📍नई दिल्ली | 16 Oct, 2025, 8:45 PM
UN Peacekeeping Conclave 2025: भारत ने एक बार फिर ग्लोबल प्लेटफार्म पर अपनी तकनीकी और रणनीतिक क्षमता का प्रदर्शन किया है। तीन दिवसीय संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन देशों के प्रमुखों के सम्मेलन (UNTCC) के समापन के साथ भारत ने न केवल अपनी मेजबानी निभाई, बल्कि खुद को संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के एक टेक्नोलॉजी पार्टनर के तौर पर भी स्थापित कर लिया।
यह सम्मेलन 14 से 16 अक्टूबर 2025 तक नई दिल्ली में आयोजित किया गया। भारतीय सेना द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में 32 देशों के सेनाध्यक्षों और संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य वैश्विक शांति अभियानों को नई तकनीक, नवाचार और सहयोग के जरिए अधिक प्रभावी बनाना था।
UN Peacekeeping Conclave 2025: भारत ने दिखाया ‘टेक्नोलॉजी ड्रिवन पीसकीपिंग’ का मॉडल
सम्मेलन का सबसे चर्चित सत्र था “संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में प्रौद्योगिकी का फायदा उठाना” (लीवरेजिंग टेक्नोलॉजी इन यूएन पीसकीपिंग), जिसमें भारत ने अपनी स्वदेशी रक्षा तकनीक और इनोवेशन की झलक पेश की। इस सत्र में 15 देशों के उद्योग प्रतिनिधि और संयुक्त राष्ट्र के रक्षा विशेषज्ञ शामिल हुए।
इस सत्र में यह चर्चा हुई कि आधुनिक शांति अभियानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन निगरानी, डेटा एनालिटिक्स, सैटेलाइट लिंकिंग और साइबर सिक्योरिटी सिस्टम जैसी तकनीकों का समावेश कैसे किया जा सकता है। भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठनों और निजी कंपनियों ने अपने स्वदेशी इनोवेशन का प्रदर्शन करते हुए दिखाया कि भारत अब केवल सैनिक योगदान नहीं, बल्कि तकनीकी योगदान में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
भारतीय प्रतिनिधियों ने बताया कि भविष्य के यूएन मिशन सिचुएशनल अवेयरनेस सिस्टम्स, रियल टाइम कम्युनिकेशन नेटवर्क्स और ऑटोमेटेड लॉजिस्टिक सपोर्ट सिस्टम्स के सहारे ज्यादा सुरक्षित और कुशल हो सकते हैं।
“टेक्नोलॉजी अब शांति अभियानों की रीढ़” – UN Peacekeeping Conclave 2025
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि “शांति अभियानों को आज टेक्नोलॉजिकल इनोवेशंस से सशक्त करने की जरूरत है। अब संघर्ष केवल सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि डेटा, साइबर स्पेस और सूचना तंत्र तक फैल चुके हैं। ऐसे में, तकनीक के माध्यम से ही शांति अभियानों को आधुनिक और प्रभावी बनाया जा सकता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि शांति सैनिकों की सुरक्षा और ऑपरेशनल क्षमता को बढ़ाने में तकनीक निर्णायक भूमिका निभा रही है। जयशंकर ने कहा कि भारत इस दिशा में अपने अनुभव और इनोवेशंस को विश्व के साथ साझा करने के लिए तैयार है।
जनरल उपेंद्र द्विवेदी बोले- “शांति में भी टेक्नोलॉजी की भूमिका जरूरी”
भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने सम्मेलन के दौरान छह देशों बुरुंडी, तंजानिया, पोलैंड, इथियोपिया, नेपाल और युगांडा के सेनाध्यक्षों से द्विपक्षीय वार्ता की। इन बैठकों में शांति अभियानों में तकनीकी समन्वय, इंटरऑपरेबिलिटी और ट्रेनिंग साझेदारी पर चर्चा हुई।
जनरल द्विवेदी ने कहा कि “भारत तकनीक आधारित शांति अभियानों का मॉडल दुनिया के सामने रख रहा है। हमारा उद्देश्य केवल सैनिक भेजना नहीं, बल्कि समाधान और इनोवेशंस देना है।”
उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय सेना अब अपने सभी शांति अभियानों में टेक-बेस्ड सिचुएशनल अवेयरनेस सिस्टम्स और डिजिटल लॉजिस्टिक्स सपोर्ट को शामिल कर रही है।
डिफेंस एक्सपो में दिखा ‘आत्मनिर्भर भारत’ का दम
सम्मेलन के साथ-साथ आयोजित डिफेंस एक्पो में भारत की तकनीकी ताकत का बड़ा प्रदर्शन हुआ। इसमें 41 भारतीय रक्षा कंपनियों और स्टार्टअप्स ने अपने अत्याधुनिक सिस्टम्स और प्लेटफॉर्म्स का प्रदर्शन किया। इस एक्सपो ने यह संदेश दिया कि भारत अब केवल रक्षा उपकरणों का खरीदार नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर आपूर्तिकर्ता और टेक्नोलॉजी डेवलपर बन चुका है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का संदेश, “भारत सिर्फ सैनिक नहीं, तकनीकी नेतृत्व भी दे रहा है”
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन में सभी सेनाध्यक्षों और प्रतिनिधियों से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि “शांति अभियानों में भारत की भूमिका अब सैनिक योगदान से आगे बढ़ चुकी है। हम अब टेक्नोलॉजी और रणनीति के क्षेत्र में भी नेतृत्व कर रहे हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में शांति अभियानों की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि देश कितनी तेजी से तकनीकी सहयोग और नवाचार को अपनाते हैं।

प्रस्ताव पर जताई सहमति
सम्मेलन के दौरान सभी देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को नई वैश्विक चुनौतियों के अनुरूप ढालने के लिए साझा टेक्नोलॉजी फ्रेमवर्क बनाया जाना चाहिए। इसमें डेटा शेयरिंग नेटवर्क्स, साइबर प्रोटेक्शन प्रोटोकॉल्स, और इंटरऑपरेबल कम्युनिकेशन सिस्टम्स को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई।
सम्मेलन के अंत में सभी प्रतिनिधियों ने “इंडिया डिक्लेरेशन ऑन टेक्नोलॉजी फोर पीसकीपिंग” नामक प्रस्ताव पर अपनी सहमति जताई, जो भविष्य के शांति अभियानों के लिए तकनीकी सहयोग का खाका तैयार करेगा।
तीन दिनों तक चले इस सम्मेलन में भारत ने न केवल अपनी कूटनीतिक क्षमता दिखाई, बल्कि यह भी साबित किया कि वह 21वीं सदी के शांति अभियानों का तकनीकी मार्गदर्शक बन सकता है।
भारत की यह भूमिका एक ऐसे समय में आई है जब दुनिया के कई हिस्सों में शांति अभियानों को साइबर अटैक्स, इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर और एआई-आधारित खतरों का सामना करना पड़ रहा है।