Indus Waters Treaty: सिंधु जल समझौते के निलंबन को पाकिस्तान ने बताया ‘जल युद्ध’, अफगानिस्तान का साथ मिला तो प्यासे मरेंगे आतंकी

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By हरेंद्र चौधरी

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भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को निलंबित किए जाने के फैसले ने पाकिस्तान में हड़कंप मचा दिया है। पाकिस्तानी अखबारों ने इसे 'जल युद्ध' करार दिया है और भारत पर जल संसाधनों को हथियार बनाने का आरोप लगाया है। इस बीच, भारत के अफगानिस्तान के साथ काबुल नदी पर डैम बनाने की संभावना भी चर्चा में है, जो सिंधु बेसिन का हिस्सा है। अगर ऐसा होता है, तो पाकिस्तान की जल आपूर्ति पर दोहरी मार पड़ेगी...

📍नई दिल्ली | 7 days ago

Indus Waters Treaty: हाल ही में भारत की तरफ से सिंधु जल समझौते (Indus Waters Treaty – IWT) को तत्काल प्रभाव से निलंबित किए जाने के फैसले ने पाकिस्तान में खलबली मचा दी है। भारत ने इस फैसले का एलान पहलगाम आतंकी हमले के बाद किया, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई थी। इसके बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तब तक यह संधि लागू नहीं रहेगी। वहीं, पाकिस्तान में इस कदम ने हड़कंप मचा दिया है, और पाकिस्तानी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने इसे दोनों देशों के बीच जल सहयोग के लिए एक बड़ा खतरा बताया। अखबार ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, कृषि और समाज पर इसके गंभीर प्रभावों की चेतावनी दी है।

Indus Waters Treaty: Pakistan Cries 'Water War' as India Gains Afghan Leverage
Indus Waters treaty signing Sept. 19, 1960: Jawaharlal Nehru, Prime Minister of India; Mohammed Ayub Khan, President of Pakistan; and William Illiff, World Bank vice president (Credit: The World Bank)
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Indus Waters Treaty: क्या है सिंधु जल समझौता?

सिंधु जल समझौता 19 सितंबर 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था। यह समझौता हिमालय से निकलने वाली सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों रावी, सतलज, ब्यास, झेलम, चिनाब और सिंधु के पानी के बंटवारे को नियंत्रित करता है। 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद पंजाब की एकीकृत सिंचाई प्रणाली टूट गई, जिससे पानी के बंटवारे का विवाद पैदा हुआ। नौ साल की बातचीत के बाद यह समझौता बना, जिसमें पूर्वी नदियों (रावी, सतलज, ब्यास) को भारत को इस्तेमाल करने का अधिकार मिला। जबकि पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब), इनका लगभग 80% पानी पाकिस्तान को मिलता है। भारत इन पश्चिमी नदियों पर सीमित रूप से “रन-ऑफ-द-रिवर” (यानि जल के बहाव में बिना अवरोध के) पनबिजली परियोजनाएं बना सकता है, लेकिन वह पाकिस्तान के जल प्रवाह को रोक नहीं सकता।

यह समझौता दोनों देशों के बीच तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) और कई तनावों के बावजूद 65 साल तक चला। लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत ने इसे निलंबित कर दिया, जिसे पाकिस्तानी अखबार ने “जल सहयोग का अंत” करार दिया।

Indus Waters Treaty: भारत के फैसले पर क्या बोले अखबार

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “सिंधु जल संधि को तब तक के लिए निलंबित किया जा रहा है, जब तक पाकिस्तान क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद को छोड़ नहीं देता।” भारत के इस फैसले के बाद पाकिस्तान के प्रमुख अखबारों में तीव्र प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा- “भारत ने सिंधु जल समझौते को हथियार बना लिया है और अब यह कदम कूटनीतिक दबाव का जरिया बन गया है।” वहीं, डॉन (DAWN) ने इसे “जल संकट की शुरुआत” बताते हुए लिखा- “अगर भारत ने पश्चिमी नदियों का पानी रोकना शुरू कर दिया, तो पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा।”

जबकि जंग अखबार ने चिंता जताई कि “भारत की इस घोषणा के पीछे राजनीतिक मकसद है, जिससे पाकिस्तान को पानी के मामले में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग किया जा सकता है।”

Indus Waters Treaty: पाकिस्तान के लिए क्यों अहम है यह संधि?

पाकिस्तान की 80% से अधिक सिंचाई व्यवस्था सिंधु रिवर बेसिन (Indus River Basin) पर निर्भर है। सिंधु, झेलम और चिनाब नदियां वहां की कृषि, बिजली उत्पादन और पीने के पानी का मुख्य स्रोत हैं। इस रिवर बेसिन सिस्टम से लगभग 16.8 करोड़ एकड़ फीट पानी मिलता है, जिसमें से भारत को केवल 3.3 करोड़ एकड़ फीट जल मिलता है। भारत अपने हिस्से का लगभग 90% उपयोग करता है, जबकि पाकिस्तान शेष जल पर पूरी तरह निर्भर रहता है।

पाकिस्तान के मंगला और तरबेला जैसे बड़े डैम की जल भंडारण क्षमता भी काफी सीमित है, जो संधि के तहत उपलब्ध जल का केवल 10% ही संग्रह कर पाते हैं। पानी की कमी या मौसमी बदलाव के समय यह क्षमता अपर्याप्त है, जिससे पाकिस्तान और कमजोर हो जाएगा। इस कारण किसी भी जल संकट की स्थिति में पाकिस्तान की स्थिति बेहद नाजुक हो सकती है।

‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने अपने लेख में इस निलंबन को पाकिस्तान के लिए “विनाशकारी” बताया और इसे दोनों देशों के बीच जल सहयोग के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना करार दिया। अखबार ने लिखा कि सिंधु नदी पाकिस्तान की कृषि, पीने के पानी और आर्थिक स्थिरता की रीढ़ है। पाकिस्तान को मिलने वाला पानी देश के 68% ग्रामीण आजीविका और 23% कृषि जरूरतों को पूरा करता है। निलंबन से पानी की कमी हो सकती है, जिससे फसल उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा।

सीमित भंडारण क्षमता: पाकिस्तान के पास मंगला और तरबेला जैसे डैम हैं, जिनकी कुल भंडारण क्षमता केवल 1.44 करोड़ एकड़-फीट है, जो उसके वार्षिक हक का 10% है। पानी की कमी या मौसमी बदलाव के समय यह क्षमता अपर्याप्त है, जिससे पाकिस्तान और कमजोर हो जाएगा। अखबार ने चेतावनी दी कि पानी की कमी से पंजाब और सिंध प्रांतों में फसलें (गेहूं, चावल, कपास) प्रभावित होंगी। इससे खाद्य आयात बढ़ेगा, जो पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए मुश्किल होगा।

वहीं, पानी की कमी से जलविद्युत उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे 16 घंटे तक बिजली कटौती हो सकती है। वहीं, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्रों में पानी और खाद्य संकट से सामाजिक तनाव और विरोध प्रदर्शन बढ़ सकते हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों ने नदी के कम पानी से पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीवों पर असर की आशंका जताई है। अखबार ने लिखा कि यह निलंबन भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया तनाव पैदा करेगा। पाकिस्तानी ऊर्जा मंत्री अवैस लखारी ने कहा, पाकिस्तान इसे “जल युद्ध” मान रहा है।

Indus Waters Treaty: भारत के पास क्या हैं अधिकार?

हालांकि अखबार का यह भी कहना है कि संधि तोड़ने का तत्काल प्रभाव सीमित होगा, क्योंकि भारत के पास अभी पानी रोकने या मोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा (जैसे डैम) नहीं है। लेकिन लंबे समय में, भारत किशनगंगा (330 MW) और रातले (850 MW) जैसी परियोजनाओं को बढ़ाकर पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है, जिससे पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ेंगी।

इस संधि के तहत भारत को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 13.4 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई और 3.6 मिलियन एकड़ फीट जल भंडारण की अनुमति है। लेकिन अभी भारत इस पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर रहा है। यदि भारत अपनी पूरी शक्ति का उपयोग करता है, तो वह पाकिस्तान पर जल के मोर्चे पर रणनीतिक दबाव बना सकता है।

भारत को इन नदियों पर “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएं बनाने की अनुमति है, जिससे वह पनबिजली उत्पादन कर सकता है, लेकिन वह जल प्रवाह में दीर्घकालिक अवरोध नहीं कर सकता। हालांकि, भारत को ये अधिकार तकनीकी रूप से अस्थायी अवरोध (temporary flow control) की इजाजत देते हैं, जो कूटनीतिक टकराव के समय उपयोगी साबित हो सकते हैं।

भारत को क्या करना होगा?

सिंधु नदी का पानी लंबे समय तक रोकने के लिए भारत को दीर्घकालिक कदम उठाने होंगे। इनमें भारत को सिंधु, झेलम, और चिनाब नदियों पर बड़े डैम और जलाशय बनाने होंगे। उदाहरण के लिए, पाकल दुल (1,000 MW) और रातले (850 MW) जैसी परियोजनाओं को तेज करना होगा। जम्मू-कश्मीर और पंजाब में पानी के उपयोग के लिए नहरों और सिंचाई प्रणालियों का विस्तार करना होगा, जैसा कि शाहपुर कंडी बैराज के साथ किया गया। शाहपुर कंडी बैराज ने रावी नदी का पानी रोककर कठुआ और सांबा में 32,000 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई शुरू की है।

लेकिन बड़े पैमाने पर पानी रोकने के लिए नए डैम और जलाशय बनाने में समय और धन दोनों को ध्यान रखना होगा। इन परियोजनाओं के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी। उदाहरण के लिए, शाहपुर कंडी बैराज को पूरा होने में 45 साल लगे। वहीं, बड़े डैम बनाने से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पर्यावरणीय असंतुलन, जैसे बाढ़ या भूस्खलन का खतरा बढ़ सकता है। इसके लिए भारत को पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन (EIA) करना होगा।

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इसके अलावा भारत अफगानिस्तान के साथ मिलकर काबुल नदी पर डैम बनाकर पाकिस्तान पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है, क्योंकि यह नदी भी सिंधु बेसिन का हिस्सा है। काबुल नदी, अफगानिस्तान से बहकर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में प्रवेश करती है और आगे चलकर सिंधु नदी में मिल जाती है। यह नदी भी सिंधु नदी प्रणाली (Indus River Basin) का हिस्सा है, और पाकिस्तान के लिए एक बड़ा जल स्रोत मानी जाती है। भारत और अफगानिस्तान के बीच यदि काबुल नदी पर डैम निर्माण को लेकर कोई समझौता होता है, तो यह पाकिस्तान की छटपटाहट बढ़ जाएगी और उस पर दबाव और बढ़ेगा। भारत पहले भी अफगानिस्तान में सलमा डैम (हरिरुद नदी पर) जैसे परियोजनाओं में सहयोग कर चुका है। 2016 में हेरात में सलमा डैम (अफगान-भारत मैत्री डैम) के बाद अब भारत काबुल नदी की सहायक नदी मैदान पर शहतूत डैम बनाने में मदद कर रहा है।

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