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Brig Surinder Singh in Supreme Court: कारगिल युद्ध के ब्रिगेड कमांडर पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, याचिका में लिखा- युद्ध के रिकॉर्ड में हुई हेराफेरी, तैयार की गई गलत रिपोर्टें

कारगिल युद्ध के पूर्व कमांडर ब्रिगेडियर सुरिंदर सिंह ने की युद्ध इतिहास में सुधार की मांग

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ब्रिगेडियर सिंह का कहना है कि कारगिल युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन कई महत्वपूर्ण तथ्य आज भी नौकरशाही की चुप्पी और छेड़छाड़ की गई रिपोर्टों के नीचे दबे हैं। ब्रिगेडियर सिंह ने दावा किया कि 121 ब्रिगेड को अपनी तोपें इस्तेमाल करने से रोका गया, जबकि पाकिस्तानी सेना ने अपनी एयर डिफेंस आर्टिलरी गनों का इस्तेमाल किया...
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📍नई दिल्ली/चंडीगढ़ | 19 Aug, 2025, 12:32 PM

Brig Surinder Singh in Supreme Court: कारगिल युद्ध को हुए 26 साल बीत चुके हैं। लेकिन इसकी आंच आज भी गाहेबगाहे सुलगती रहती है। कारगिल युद्ध का जिन्न एक बार फिर से बाहर आया है। उस दौरान कारगिल ब्रिगेड की कमान संभाल चुके ब्रिगेडियर सुरिंदर सिंह (सेवानिवृत्त) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अपनी अपील में उन्होंने वॉर हिस्ट्री में सुधार की मांग की है। बता दें कि कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने घुसपैठियों के भेष में आई पाकिस्तानी सेना को कारगिल की ऊंची चोटियों से खदेड़ा था। उस जंग में 527 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी।

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Brig Surinder Singh in Supreme Court: सच छिपाने का आरोप

78 वर्षीय ब्रिगेडियर सिंह कारगिल युद्ध के दौरान 121वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड के कमांडर थे। उन्हें सेना मेडल (वीरता) से सम्मानित किया जा चुका है और युद्ध में दो बार जख्मी भी हुए। उन्होंने अपनी जनहित याचिका में लिखा है कि कारगिल युद्ध में भारत ने 527 सैनिक खोए, लेकिन असल सच आज भी इतिहास में दफन है। उनके अनुसार, युद्ध से पहले दी गईं खुफिया चेतावनियों को दबाया गया, युद्ध के रिकॉर्ड में हेरफेर हुआ और सेना के भीतर से ही गद्दारी जैसी स्थिति बनी। उन्होंने कहा कि उस समय की टॉप मिलिट्री लीडरशिप को दुश्मन की घुसपैठ की जानकारी थी, लेकिन सच्चाई को छिपाया गया और रिकॉर्ड में हेरफेर कर गलत रिपोर्टें तैयार की गईं। अपनी याचिका में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में या मौजूदा मंत्रियों के समूह द्वारा नई जांच किए जाने की मांग की है।

रणनीति पर सवाल

ब्रिगेडियर सिंह का कहना है कि कारगिल युद्ध में 527 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन कई महत्वपूर्ण तथ्य आज भी नौकरशाही की चुप्पी और छेड़छाड़ की गई रिपोर्टों के नीचे दबे हैं। ब्रिगेडियर सिंह ने दावा किया कि 121 ब्रिगेड को अपनी तोपें इस्तेमाल करने से रोका गया, जबकि पाकिस्तानी सेना ने अपनी एयर डिफेंस आर्टिलरी गनों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि कैप्टन सौरभ कालिया की डायरी में इस “जबरदस्त फायरिंग” का उल्लेख दर्ज है, लेकिन कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट में इस तथ्य को जगह नहीं मिली।

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ब्रिगेडियर सिंह ने अपनी याचिका में यह भी दावा किया है कि फरवरी 1999 में कारगिल सेक्टर के बजरंग पोस्ट को खाली करने का आदेश जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) ने दिया था। अप्रैल 1999 में ब्रिगेडियर सिंह ने इस पोस्ट को फिर से कब्जाने की मांग की थी, लेकिन उनकी मांग ठुकरा दी गई। जून 1999 में ही इस पोस्ट को दोबारा कब्जा करने के आदेश दिए गए। इसी दौरान 14 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच साथी सैनिकों की गश्ती टुकड़ी पर दुश्मन ने हमला किया, उन्हें युद्धबंदी बनाया और क्रूर यातनाएं देकर उनकी हत्या कर दी गई।

नहीं था ऑपरेशनल ऑर्डर

ब्रिगेडियर सिंह ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि कारगिल युद्ध शुरू होते ही 3 इन्फैंट्री डिवीजन मुख्यालय में भारी अव्यवस्था फैल गई थी। सिंह ने कहा कि सैन्य नियमों के विपरीत, नियंत्रण रेखा की सुरक्षा के लिए ऑपरेशनल ऑर्डर (युद्ध संचालन का आदेश) तक तैयार नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन सेना प्रमुख को इस सबकी जानकारी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

क्यों कब्जे में प्वाइंट 5353

ब्रिगेडियर सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि ऑपरेशन विजय को 26 जुलाई 1999 को जल्दबाजी में खत्म कर दिया गया, जबकि उस समय कई महत्वपूर्ण चौकियां अब भी दुश्मन के कब्जे में थीं। इनमें सबसे अहम प्वाइंट 5353 था, जो आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है और वहां से वह पूरे द्रास पर नजर रखता है। जनवरी और फरवरी 1999 में पड़ोसी 102 इन्फैंट्री ब्रिगेड से घुसपैठ की रिपोर्ट जीओसी किशनपाल बुद्धवार ने उनकी ब्रिगेड तक नहीं पहुंचने दी। यदि ये रिपोर्ट समय पर मिलतीं, तो कारगिल-बटालिक-चोरबट ला-श्योक घाटी क्षेत्र में में घुसपैठ रोकी जा सकती थी।

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अपनी याचिका में ब्रिगेडियर सिंह ने कहा है कि कई वरिष्ठ अधिकारी अब उम्रदराज हो चुके हैं और जरूरी है कि उनसे पूछताछ की जाए। उन्होंने दावा किया कि युद्ध के दौरान हुई कई गलतियों और आदेशों की अनदेखी से दुश्मन को फायदा पहुंचा।

कारगिल रिव्यू कमेटी पर भी उठाए सवाल

ब्रिगेडियर सिंह ने कारगिल रिव्यू कमेटी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए। उनके अनुसार, समिति ने प्रत्यक्ष सबूत और फ्रंटलाइन पर मौजूद सैनिकों व अधिकारियों के बयान शामिल नहीं किए। इसके बावजूद समिति ने अपनी रिपोर्ट में भविष्य के लिए सिफारिशें कर दीं। याचिका में 2006 में तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एवाई टिपनिस के बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सेना के जनरलों ने मई 1999 तक सरकार से घुसपैठ की जानकारी छिपाई, क्योंकि वे इसके लिए तैयार नहीं थे।

ब्रिगेडियर सुरिंदर सिंह उस समय 121 ब्रिगेड के कमांडर थे। ब्रिगेडियर सिंह को युद्ध के दौरान कथित तौर पर गोपनीय दस्तावेजों के दुरुपयोग के लिए बिना कोर्ट मार्शल के सेवा से बर्खास्त किया गया था। वह इस मामले को 2002 से दिल्ली हाई कोर्ट और आर्मी ट्रिब्यूनल में लड़ रहे हैं।

कारगिल युद्ध 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर के द्रास, बटालिक और कारगिल सेक्टर में लड़ा गया था। इसे भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया। यह संघर्ष करीब दो महीने चला और भारतीय सेना ने दुश्मन के कब्जे से कई ऊंचाई वाली चोटियां छुड़ाईं। युद्ध में भारत के 527 से अधिक सैनिक शहीद हुए।

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