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Four Stars of Destiny book: जनरल एमएम नरवणे बोले- मेरी जिम्मेदारी किताब लिखना थी, रक्षा मंत्रालय की मंजूरी का अभी भी है इंतजार

जनरल नरवणे ने अपने कार्यकाल में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण, थिएटर कमांड्स के गठन और आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी...

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📍कसौली | 12 Oct, 2025, 2:46 PM

Four Stars of Destiny book: भारतीय सेना के पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे का कहना है कि उनकी आत्मकथा फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी को लेकर रक्षा मंत्रालय की मंजूरी अभी भी पेंडिंग है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका काम किताब लिखना था, जबकि प्रकाशक की जिम्मेदारी थी कि वह सरकार से इसकी अनुमति ले। उनका यह बयान कसौली में खुशवंत सिंह लिटरेचर फेस्टिवल में एक सेशन के दौरान दिया, जहां उनकी नई फिक्शनल किताब पर चर्चा हुई थी।

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कार्यक्रम में रियर एडमिरल निर्मला कन्नन (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत के दौरान एक दर्शक ने सवाल किया कि उनकी आत्मकथा अभी तक प्रकाशित क्यों नहीं हुई। इस पर जनरल नरवणे ने जवाब दिया, “मेरा काम किताब लिखना था और उसे प्रकाशकों को सौंपना था। अब सरकार से अनुमति लेना उनकी जिम्मेदारी है। किताब रक्षा मंत्रालय को भेजी जा चुकी है और वह अभी रिव्यू में है। पिछले एक साल से यह रिव्यू प्रक्रिया चल रही है।”

उन्होंने आगे कहा कि प्रकाशक और रक्षा मंत्रालय लगातार संपर्क में हैं। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “अब गेंद प्रकाशक और मंत्रालय के पाले में है। मैंने अपना काम कर लिया और किताब लिखने में मुझे बहुत आनंद आया।”

जनरल नरवणे की आत्मकथा फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी चर्चा में इसलिए भी है क्योंकि इसमें उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कुछ सरकारी नीतियों पर सवाल उठाए थे। किताब में एलएसी पर चीन के साथ हुई झड़पें, गलवान विवाद की डिटेल्स, और अग्निपथ योजना पर भी अपने विचार साझा किए थे। जिसके बाद सरकार ने किताब की “सुरक्षा समीक्षा” का आदेश दिया था। यह किताब पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया (पेंगुइन वीर इम्प्रिंट) द्वारा जनवरी 2024 में प्रकाशित होने वाली थी, लेकिन संवेदनशील सैन्य जानकारी के कारण भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय द्वारा इसकी समीक्षा चल रही है।

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अपनी आत्मकथा में जनरल नरवणे के बचपन से लेकर सेना प्रमुख बनने तक की यात्रा को कलमबद्ध किया है, जिसमें उनके चार दशक लंबे सैन्य करियर की रोमांचक और चुनौतीपूर्ण घटनाओं का वर्णन है। किताब न केवल व्यक्तिगत अनुभवों पर फोकस है, बल्कि नेतृत्व, प्रबंधन के सबक और भारतीय सेना को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए मजबूत बनाने के सुझाव भी दिए हैं।

बता दें कि जनरल नरवणे अकेले नहीं हैं जिनकी किताब सरकारी समीक्षा में हैं। बल्कि इससे पहले कारगिल पर लिखी जनरल एनसी विज की “अलोन इन द रिंग” भी इसी वजह से अभी तक लंबित है। पूर्व सैन्य अधिकारियों के लिए नियम हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी कोई भी किताब पहले मंत्रालय से पास होनी चाहिए।

जनरल नरवणे ने यह भी कहा कि किताब की सामग्री को लेकर उनका उद्देश्य केवल अपने अनुभव साझा करना था, न कि किसी विवाद को जन्म देना। उन्होंने कहा कि उन्होंने पुस्तक को एक “पारदर्शी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण” से लिखा है, ताकि पाठकों को भारतीय सेना की जिम्मेदारियों और चुनौतियों की झलक मिले।

जनरल नरवणे ने अपने कार्यकाल में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण, थिएटर कमांड्स के गठन और आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी नेतृत्व शैली और संतुलित रणनीति की प्रशंसा देश-विदेश में भी हुई थी। फिलहाल किताब रक्षा मंत्रालय की समीक्षा प्रक्रिया में है और इसके प्रकाशन की कोई आधिकारिक तिथि घोषित नहीं की गई है।

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