📍द्रास, कारगिल | 1 day ago
Dhanush Artillery Guns: भारतीय सेना ने कुछ साल पहले ही स्वदेश में बनी धनुष तोप को अपनी आर्टिलरी रेजीमेंट में शामिल किया है। जिसके बाद सेना की आर्टिलरी पावर में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। लद्दाख और चीन-पाकिस्तान की सीमाओं पर स्वदेशी ‘धनुष’ तोप की तैनाती अब भारतीय सेना की ताकत बनेगी। दरअसल 1980 के दशक में स्वीडन से बोफोर्स FH77B हॉवित्जर की खरीद के बाद बरसों तक बोफोर्स भ्रष्टाचार घोटाला लंबे समय तक सेना की रक्षा खरीद प्रक्रिया को प्रभावित करता रहा। जिसके चलते लंबे समय तक सेना की आर्टिलरी क्षमता को मॉर्डेनाइज नहीं किया जा सका। वहीं भारत ने इसके बाद फैसला किया वह विदेशी खरीद पर निर्भर न रह कर स्वदेश में ही हथियार बनाएगा। द्रास स्थित कारगिल बैटल स्कूल में हमें धनुष गन को नजदीक से देखने का मौका मिला, जहां इन सभी का ट्रायल और ट्रेनिंग दी जाती है और सैनिकों को हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर के लिए तैयार किया जाता है।
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— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) July 26, 2025
Dhanush Artillery Guns: बोफोर्स से आगे निकली ‘धनुष’
भारतीय सेना की आर्टिलरी क्षमता में इजाफे की शुरुआत बोफोर्स तोप से हुई थी, जिसे 1986 में स्वीडन से 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत में खरीदा गया था। बोफोर्स FH77B तोप 39-कैलिबर की बैरल और करीब 27 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम है। वहीं, बोफोर्स घोटाले के बाद भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देते हुए 2000 के दशक की शुरुआत में ‘फील्ड आर्टिलरी रेशनलाइजेशन प्लान (FARP)’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य पुराने हथियारों को हटाकर 2030 तक 3,000 से 4,000 नई 155 मिमी/52 कैलिबर की तोपों से सेना को लैस करना था। बता दें कि धनुष एक 155 मिमी/45 कैलिबर की होवित्जर (howitzer) तोप है, जिसे बोफोर्स की टेक्नोलॉजी को आधार बनाकर एडवांस बनाया गया है।
स्वदेशी निर्माण और आत्मनिर्भरता की मिसाल
भारतीय आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) जिसे अब अब AWEIL (Advanced Weapons and Equipment India Ltd) के नाम से जाना जाता है, उसने बोफोर्स के डिजाइन को रिवर्स-इंजीनियर करके ‘धनुष’ तोप को बनाया है। यह तोप जबलपुर की गन कैरेज फैक्ट्री में बनाई जा रही है और इसमें 81% स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल हुआ है, जिसे भविष्य में 90% तक बढ़ाने का लक्ष्य है। धनुष तोप को 2016-17 में भारतीय सेना के लिए उत्पादन के लिए मंजूरी मिली। पहली धनुष तोप को आधिकारिक रूप से 2019 में सेना में शामिल किया गया, और तब से इसका उत्पादन जबलपुर के गन कैरिज फैक्ट्री में चल रहा है।
तकनीकी खूबियों से है लैस
वहीं इस तोप में बोफोर्स की सारी खूबियां तो हैं ही, बल्कि यह एडवांस टेक्नोलॉजी से भी लैस है। धनुष तोप 38 किलोमीटर तक सटीक फायर कर सकती है, जो बोफोर्स से 11 किलोमीटर ज्यादा है। इसके अलावा इसमें इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम, मजल वेलोसिटी रडार (गोली की रफ्तार नापने वाला यंत्र), और कम्प्यूटर-आधारित निशाना लगाने की टेक्नोलॉजी है, जिससे निशाना लगाने का समय 30 मिनट से घटकर 2 मिनट हो जाता है। भारतीय सेना के पीआरओ कर्नल अरविंद के मुताबिक, “धनुष की सटीकता (accuracy) और समय पर फायरिंग क्षमता ने युद्ध के मैदान में हमारी ताकत को कई गुना बढ़ा दिया है। यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक मजबूत कदम है।”
ऑपरेशन सिंदूर में शानदार प्रदर्शन
सूत्रों ने बताया, “धनुष ने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में दुश्मन के ठिकानों पर सटीक प्रहार किए और ‘शूट एंड स्कूट’ (मारो और हटो) रणनीति में खुद को साबित किया।” नी दुश्मन की जवाबी कार्रवाई से पहले जगह बदलने की क्षमता रखती है। इसकी सेल्फ-प्रोपल्शन क्षमता (खुद चलने की क्षमता) इसे युद्ध के बाद जल्दी स्थान बदलने में मदद करती है, जो कि पहाड़ी युद्धक्षेत्रों में अत्यंत आवश्यक होता है। यानी यह तेजी से हमला कर खुद को सुरक्षित करने में सक्षम है।

114 तोपों की होनी है तैनाती
भारतीय सेना के पीआरओ कर्नल निशांत अरविंद के अनुसार, “1999 के कारगिल युद्ध में बोफोर्स ने शानदार प्रदर्शन किया था, और आज भी वह हमारे तोपखाने का हिस्सा है। लेकिन धनुष, जो कि भारत में पूरी तरह से बनी है, उससे भी आगे की क्षमताएं रखती है।” उन्होंने बताया कि धनुष एक 155 मिमी, 45 कैलिबर की लंबी बैरल वाली तोप है, जिसकी रेंज बोफोर्स से कहीं अधिक है। कर्नल निशांत अरविंद के मुताबिक, सेना की एक रेजिमेंट में पहले ही 18 धनुष तोपें शामिल हो चुकी हैं, और कुल 114 तोपों की तैनाती चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर प्रस्तावित है। बता दें कि भारतीय सेना में वर्तमान में लगभग 410 बोफोर्स FH-77B तोपें हैं। जिन्हें 10,000-13,000 फीट की ऊंचाई पर तैनात किया गया है।
आर्टिलरी मॉर्डेनाइजेशन में तेजी
सेना का ‘फील्ड आर्टिलरी रेशनलाइजेशन प्लान’ (FARP) पहले से ही चालू है, जिसके तहत 2030 तक लगभग 3000–4000 नई 155mm तोपों को शामिल किया जाना है। इस योजना के तहत AWEIL अब 52-कैलिबर टोड आर्टिलरी गन परियोजना की तैयारी कर रहा है। जिसके तहत 45 कैलिबर से 52 कैलिबर तोपों की ओर आगे बढ़ रहा है। कर्नल निशांत ने बताया, “अब हम मास फायरिंग (भारी संख्या में गोले दागना) की बजाय प्रिसीजन फायरिंग (सटीक निशाना) पर ध्यान दे रहे हैं। इससे सैन्य प्रभावशीलता तो बढ़ेगी ही, साथ ही गोला-बारूद की बचत भी होगी।”
वहीं, भारत अब धनुष की सफलता से उत्साहित हो कर अन्य स्वदेशी परियोजनाओं पर फोकस कर रहा है। दक्षिण कोरियाई तकनीक पर आधारित K9 वज्र को अब भारत में ही बनाया जा रहा है। इसके अलावा सेना अब 155mm/52 कैलिबर वाली नई ‘माउंटेड गन सिस्टम’ और ‘एडवांस टोइड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS)’ पर भी काम कर रही है। इससे भारत न केवल आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि भविष्य की किसी भी जंग के लिए तकनीकी रूप से तैयार भी रहेगा।
नेटवर्क युद्ध के लिए है तैयार
खास बात यह है कि धनुष को Army’s Artillery Combat Command and Control System (ACCCS) से जोड़ा गया है, जिससे सेना के सभी आर्टिलरी इक्विपमेंट्स एक नेटवर्क से जुड़ते हैं और युद्ध के दौरान रियल टाइम डाटा साझा करते हैं। यह भारतीय सेना की नेटवर्क वारफेयर का हिस्सा है। इसमें K9 वज्र तोप और माउंटेड दृष्टि सिस्टम भी शामिल हैं।
कारगिल युद्ध से लिया बड़ा सबक
कारगिल सेक्टर अब पहले से कहीं ज्यादा आधुनिक हथियारों और वाहनों से लैस है। अगर 1999 में भारतीय सेना के पास सीमित हथियार थे, तो आज भारतीय सेना 1999 की तुलना में कहीं अधिक ताकतवर और तकनीकी रूप से एडवांस है। कारगिल युद्ध ने भारत को अपनी रक्षा तैयारियों में कमियों को पहचानने का मौका दिया। उस समय की चुनौतियों ने भारत को स्वदेशीकरण के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया। आज, धनुष और अन्य स्वदेशी हथियार उस सबक का परिणाम हैं।

आज भारतीय सैनिकों के पास इजरायली नेगेव लाइट मशीन गन (LMG), स्वदेशी AK-203 राइफल और अमेरिकी SIG राइफल जैसे आधुनिक हथियार हैं। बर्फीले इलाकों में ऑपरेशन के लिए सेना को पोलारिस और स्वदेशी ‘कपित ध्वज’ जैसे ऑल-टेरेन वाहन मिले हैं, जो हाई एल्टीट्यूड और ग्लेशियरों इलाकों में तेजी से मूवमेंट में मदद करते हैं।
साथ ही, सेना के पास त्रिनेत्र और फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन जैसे स्वदेशी निगरानी उपकरण हैं। इसके अलावा Asteria AT-15 जैसे सिस्टम भी दुश्मन की हर हरकत पर नजर रखने में मदद करते हैं। यह सभी एक्विपमेंट्स कारगिल बैटल स्कूल में सक्रिय रूप से इस्तेमाल हो रहे हैं, जहां जवानों को हाई एल्टीट्यूड इलाकों में युद्ध और रणनीति की ट्रेनिंग दी जाती है। भारतीय सेना अब हर मोर्चे पर तैयार है, चाहे वह बर्फीली ऊंचाइयां हों या टेक्नोलॉजी से लैस युद्धभूमि। वहीं, धनुष जैसी तोपें भारत की इसी तैयारियों की मिसाल बन रही हैं। ये हथियार न केवल भारत की सैन्य ताकत को बढ़ाते हैं, बल्कि देश के आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को भी दर्शाते हैं।