📍नई दिल्ली | 14 Oct, 2025, 5:07 PM
Commutation of Pension: देशभर के पूर्व सैनिकों के बीच अब एक नई बहस छिड़ी हुई है। यह बहस किसी ऑपरेशन या युद्ध की नहीं, बल्कि पेंशन के कम्यूटेशन जैसे पेचीदा लेकिन जीवन से जुड़े मुद्दे पर है। दशकों से चली आ रही 15 साल की रिकवरी पॉलिसी पर अब पूर्व सैनिक खुलकर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि यह नियम अब न तो व्यावहारिक रहा है और न ही न्यायसंगत।
इस अभियान की पहल कर्नल एमएस राजू (सेवानिवृत्त) ने की है, जिन्होंने इस विषय पर एक विस्तृत विश्लेषणात्मक दस्तावेज, “इनसाइट ऑन कम्यूटेशन ओएफ पेंशन” तैयार कर 8 एपीसीसी एजी ब्रांच को भेजा है। यह वही विभाग है जो पेंशन और सेवा लाभों से जुड़े मामलों की समीक्षा करता है और जिसे आगामी 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के लिए सुझाव तैयार करने का दायित्व मिला है।
Commutation of Pension: आयोग करेगा विचार-विमर्श
कर्नल राजू की इस पहल को 8 एपीसीसी के कर्नल संजय भाटिया ने गंभीरता से लिया है। उन्होंने न केवल इसकी की, बल्कि यह भी सूचित किया कि इसे आयोग के औपचारिक विचार-विमर्श के लिए रखा जाएगा।
कर्नल भाटिया ने कहा है कि यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसमें पूर्व सैनिकों और सेवानिवृत्त अधिकारियों की राय शामिल की जानी चाहिए। उन्होंने देशभर के सभी अनुभवी अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे इस पर अपने सुझाव और टिप्पणियां भेजें ताकि आयोग के सामने एक ठोस, तार्किक और व्यावहारिक प्रस्ताव रखा जा सके।
उन्होंने सभी पूर्व सैनिकों से अनुरोध किया है कि अपने विचार सीधे उनकी ईमेल आईडी m1.8apcc@gov.in पर भेजें, और साथ ही colmsraju@gmail.com को सीसी में रखें, ताकि सुझावों का एक दस्तावेज तैयार किया जा सके।
उनके इस विश्लेषण का पीडीएफ यहां उपलब्ध है…
Commutation of Pension: नियम चार दशक पुराना, बदले हालात
कम्यूटेशन ऑफ पेंशन की व्यवस्था 1925 में बनी सिविल पेंशंस (कम्यूटेशन) रूल्स से शुरू हुई थी। इस नियम के तहत, किसी भी सरकारी कर्मचारी को रिटायरमेंट के समय अपनी पेंशन का एक हिस्सा एकमुश्त रकम के रूप में लेने की अनुमति होती है। इस रकम को सरकार अगले 15 वर्षों तक मासिक पेंशन से काटकर वसूल करती है।
1986 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में तय किया कि यह वसूली जीवनभर नहीं, केवल 15 वर्षों तक की जाएगी। उस समय यह फैसला एक राहत के तौर पर आया था लेकिन अब यह नीति समय से पीछे छूटी व्यवस्था बन चुकी है।
अब ब्याज दरें दोगुनी हो चुकी हैं, जीवन प्रत्याशा बढ़कर 80 वर्ष तक पहुंच गई है, और डिजिटल मॉनिटरिंग से वसूली बहुत अधिक बढ़ गई है। ऐसे में, पूर्व सैनिकों का कहना है कि सरकार को अब यह स्वीकार करना चाहिए कि 15 साल की अवधि व्यावहारिक नहीं रही।
“यह कोई लाभ कमाने की पॉलिसी नहीं”
पूर्व सैनिकों का मानना है कि पेंशन नीति का उद्देश्य सरकारी लाभ नहीं बल्कि राहत होना चाहिए। कर्नल राजू कहते हैं, “सरकार को अपनी दी हुई राशि ब्याज सहित वसूलने का अधिकार है, लेकिन उसके बाद भी कटौती जारी रखना अनुचित है। यह नीति ‘नो प्रॉफिट–नो लॉस’ के सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिए, न कि लाभ कमाने के आधार पर।”
पूर्व सैनिकों का तर्क है कि मौजूदा ब्याज दरों के अनुसार सरकार 11 से 12 वर्षों में पूरी वसूली कर लेती है, इसके बाद की कटौती केवल अतिरिक्त भार है।
डिफेंस कर्मियों पर सबसे ज्यादा असर
डिफेंस सर्विसेज में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। सेना, नौसेना और वायुसेना के अधिकारी और जवान सामान्यतः 37 से 45 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। इस स्थिति में जब 15 साल तक कम्यूटेड हिस्सा काटा जाता है, तो उनकी पूरी पेंशन 55 से 60 वर्ष की उम्र के बाद ही रीस्टोर होती है, यानी सेवा के बाद का पूरा मध्य जीवन आर्थिक रूप से प्रभावित रहता है।
एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “हमने अपने सबसे ऊर्जावान साल देश को दिए। अब जब हमें राहत मिलनी चाहिए, तब हमारी पेंशन से कटौती जारी रहती है। यह नीति अब पुनर्विचार योग्य है।”
नीतिगत समीक्षा का है वक्त
हाल ही में डिपार्टमेंट ऑफ पेंशन एंड पेंशनर्स’ वेलफेयर ने 23 जुलाई 2025 को एक आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि पेंशन कम्यूटेशन से संबंधित मामला अब न्यायालयों में नहीं जाएगा, बल्कि 8वें केंद्रीय वेतन आयोग को नीतिगत समीक्षा के लिए भेजा जाएगा। इसका अर्थ यह है कि सरकार पहली बार औपचारिक रूप से इस नीति की पुनः जांच को तैयार है। यही वह अवसर है जब पूर्व सैनिकों की राय और अनुभव नीति-निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
5वें और 6वें वेतन आयोग की पुरानी सिफारिशें अब प्रासंगिक
पांचवें वेतन आयोग ने पहले ही 1997 में सिफारिश की थी कि सरकार 12 वर्षों में कम्यूटेड राशि और ब्याज की पूरी वसूली कर लेती है, इसलिए पेंशन की बहाली अवधि को 15 से घटाकर 12 वर्ष किया जाना चाहिए। लेकिन यह सिफारिश लागू नहीं हुई।
छठे वेतन आयोग ने भी माना कि ब्याज दरें बढ़ने और जीवन प्रत्याशा में सुधार के बावजूद सरकार को नीति में बदलाव करना चाहिए। मगर वह भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब, जब 8वां वेतन आयोग इस विषय को फिर से खंगालने जा रहा है, पूर्व सैनिकों की यह पहल इसे दोबारा बहस के केंद्र में ला सकती है।
कर्नल राजू ने अपने संदेश में लिखा है, “यह विषय उन लोगों के लिए है जिन्होंने राष्ट्र को अपनी जवानी दी। यह कोई आर्थिक सौदा नहीं, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी है कि सरकार उन्हें समय पर पूरा सम्मान और राहत दे।”
उन्होंने पूर्व सैनिकों से कहा है कि भले ही जिन्होंने 15 साल की अवधि पूरी कर ली है, वे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न हों, लेकिन उनके सुझाव भविष्य के सेवानिवृत्त साथियों के लिए नीति में सुधार का आधार बन सकते हैं।