📍नई दिल्ली | 6 Sep, 2025, 2:42 PM
Dhruv ALH glitch: भारतीय सेना के ध्रुव एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर (ALH) में एक बार फिर गंभीर तकनीकी गड़बड़ी सामने आई है। उड़ान के दौरान एक हेलिकॉप्टर के टेल ड्राइव शाफ्ट (TDS) को नुकसान पहुंचा, जिसके बाद सेना ने सुरक्षा कारणों से पूरे ध्रुव बेड़े की तत्काल जांच के आदेश दिए हैं। यह मामला 4 सितंबर का है। जिसके बाद एक बार फिर इन हेलिकॉप्टरों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
टेल ड्राइव शाफ्ट हेलिकॉप्टर (Dhruv ALH glitch) के लिए बेहद अहम हिस्सा होता है। यह इंजन से पावर को टेल रोटर तक पहुंचाता है, ताकि मेन रोटर के टॉर्क को बैलेंस किया जा सके। इसकी मजबूती सीधे तौर पर हेलिकॉप्टर की डायरेक्शन और स्टेबिलिटी से जुड़ी होती है। सेना की डायरेक्टरेट जनरल ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (एविएशन) ने तुरंत सभी ध्रुव यूनिट्स को आदेश जारी कर जांच शुरू करने को कहा है। इस जांच में वायुसेना और नौसेना के ध्रुव भी शामिल हैं।
Dhruv ALH glitch: वन-टाइम चेक अनिवार्य
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन के IA-1134 (टेल नंबर) हेलिकॉप्टर के साथ हुई। घटना के तुरंत बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को भी जानकारी दी गई और उनसे इस खराबी की जड़ तक पहुंचने के लिए मदद मांगी गई। बता दें कि एचएएल ने ही ध्रुव को डिजाइन और डेवलप किया है और फिलहाल वे सेना को जांच में सहयोग कर रहे हैं।
सेना की ओर से जारी पत्र में लिखा गया है, “उड़ान के दौरान IA-1134 हेलिकॉप्टर (Dhruv ALH glitch) के स्टेशन #9A पर टीडीएस बेयरिंग माउंट टूटने की घटना सामने आई है। फ्लाइट सेफ्टी सुनिश्चित करने के लिए सभी ध्रुव हेलिकॉप्टरों में वन-टाइम चेक अनिवार्य रूप से किया जाए।” इस पत्र में टूटे हुए हिस्सों की तस्वीरें भी लगाई गई हैं।
यह आदेश ऐसे समय में आया है जब मई 2025 में ही सेना और वायुसेना के ध्रुव हेलीकॉप्टरों को गहन जांच के बाद उड़ान योग्य घोषित किया गया था। उससे पहले जनवरी 2025 में गुजरात के पोरबंदर में कोस्ट गार्ड के ध्रुव के क्रैश होने के बाद इन हेलिकॉप्टरों को महीनों तक ग्राउंडेड रखा गया था। उस हादसे में दो पायलट और एक एयरक्रू डाइवर की मौत हो गई थी।
पोरबंदर क्रैश के बाद नौसेना और कोस्ट गार्ड के ध्रुव हेलीकॉप्टर (Dhruv ALH glitch) अभी ग्राउंडेड हैं और उन्हें अब भी उड़ान भरने की अनुमति नहीं पाए हैं। वहीं, ऑपरेशन सिंदूर से पहले सेना और वायुसेना के लगभग 300 ध्रुव एएलएच को मई में डिफेक्ट इन्वेस्टिगेशन कमिटी की सिफारिश पर अनुमति मिली थी। इस कमेटी में CEMILAC (सेंटर फॉर मिलिट्री एयरवर्दीनेस एंड सर्टिफिकेशन), DG-AQA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ एरोनॉटिकल क्वालिटी एश्योरेंस) और एचएएल के अधिकारी शामिल थे।
यह हादसा ऐसे वक्त में जब हुआ है जब एचएएल नौसेना और कोस्ट गार्ड के हेलीकॉप्टरों (Dhruv ALH glitch) को अनुमति देने की योजना बना रहा था। रक्षा समाचार डॉट कॉम को जानकारी देते हुए एचएएल के सीनियर सूत्रों ने बताया था कि जल्द ही नौसेना और कोस्टगार्ड के ध्रुव हेलीकॉप्टरों को उड़ान की अनुमति दी जाएगी। उन्होंने बताया था कि अगले महीने तक कुछ ध्रुव उड़ान भरने लगेंगे। उन्हें पहले कुछ परीक्षणों से गुजरना होगा, और उसके बाद चरणबद्ध तरीके से उड़ान भरने की अनुमति मिलेगी।
वहीं, इस मामले में सेना ने जांच के लिए स्पष्ट निर्देश दिए हैं, जिनमें टीडीएस बेयरिंग और इलास्टोमेरिक बुश की जांच, टेल बूम टॉप फेस शीट पर तीन अलग-अलग स्टेशनों पर क्रैक की जांच और टीडीएस ब्रैकेट की विस्तृत विजुअल जांच शामिल है। इसके लिए 10X मैग्निफाइंग ग्लास के इस्तेमाल की सिफारिश भी की गई है।
एचएएल पहले ही नौसेना और कोस्ट गार्ड के दो ध्रुव हेलीकॉप्टरों (Dhruv ALH glitch) को इंस्ट्रूमेंट कर चुका है, ताकि ट्रांसमिशन सिस्टम, गियरबॉक्स और रोटर हब जैसी अहम यूनिट्स के परफॉरमेंस का डेटा जुटाया जा सके। माना जा रहा है कि समुद्र में लंबे समय तक ऑपरेशन करने से इन हेलिकॉप्टरों में तकनीकी दिक्कतें बढ़ रही हैं।
पोरबंदर हादसे के बाद बनी उच्चस्तरीय कमिटी ने पाया था कि स्वाशप्लेट फ्रैक्चर इस दुर्घटना का कारण बनी। यह हेलिकॉप्टर के कंट्रोल सिस्टम का अहम हिस्सा है। हालांकि, यह साफ नहीं हो सका कि यह हिस्सा क्यों टूटा। इसके बाद इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसको भी जांच में शामिल किया गया और उन्होंने ट्रांसमिशन सिस्टम के अहम पुर्जों पर फैटीग टेस्ट किए।
पिछले पांच वर्षों में एडवांस लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (Dhruv ALH glitch) ध्रुव के 15 हादस हो चुके हैं, जिसके बाद इसके सुरक्षा रिकॉर्ड पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। 2023-24 में ही हेलिकॉप्टर का डिजाइन रिव्यू किया गया था और इसके कंट्रोल सिस्टम में बदलाव किए गए थे। लेकिन उसके बावजूद, कई घटनाओं के चलते इसे बार-बार ग्राउंडेड करना पड़ा।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि एएलएच की तकनीकी गड़बड़ियों को दूर करना बेहद जरूरी है, क्योंकि सेना, वायुसेना, नौसेना और कोस्ट गार्ड के पास यह हेलिकॉप्टर बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह न केवल लॉजिस्टिक सपोर्ट बल्कि रेस्क्यू और कॉम्बैट मिशनों के लिए भी अहम भूमिका निभाते हैं।
भारतीय सेना ने एचएएल से इस घटना की जांच के लिए “रूट कॉज एनालिसिस” को टॉप प्रायरिटी पर लेने को कहा है। आने वाले समय में इस जांच से यह पता चल पाएगा कि टीडीएस फेल्योर की वास्तविक वजह क्या थी और क्या इसे व्यापक स्तर पर ठीक किया जा सकता है।