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Emergency Defence Procurement Rules: आपातकालीन हथियार सौदों पर नई सख्ती, एक साल में डिलीवरी नहीं तो रद्द होगा कॉन्ट्रैक्ट

आपातकालीन रक्षा खरीद का इस्तेमाल तब किया जाता है जब तुरंत हथियार, गोला-बारूद या सिस्टम की जरूरत होती है। सामान्य रक्षा खरीद प्रक्रिया में कई चरण होते हैं और यह पांच से छह साल तक खिंच सकती है। लेकिन आपातकालीन खरीद के जरिए सेना को जल्दी हथियार उपलब्ध कराए जा सकते हैं...

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📍नई दिल्ली | 5 Sep, 2025, 10:45 AM

Emergency Defence Procurement Rules: भारत के रक्षा मंत्रालय ने रक्षा खरीद की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया है। अब आपातकालीन खरीद यानी इमरजेंसी प्रोक्योरमेंट (Emergency Procurement) के तहत किए गए किसी भी सौदे को एक साल के भीतर पूरा करना जरूरी होगा। अगर तय समयसीमा में हथियार या इक्विपमेंट्स नहीं मिलते हैं तो कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया जाएगा। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि भारतीय सेना की जरूरी जरूरतें समय पर पूरी हो सकें और ऑपरेशनल तैयारियों में कोई कमी न रहे।

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Emergency Defence Procurement Rules: क्यों होती है आपातकालीन खरीद

आपातकालीन रक्षा खरीद का इस्तेमाल तब किया जाता है जब तुरंत हथियार, गोला-बारूद या सिस्टम की जरूरत होती है। सामान्य रक्षा खरीद प्रक्रिया में कई चरण होते हैं और यह पांच से छह साल तक खिंच सकती है। लेकिन आपातकालीन खरीद के जरिए सेना को जल्दी हथियार उपलब्ध कराए जा सकते हैं।

लद्दाख में चीन के साथ तनाव और पाकिस्तान से लगातार मिल रही चुनौतियों के बाद भारत ने कई बार इस रूट का इस्तेमाल किया है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी सेना को आपातकालीन खरीद की अनुमति दी गई थी।

Emergency Defence Procurement Rules: ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदलाव

मई 2025 में हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद सरकार ने तीनों सेनाओं को पूंजीगत बजट का 15 फीसदी तक आपातकालीन खरीद पर खर्च करने की छूट दी थी। इसके बाद 24 जून को रक्षा मंत्रालय ने 1,981.90 करोड़ रुपये के 13 नए कॉन्ट्रैक्ट साइन किए। इनमें ड्रोन, लॉयटरिंग म्यूनिशन, काउंटर-ड्रोन सिस्टम, वी-शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (VSHORADS) और रडार शामिल थे।

रक्षा मंत्रालय द्वारा हाल ही में किए गए सौदों में उन हथियारों और उपकरणों पर जोर दिया गया है जिनकी जरूरत मॉडर्न वॉरफेयर में होती है। इसमें दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलों से निपटने के लिए कई सिस्टम शामिल किए गए हैं।

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सबसे पहले, रिमोटली पायलटेड एरियल व्हीकल (RPAV) और लुटरिंग म्यूनिशन का ऑर्डर दिया गया। ये ऐसे ड्रोन हैं जो निगरानी के साथ-साथ टारगेट पर सीधा हमला करने में सक्षम होते हैं। इनके इस्तेमाल से सेना दुश्मन की पोजिशन पर तुरंत कार्रवाई कर सकेगी।

दूसरा, काउंटर-ड्रोन सिस्टम्स का कॉन्ट्रैक्ट किया गया है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान और चीन की तरफ से ड्रोन के जरिए घुसपैठ और हथियारों की तस्करी बढ़ी है। ऐसे में सेना को ऐसे सिस्टम चाहिए जो हवा में ही दुश्मन के ड्रोन को मार गिरा सकें।

तीसरा, VSHORADS (Very Short Range Air Defence System) को शामिल किया गया है। यह मिसाइल सिस्टम नजदीक से आने वाले हेलिकॉप्टरों, ड्रोन और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों को निशाना बना सकता है। इससे सेना की एयर डिफेंस क्षमता मजबूत होगी।

इसके अलावा, आधुनिक रडार सिस्टम भी खरीदे गए हैं, जो दुश्मन की हलचल को दूर से पकड़ सकें। यह रडार नेटवर्क युद्ध के दौरान सेना को शुरुआती चेतावनी (अर्ली वार्निंग) देगा और सही समय पर कार्रवाई में मदद करेगा।

Emergency Defence Procurement Rules: सख्ती से लागू होगा नियम

लेकिन कई बार देखा गया कि इन खरीदों की सप्लाई तय समय पर नहीं हो पाई। ऐसे में यह सवाल उठा कि अगर हथियार समय पर सेना तक पहुंचे ही नहीं, तो आपातकालीन खरीद का मकसद ही क्या रह जाएगा। इसी वजह से अब मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि केवल वही हथियार और उपकरण खरीदे जाएंगे, जो बाजार में तुरंत उपलब्ध हों और एक साल के भीतर दिए जा सकें।

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अधिकारियों ने बताया कि अब यह नियम सख्ती से लागू होगा कि हर आपातकालीन सौदा एक साल के भीतर डिलीवर होना चाहिए। अगर कंपनियां समयसीमा में हथियार देने में नाकाम रहती हैं तो उनका कॉन्ट्रैक्ट सीधे रद्द कर दिया जाएगा।

रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने हाल ही में कहा था कि सामान्य रक्षा खरीद प्रक्रिया को पांच-छह साल से घटाकर दो साल के भीतर पूरा करने पर काम चल रहा है। इसके लिए हर स्टेप की समयसीमा घटाई जा रही है।

ट्रायल्स और टेस्टिंग में बदलाव

मंत्रालय अब कोशिश कर रहा है कि फील्ड इवैल्यूएशन ट्रायल्स (FET) एक साल के भीतर ही पूरे कर लिए जाएं, जबकि अभी इसमें दो से तीन साल लग जाते हैं। इसके अलावा, अगर कोई प्लेटफॉर्म पहले से किसी मित्र देश की सेना में इस्तेमाल हो रहा है तो भारत में उसका पूरा ट्रायल दोहराने की जरूरत नहीं होगी।

अन्य चरण जैसे रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP), कॉस्ट नेगोशिएशन आदि को भी तीन से छह महीने की समयसीमा में पूरा करने की कोशिश होगी, ताकि लंबी देरी से बचा जा सके।

पहले भी हुई है आपातकालीन खरीद

गलवान झड़प (जून 2020) के बाद भारत ने पहली बार 300 करोड़ रुपये तक की कैपिटल प्रोक्योरमेंट की अनुमति दी थी। इससे सेना ने मिसाइल, ड्रोन और गोला-बारूद खरीदा था।

इससे पहले 2016 की उरी सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी सेना को इमरजेंसी रेवेन्यू प्रोक्योरमेंट की अनुमति दी गई थी, ताकि तुरंत गोला-बारूद और स्पेयर पार्ट्स खरीदे जा सकें।

रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में सुधार

इसके अलावा सरकार रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 (Defence Acquisition Procedure – DAP 2020) को भी आसान बनाने की दिशा में काम कर रही है। इसके लिए एक उच्चस्तरीय पैनल बनाया गया है, जिसका नेतृत्व डायरेक्टर जनरल, एक्वीजिशन कर रहे हैं।

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यह पैनल कैटेगराइजेशन, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, ट्रायल्स, कॉन्ट्रैक्ट मैनेजमेंट और नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने पर सिफारिशें देगा। मई 2025 में रक्षा सचिव ने बताया था कि कई चरणों में समय पहले ही कम किया गया है और इससे कुल 69 हफ्तों की कटौती हुई है।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि आपातकालीन खरीद के तहत डिलीवरी की सख्त समयसीमा जरूरी थी। अब कंपनियां तभी बोली लगाएंगी जब उनके पास तैयार माल मौजूद होगा। इससे सेना को हथियार समय पर मिलेंगे और तैयारियों में कोई रुकावट नहीं आएगी। वहीं, रक्षा मंत्रालय का यह फैसला भारतीय सशस्त्र बलों की ऑपरेशनल रेडीनेस को और मजबूत करेगा।

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