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Sunday, August 31, 2025
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China-Bangladesh: क्या डोकलाम ट्राईजंक्शन पर फिर है चीन की नजर? इस बार बांग्लादेश भी है साथ, भारत ने ‘तीस्ता प्रहार’ से दिया जवाब

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लालमोनिरहाट हवाई अड्डा भारत के लिए कई कारणों से खतरा बन सकता है। यह हवाई अड्डा भारत की सीमा से बहुत करीब है और सिलिगुड़ी कॉरिडोर के नजदीक है। सिलिगुड़ी कॉरिडोर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर और सिक्किम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। यह कॉरिडोर सिर्फ 22 किलोमीटर चौड़ा है और कुछ जगहों पर तो यह चौड़ाई 17 किलोमीटर तक है। यह इलाका नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से घिरा हुआ है, जिसके कारण इसे 'चिकन नेक' कहा जाता है...
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📍नई दिल्ली | 21 May, 2025, 4:39 PM

China-Bangladesh: भारत और पाकिस्तान के बढ़ते तनाव के बीच चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। पहले तो चीन ने पांचवी बार अरुणाचल प्रदेश में कुछ जगहों के नाम बदले, जिसका भारत ने पुरजोर विरोध जताया। वहीं अब खबर यह है कि चीन अब बांग्लादेश को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है। हाल ही में चीनी सेना के अधिकारियों ने बांग्लादेश के रंगपुर जिले में एक पुराने हवाई अड्डे का दौरा किया, जो भारत की सीमा से मात्र 20 किलोमीटर दूर है। यह हवाई अड्डा भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को जोड़ने वाले सिलिगुड़ी कॉरिडोर यानी ‘चिकन नेक’ से सिर्फ 135 किलोमीटर की दूरी पर है और डोकलाम ट्राईजंक्शन के पास है। भारतीय खुफिया एजेंसियां इस घटना पर नजर रख रही हैं और इसे भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा माना जा रहा है।

China-Bangladesh: बांग्लादेश में चीन की बढ़ती मौजूदगी

चीन ने पहले पाकिस्तान को भारत के खिलाफ अपने हथियारों की ‘टेस्टिंग’ करने के लिए इस्तेमाल किया था। वहीं, अब वह बांग्लादेश को भी इसी तरह की रणनीति में शामिल करने की कोशिश कर रहा है। चीन की नजरें रंगपुर जिले में स्थित द्वितीय विश्व युद्ध के समय के लालमोनिरहाट हवाई अड्डे पर हैं। इस हवाई अड्डे को 1931 में एक सैन्य अड्डे के रूप में बनाया गया था और उस समय यह एशिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों ने इस अड्डे से बर्मा और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में सैन्य अभियान चलाए थे।

हालांकि, 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद इस हवाई अड्डे को बांग्लादेश वायु सेना (बीएएफ) का मुख्यालय बनाने की योजना बनी थी, लेकिन यह योजना धूल खाती रही। अब मार्च 2025 में ढाका ने इस हवाई अड्डे को फिर से डेवलप करने का फैसला किया है और इसके लिए चीन से मदद मांगी है।

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भारत के लिए क्यों है खतरा?

लालमोनिरहाट हवाई अड्डा भारत के लिए कई कारणों से खतरा बन सकता है। यह हवाई अड्डा भारत की सीमा से बहुत करीब है और सिलिगुड़ी कॉरिडोर के नजदीक है। सिलिगुड़ी कॉरिडोर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर और सिक्किम को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है। यह कॉरिडोर सिर्फ 22 किलोमीटर चौड़ा है और कुछ जगहों पर तो यह चौड़ाई 17 किलोमीटर तक है। यह इलाका नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से घिरा हुआ है, जिसके कारण इसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है।

भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल अनिल आहूजा (रिटायर्ड) का कहना है, “अगर बांग्लादेश ने चीनी वायु सेना (पीएलएएएफ) या पाकिस्तानी वायु सेना (पीएएफ) को इस हवाई अड्डे तक पहुंच दे दी, तो यह भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा। इससे न सिर्फ हमारे उत्तर-पूर्वी राज्यों पर खतरा मंडराएगा, बल्कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जो मलक्का स्ट्रेट के मुहाने पर हैं, वे भी प्रभावित होंगे। मलक्का स्ट्रेट चीन के लिए एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है, और अगर चीन वहां अपनी मौजूदगी बढ़ाता है, तो भारत की सामरिक स्थिति कमजोर हो सकती है।”

समुद्री सुरक्षा पर असर

लेफ्टिनेंट जनरल आहूजा ने यह भी बताया, बांग्लादेश में हवाई अड्डे तक पहुंच से चीन की वायु सेना को बंगाल की खाड़ी तक अपनी पहुंच बढ़ाने का मौका मिलेगा। अभी तक चीन के पास इतनी दूर तक पहुंचने की क्षमता नहीं थी। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे भारत की हिंद महासागर में स्थिति मजबूत होती है। अगर चीन वहां तक अपनी वायु सेना को भेजने में सक्षम हो गया, तो भारत की समुद्री सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।

बांग्लादेश के पास हैं चीनी हथियार

चीन पिछले कई सालों से बांग्लादेश को हथियारों की सप्लाई कर रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2023 के बीच पाकिस्तान को 82 फीसदी हथियार चीन से मिले थे। हाल में हुए ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान ने चीनी हथियारों का जमकर इस्तेमाल किया था। इसमें जे-10सी और जेएफ-17 लड़ाकू विमान, पीएल-12 और पीएल-15 मिसाइलों के अलावा एचक्यू-9 एय़र डिफेंस सिस्टम शामिल थे।

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बांग्लादेश की सेना में भी चीनी हथियारों की भरमार है। सिपरी के अनुसार, बांग्लादेश की सेना के 82 फीसदी हथियार चीन से आए हैं। इनमें मिंग-क्लास डीजल-इलेक्ट्रिक हमलावर पनडुब्बियां, शादिनोता-क्लास सी13बी कॉर्वेट्स, एमबीटी-2000 टैंक, वीटी-5 हल्के टैंक, एचक्यू-7 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और 36 एफ-7बीजीआई लड़ाकू विमान शामिल हैं। इसके अलावा, चीन ने बांग्लादेश को छोटे और हल्के हथियार बनाने का लाइसेंस भी दिया है।

लेफ्टिनेंट जनरल आहूजा ने चेतावनी दी, “अगर बांग्लादेश ने चीन या पाकिस्तान को हवाई अड्डे तक पहुंच नहीं भी दी, तब भी यह खतरा बना रहेगा। अगर चीन ने बांग्लादेश को वही हथियार और हवाई मिसाइलें दीं, जो उसने पाकिस्तान को दी हैं, तो भारत के लिए खतरा बढ़ जाएगा। हमें इन पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है।”

बांग्लादेशी नेताओं के बयान- खतरे की घंटी 

वहीं, बांग्लादेश की सरकार और वहां के नेताओं के बयान भी चिंता बढ़ा रहे हैं। बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस के करीबी नेताओं ने हाल ही में भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों पर कब्जा करने की बात कही है। ये बयान भारत के लिए खतरे की घंटी हैं, क्योंकि अगर बांग्लादेश और चीन मिल गए तो तो भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

भारतीय सेना के (रिटायर्ड) पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा ने कहा, “शांतिकाल में इतने करीब एक हवाई अड्डा दुश्मन को हमारी गतिविधियों पर नजर रखने का मौका देता है। लेकिन युद्ध के समय यह दुश्मन के लिए एक कमजोरी भी बन सकता है, क्योंकि इसे आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। हालांकि, बड़े ज्योस्ट्रेटेजिक के लेंस में देखें, तो उत्तर में चीन और दक्षिण में यूनुस का बांग्लादेश भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। अगर यह रिपोर्ट सही है, तो इसे जल्द से जल्द रोकना होगा।”

सिलिगुड़ी कॉरिडोर की सुरक्षा बेहद जरूरी

सिलिगुड़ी कॉरिडोर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने का एकमात्र रास्ता है। अगर इस कॉरिडोर पर किसी तरह का हमला होता है या इसे बंद कर दिया जाता है, तो उत्तर-पूर्वी राज्यों का संपर्क मुख्य भारत से टूट सकता है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति इसे और भी संवेदनशील बनाती है, क्योंकि यह तीन देशों नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से घिरा हुआ है। यह नेपाल, भूटान, और बांग्लादेश की सीमाओं के साथ-साथ भारत-चीन-भूटान ट्राई-जंक्शन (Doklam area) के पास है।

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अगर चीन और बांग्लादेश मिलकर इस क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाते हैं, तो भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियां बढ़ जाएंगी। लालमोनिरहाट हवाई अड्डे का चार किलोमीटर लंबी रनवे, बड़ा टैक्सीवे और हैंगर किसी भी मिलिट्री ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल हो सकता है। अगर चीनी या पाकिस्तानी वायु सेना को यहां से उड़ान भरने की अनुमति मिलती है, तो वे आसानी से सिलिगुड़ी कॉरिडोर को निशाना बना सकते हैं।

भारतीय सेना ने कसी कमर

सिलीगुड़ी कॉरिडोर को अहमियत भारत भी समझता है। चीन औऱ पाकिस्तान जिस तरह से इस कॉरिडोर से सटे रंगपुर पर नजरें गड़ाएं बैठे हैं, इस पर भारत की पूरी नजर है। इसी महीने मई 2025 में सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास भारतीय सेना ने एख मिलिट्री एक्सरसाइज “तीस्ता प्रहार” भी की थी। यह अभ्यास पश्चिम बंगाल के तीस्ता फील्ड फायरिंग रेंज में हुआ और इसका उद्देश्य क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूत करना था। तीन दिन तक चले इस अभ्यास में पैदल सेना (इन्फैंट्री), तोपखाना, बख्तरबंद रेजिमेंट, मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री, स्पेशल फोर्सेज, आर्मी एविएशन, इंजीनियर और सिग्नल यूनिट्स ने हिस्सा लिया। इसमें आधुनिक हथियारों, जैसे हैवी आर्टिलरी और LMG, के साथ-साथ लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया गया। अभ्यास का उद्देश्य प्रतिकूल परिस्थितियों में दुश्मन को परास्त करने की रणनीतियों को मजबूत करना और विभिन्न सैन्य इकाइयों के बीच तालमेल सुनिश्चित करना था।

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हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि लालमोनिरहाट हवाई अड्डे को नागरिक उपयोग के लिए डेवलप किया जा रहा है या सैन्य उद्देश्यों के लिए। लेकिन यह साफ है कि भारत को अपनी सुरक्षा रणनीति को और मजबूत करना होगा। लेफ्टिनेंट जनरल साहा ने सुझाव दिया कि भारत को इस खतरे को शुरूआत में ही रोकना होगा। इसके लिए कूटनीतिक और सैन्य दोनों स्तरों पर कदम उठाने की जरूरत है। भारत को बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि वह चीन के प्रभाव में न आए। साथ ही, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में अपनी सैन्य मौजूदगी को और बढ़ाना होगा, ताकि बंगाल की खाड़ी में भारत की स्थिति मजबूत रहे।

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हरेंद्र चौधरी
हरेंद्र चौधरीhttp://harendra@rakshasamachar.com
हरेंद्र चौधरी रक्षा पत्रकारिता (Defence Journalism) में सक्रिय हैं और RakshaSamachar.com से जुड़े हैं। वे लंबे समय से भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ी रणनीतिक खबरों, रक्षा नीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को कवर कर रहे हैं। पत्रकारिता के अपने करियर में हरेंद्र ने संसद की गतिविधियों, सैन्य अभियानों, भारत-पाक और भारत-चीन सीमा विवादों, रक्षा खरीद और ‘मेक इन इंडिया’ रक्षा परियोजनाओं पर विस्तृत लेख लिखे हैं। वे रक्षा मामलों की गहरी समझ और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। 📍 Location: New Delhi, in 🎯 Area of Expertise: Defence, Diplomacy, National Security

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