धीरे-धीरे बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत भी करना होगा। इसमें फ्यूल स्टोरेज, कम्यूनकेशन सिस्टम और सैनिकों की अस्थायी तैनाती की सुविधाएं शामिल होती हैं।

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पिछले बीस सालों में भारत ने कई पुराने एएलजी को दोबारा सक्रिय किया है। लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी और न्योमा जैसे एएलजी पहले ही फिर से चालू हो चुके हैं। इनमें से न्योमा एएलजी को अब पूर्ण एयरबेस में बदलने की प्रक्रिया चल रही है, और अगले महीने से इसे औपचारिक तौर पर ऑपरेशनल किया जाएगा।

अरुणाचल प्रदेश में भी सात एएलजी को रनवे में बदला गया है। इनमें अलोंग, मेचुका, पासीघाट, तूतिंग, विजयनगर, वालोंग और जीरो शामिल हैं। इन जगहों से न केवल सैन्य विमान बल्कि सिविलियन ट्रैफिक भी चलता है, जिससे स्थानीय आबादी को भी फायदा मिलता है।

रक्षा मंत्रालय ने इसे भारतीय वायुसेना के “फ्यूचर रोडमैप” का हिस्सा बताया है। मंत्रालय के अनुसार, चुशूल और अनीनी दोनों ही जगहें यूएवी, हेलिकॉप्टर और स्पेशल एयरक्राफ्ट ऑपरेशन के लिए उपयुक्त हैं। मंत्रालय का मानना है कि इन एयरस्ट्रिप्स को सक्रिय करने से भारत की रणनीतिक पहुंच बढ़ेगी और दुश्मन की गतिविधियों पर बेहतर नजर रखी जा सकेगी।

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