📍नई दिल्ली | 10 Oct, 2025, 2:53 PM
Jaishankar-Muttaqi meeting: भारत और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक संबंधों में शुक्रवार को जबरदस्त पुश देखने को मिला। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने घोषणा की कि भारत ने काबुल में अपने तकनीकी मिशन को अपग्रेड कर अब उसे पूर्ण दूतावास का दर्जा दे दिया है। यह फैसला तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ हुई मुलाकात के बाद लिया गया।
यह पहली बार है जब अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी वरिष्ठ अफगान नेता ने भारत की यात्रा की और दोनों देशों के बीच आधिकारिक स्तर पर उच्चस्तरीय वार्ता हुई।
India–Afghanistan Relations | EAM Jaishankar’s Remarks (Oct 10, 2025)
EAM Dr. S. Jaishankar welcomed Afghan FM Amir Khan Muttaqi to India, calling the visit “an important step in advancing our ties and affirming the enduring friendship between India and Afghanistan.”
The meeting… pic.twitter.com/RRP7DIi3ks— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) October 10, 2025
Jaishankar-Muttaqi meeting: दोनों के बीच रिश्तों की नई शुरुआत
नई दिल्ली में आयोजित इस बैठक में दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने विकास, व्यापार, स्वास्थ्य, शिक्षा और मानवीय सहयोग जैसे विषयों पर बातचीत की। जयशंकर ने कहा, “भारत अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता का पूर्ण सम्मान करता है। हमें यह घोषणा करते हुए खुशी है कि अब भारत का तकनीकी मिशन काबुल में ‘भारत के दूतावास’ के रूप में कार्य करेगा।”
उन्होंने आगे कहा कि भारत एक पड़ोसी और अफगान जनता का शुभचिंतक होने के नाते अफगानिस्तान के विकास और स्थिरता में गहरी रुचि रखता है।
जयशंकर ने मुलाकात में छह नए विकास परियोजनाओं की भी घोषणा की और कहा कि भारत स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी प्रबंधन और मानवीय सहायता के क्षेत्रों में अफगानिस्तान का सहयोग जारी रखेगा।
जयशंकर ने मुत्ताकी को जानकारी दी कि भारत अफगानिस्तान में छह नई परियोजनाएं शुरू करेगा, जिनका विवरण दोनों देशों के बीच तकनीकी चर्चाओं के बाद जारी किया जाएगा। इसके अलावा भारत ने अफगानिस्तान को 20 एम्बुलेंसें उपहार में देने की घोषणा की, जिनमें से पांच एम्बुलेंसें जयशंकर ने प्रतीकात्मक रूप से मुत्ताकी को सौंपीं।
भारत जल्द ही एमआरआई और सीटी स्कैन मशीनें भी अफगान अस्पतालों को उपलब्ध कराएगा। साथ ही, भारत अफगानिस्तान को कैंसर दवाएं और वैक्सीन भी भेजेगा ताकि स्थानीय स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूती मिल सके। जयशंकर ने बताया कि भारत ने हाल ही में यूनाइटेड नेशंस आफिस ओन ड्रग्स एंड क्राइम के माध्यम से ड्रग पुनर्वास सामग्री भेजी थी और आगे भी ऐसा करना जारी रखेगा।
Jaishankar-Muttaqi meeting: शरणार्थियों और आपदा पीड़ितों के लिए भारत की मदद
जयशंकर ने बताया कि भारत अफगानिस्तान में हाल ही में आए भूकंप के बाद राहत सामग्री लेकर “फर्स्ट रेस्पॉन्डर” के रूप में सबसे पहले पहुंचा था। भारत अब भूकंप प्रभावित इलाकों में घरों के पुनर्निर्माण में मदद करेगा।
इसके साथ ही, पाकिस्तान से जबरन निकाले गए अफगान शरणार्थियों की स्थिति पर चिंता जताते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत उनकी आवास और पुनर्वास के लिए भी सहयोग देगा।

उन्होंने कहा, “अफगान शरणार्थियों की गरिमा और आजीविका हमारे लिए महत्वपूर्ण है। भारत उनकी मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है।” जयशंकर ने बैठक में कहा, “हमारा विकास सहयोग कभी भी किसी सरकार से नहीं, बल्कि अफगान जनता से जुड़ा रहा है।”
भारत पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान का सबसे बड़ा विकास सहयोगी रहा है। भारत ने सलमा डैम, अफगान संसद भवन, दिल्ली-काबुल बस सेवा, और चाबहार-कंधार कॉरिडोर जैसी कई परियोजनाएं पूरी की हैं। तालिबान के आने के बाद भी भारत ने अफगान जनता के लिए खाद्यान्न, दवाइयां, और राहत सामग्री भेजना जारी रखा। 2022 से अब तक भारत ने अफगानिस्तान को 50,000 टन गेहूं और 200 टन दवाइयां भेजी हैं।
Jaishankar-Muttaqi meeting: पानी और व्यापार पर सहयोग
भारत और अफगानिस्तान के बीच पानी प्रबंधन और सिंचाई के क्षेत्र में पहले से सहयोग रहा है। जयशंकर ने कहा कि भारत अफगानिस्तान के सस्टेनेबल वाटर मैनेजमेंट में मदद करने के लिए तैयार है।
मुत्ताकी ने भी भारतीय कंपनियों को अफगानिस्तान में खनन क्षेत्र में निवेश के लिए आमंत्रित किया। दोनों देशों ने व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने पर भी सहमति जताई। जयशंकर ने बताया कि भारत और अफगानिस्तान के बीच नई हवाई सेवाएं भी शुरू की जा रही हैं ताकि लोगों के बीच संपर्क बढ़े।
काबुल में भारत की वापसी: चार साल बाद दूतावास फिर खुला
अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में आने के बाद भारत ने काबुल में अपना दूतावास और सभी वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए थे। भारत ने तब अपने राजनयिकों को सुरक्षित निकाल लिया था। 2022 में भारत ने काबुल में एक तकनीकी मिशन शुरू किया था, जो मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं की निगरानी करता था।
अब, काबुल में भारतीय दूतावास का पुनः उद्घाटन इस बात का संकेत है कि भारत धीरे-धीरे अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को सामान्य कर रहा है, भले ही उसने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है।
आमिर खान मुत्ताकी की पहली भारत यात्रा
तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक रही। वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी के बाद अस्थायी यात्रा छूट मिलने पर भारत पहुंचे हैं। मुत्ताकी ने इससे पहले रूस में आयोजित अंतरराष्ट्रीय अफगानिस्तान सम्मेलन में हिस्सा लिया था, जिसमें भारत, चीन, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों के प्रतिनिधि शामिल थे।
भारत की यह पहल ऐसे समय में आई है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हैं। इस्लामाबाद द्वारा हजारों अफगान शरणार्थियों को जबरन निष्कासित करने के बाद दोनों देशों के बीच विवाद बढ़ गया है। भारत का यह कदम उस क्षेत्रीय परिदृश्य में अहम माना जा रहा है, जहाँ नई दिल्ली तालिबान के साथ सीमित सहयोग बढ़ाकर पाकिस्तान और चीन के प्रभाव को संतुलित करना चाहती है।
भारत की नई अफगान नीति
भारत की अफगान नीति में यह बदलाव धीरे-धीरे 2022 से शुरू हुआ था, जब नई दिल्ली ने तालिबान के साथ “प्रायोगिक संपर्क” की नीति अपनाई। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने जनवरी 2025 में मुत्ताकी से दुबई में मुलाकात की थी, जबकि भारत के विशेष दूत ने अप्रैल में काबुल का दौरा किया था। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत अब तालिबान के साथ सीमित संवाद रखकर अफगानिस्तान में अपनी राजनयिक मौजूदगी बनाए रखना चाहता है। इसका उद्देश्य चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को सीमित रखना है।
भारत और तालिबान का रिश्ता हमेशा जटिल रहा है। 1990 के दशक में जब तालिबान पहली बार सत्ता में आया, तब भारत ने उसे मान्यता नहीं दी थी। 1999 में कंधार विमान अपहरण के दौरान भारतीय यात्रियों की रिहाई के लिए तालिबान की मध्यस्थता हुई थी। उस घटना ने भारत की सुरक्षा नीति को गहराई से प्रभावित किया था। लेकिन अब, जब क्षेत्रीय हालात बदल रहे हैं, भारत ने तालिबान से बातचीत शुरू की है ताकि वह किसी भी संभावित सुरक्षा खतरे से पहले ही निपट सके।
भारत की (Jaishankar-Muttaqi meeting) इस घोषणा के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें इस कदम पर हैं। चीन, रूस और यूएई पहले ही तालिबान से राजनयिक संपर्क रख रहे हैं। रूस ने जुलाई 2025 में तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता भी दी थी। भारत का यह कदम तालिबान के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक बड़ा संकेत माना जा रहा है, हालांकि नई दिल्ली ने यह स्पष्ट किया है कि यह मान्यता नहीं बल्कि “साझेदारी का विस्तार” है।