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Operation Sindoor को लेकर क्यों कोर्ट पहुंचे रिलायंस, वायुसेना के पूर्व अफसर और दिल्ली के नामी वकील, मिलिट्री ऑपरेशन पर कब्जा करने की कोशिश!

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ऑपरेशन सिंदूर" सैन्य कार्रवाई के बाद इसके नाम के ट्रेडमार्क के लिए होड़ शुरू हो गई है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 7 मई 2025 को सबसे पहले आवेदन किया। वहीं, "ऑपरेशन सिंदूर" जैसे राष्ट्रीय महत्व के नाम का व्यावसायिक उपयोग विवादास्पद हो सकता है, क्योंकि यह राष्ट्रीय भावनाओं से जुड़ा है। रजिस्ट्री को यह तय करना होगा कि क्या यह ट्रेडमार्क उचित है, या सरकार इसका विरोध करेगी...
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📍नई दिल्ली | 8 May, 2025, 12:40 PM

Operation Sindoor: भारत की सैन्य कार्रवाई ऑपरेशन सिंदूर के एलान के कुछ ही घंटों बाद, इस नाम के ट्रेडमार्क के लिए होड़ शुरू हो गई। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे पहले 7 मई 2025 को सुबह 10:42 बजे ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया। अगले 24 घंटों में तीन और आवेदकों मुंबई के मुकेश चेतराम अग्रवाल, रिटायर्ड वायुसेना अधिकारी ग्रुप कैप्टन कमल सिंह ओबेरो, और दिल्ली के वकील आलोक कोठारी ने भी इस नाम के लिए दावा ठोका। ये सभी आवेदन क्लास 41 के तहत किए गए, जो मनोरंजन, शिक्षा, सांस्कृतिक और मीडिया सेवाओं को कवर करता है। लेकिन सवाल यह है कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे राष्ट्रीय महत्व के नाम पर ट्रेडमार्क की दौड़ क्यों और कैसे शुरू हुई? आइए, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।

वहीं इस खबर के बाद रिलायंस की तरफ से स्पष्टीकरण जारी किया गया है।

Operation Sindoor: एक नाम, कई अर्थ

ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) भारत की हालिया सीमा पार सैन्य कार्रवाई का नाम है, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा। 7 मई 2025 को तड़के भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (पीओके) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए। यह कार्रवाई 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में थी, जिसमें 26 लोग मारे गए थे। “सिंदूर” शब्द भारतीय संस्कृति में बलिदान, वीरता और प्रतिबद्धदेवता का प्रतीक माना जाता है, जिसने इस ऑपरेशन को भावनात्मक और देशभक्ति से जोड़ा। इस नाम की लोकप्रियता के चलते इसे फिल्मों, वेब सीरीज, डॉक्यूमेंट्री, या अन्य व्यावसायिक इस्तेमाल को लेकर लोगों में होड़ मच गई।

ट्रेडमार्क की दौड़: कौन-कौन शामिल?

भारत की (Operation Sindoor) सबसे बड़ी कंपनियों में से एक रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे पहले सुबह 10:42 बजे आवेदन किया। इसके बाद मुकेश चेतराम अग्रवाल (मुंबई), ग्रुप कैप्टन कमल सिंह ओबेरो (रिटायर्ड वायुसेना अधिकारी), और आलोक कोठारी (दिल्ली के वकील) ने 7 मई को शाम 6:27 बजे तक अपने आवेदन दाखिल किए। सभी ने ऑपरेशन सिंदूर को “प्रस्तावित उपयोग” के तौर पर चिह्नित किया, यानी अभी इसका व्यावसायिक उपयोग शुरू नहीं हुआ, लेकिन भविष्य में इसके लिए योजना है।

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ये आवेदन क्लास 41 के तहत हैं, जो निम्नलिखित सेवाओं जैसे शिक्षा और प्रशिक्षण सेवाएं, फिल्म और मीडिया प्रोडक्शन, लाइव प्रदर्शन और इवेंट्स, डिजिटल कंटेंट डिलीवरी और प्रकाशन, सांस्कृतिक और खेल गतिविधियों को कवर करता है। इसका मतलब है कि “ऑपरेशन सिंदूर” का नाम फिल्म, वेब सीरीज, डॉक्यूमेंट्री, या किसी इवेंट के लिए इस्तेमाल हो सकता है।

भारत में ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया

भारत में ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन (Operation Sindoor) ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 के तहत होता है। यह प्रक्रिया व्यवस्थित लेकिन जटिल है, जिसमें कई चरण शामिल हैं। कोई व्यक्ति या कंपनी ट्रेडमार्क रजिस्ट्री में आवेदन दाखिल करती है। इसमें ट्रेडमार्क का नाम, लोगो, या स्लोगन, साथ ही उसकी क्लासिफिकेशन (जैसे क्लास 41) और उपयोग का विवरण देना होता है। आवेदन के साथ फीस जमा की जाती है, जो व्यक्तिगत आवेदकों के लिए कम और कंपनियों के लिए ज्यादा हो सकती है।

“ऑपरेशन सिंदूर” (Operation Sindoor) के मामले में, चार आवेदकों ने 7 मई 2025 को क्लास 41 के तहत आवेदन किया, जो मनोरंजन, शिक्षा, और सांस्कृतिक सेवाओं से संबंधित है।

इसके बाद ट्रेड मार्क्स रजिस्ट्री आवेदन की जांच करती है। यह देखा जाता है कि ट्रेडमार्क मौजूदा रजिस्टर्ड मार्क्स से मिलता-जुलता तो नहीं है। रजिस्ट्री यह भी जांचती है कि ट्रेडमार्क भ्रामक, आपत्तिजनक, या सार्वजनिक नीति के खिलाफ तो नहीं है। “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे नाम के लिए, रजिस्ट्री यह जांच सकती है कि क्या यह राष्ट्रीय भावनाओं या रक्षा से गलत संबंध सुझाता है।

यदि आवेदन प्रारंभिक जांच में पास हो जाता है, तो इसे ट्रेडमार्क्स जर्नल में चार महीने के लिए प्रकाशित किया जाता है। इस दौरान कोई भी व्यक्ति या संगठन, जैसे रक्षा मंत्रालय या अन्य आवेदक, ट्रेडमार्क के खिलाफ विरोध दर्ज कर सकता है। ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के मामले में, यदि सरकार यह मानती है कि इस नाम का व्यावसायिक उपयोग अनुचित है, तो वह विरोध कर सकती है।

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यदि कोई विरोध होता है, तो ट्रेडमार्क रजिस्ट्री दोनों पक्षों को सुनवाई का मौका देती है। विरोध के आधार पर आवेदन खारिज हो सकता है, या आवेदक को अपने दावे को मजबूत करने के लिए सबूत पेश करने पड़ सकते हैं। यदि कई आवेदक एक ही नाम के लिए दावा करते हैं, जैसे “ऑपरेशन सिंदूर”, (Operation Sindoor) तो रजिस्ट्री जांच को रोक सकती है और विरोध कार्यवाही शुरू हो सकती है। वहीं, अगर कोई विरोध नहीं होता या आवेदक विरोध में जीत जाता है, तो ट्रेडमार्क रजिस्टर हो जाता है। रजिस्ट्रेशन के बाद ट्रेडमार्क धारक को 10 साल के लिए विशेष अधिकार मिलते हैं, जिसे नवीनीकरण के साथ बढ़ाया जा सकता है।

क्या सैन्य ऑपरेशन का नाम ट्रेडमार्क हो सकता है?

भारत में सैन्य ऑपरेशन के नाम, जैसे “ऑपरेशन सिंदूर”, (Operation Sindoor) स्वतः बौद्धिक संपदा के रूप में संरक्षित नहीं होते। रक्षा मंत्रालय आमतौर पर ऐसे नामों को रजिस्टर या व्यावसायिक उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं करता। कोई विशेष कानूनी ढांचा इन नामों को निजी व्यक्तियों या कंपनियों द्वारा ट्रेडमार्क के रूप में दावा करने से नहीं रोकता, जब तक कि सरकार हस्तक्षेप न करे।

हालांकि, ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 की धारा 9(2) और धारा 11 के तहत, रजिस्ट्रार किसी ट्रेडमार्क को खारिज कर सकता है, अगर वह भ्रामक हो, राष्ट्रीय रक्षा से गलत संबंध सुझाता हो, सार्वजनिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता हो। इसके बावजूद, वर्तमान में ऐसे नामों को रजिस्टर करने पर कोई रोक नहीं है, जब तक कि सरकार या कोई अन्य पक्ष इसका विरोध न करे।

क्यों मची है होड़?

ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) का नाम देशभक्ति और भावनात्मक जुड़ाव के चलते लोगों को लुभा रहा है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने अनुमान लगाया कि रिलायंस इस नाम का इस्तेमाल किसी फिल्म, वेब सीरीज, या डॉक्यूमेंट्री के लिए कर सकता है। मुकेश चेतराम अग्रवाल और आलोक कोठारी जैसे व्यक्तियों के आवेदन से यह संकेत मिलता है कि छोटे निर्माता या उद्यमी भी इस नाम को भुनाने की कोशिश में हैं। ग्रुप कैप्टन कमल सिंह ओबेरो, जो एक रिटायर्ड वायुसेना अधिकारी हैं, शायद इस नाम का उपयोग किसी सैन्य थीम वाली शैक्षिक या सांस्कृतिक परियोजना के लिए करना चाहते हैं।

वहीं, इस खबर पर रिलायंस का कहना है,

रिलायंस इंडस्ट्रीज का ऑपरेशन सिंदूर को ट्रेडमार्क करने का कोई इरादा नहीं है, यह एक ऐसा नाम है जो अब राष्ट्रीय चेतना का हिस्सा बन चुका है और भारतीय वीरता का एक प्रभावशाली प्रतीक है। जियो स्टूडियोज, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज की एक इकाई है, ने अपनी ट्रेडमार्क आवेदन वापस ले लिया है, जो एक जूनियर कर्मचारी द्वारा अनजाने में और बिना अनुमति के दायर किया गया था। रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसके सभी हितधारक ऑपरेशन सिंदूर पर बेहद गर्व करते हैं, जो पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले के जवाब में शुरू हुआ था। ऑपरेशन सिंदूर हमारे वीर सशस्त्र बलों की गर्वपूर्ण उपलब्धि है, जो भारत की आतंकवाद के बुराई के खिलाफ अडिग लड़ाई का प्रतीक है। रिलायंस आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में हमारी सरकार और सशस्त्र बलों के साथ पूरी तरह से समर्थन में खड़ा है। ‘इंडिया फर्स्ट’ के हमारे नारे के प्रति हमारी प्रतिबद्धता अटूट बनी हुई है।”

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सोशल मीडिया पर इस ट्रेडमार्क दौड़ को लेकर बहस छिड़ी है। एक यूजर ने लिखा, “जब देश सैन्य कार्रवाई की बात कर रहा था, कुछ लोग ट्रेडमार्क फाइल करने में व्यस्त थे।” वहीं, कुछ लोग इसे व्यावसायिक अवसर मान रहे हैं। एक अन्य यूजर ने कहा, “अगर रिलायंस इस नाम से फिल्म बनाए, तो यह ब्लॉकबस्टर होगी।”

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