📍नई दिल्ली | 5 Dec, 2024, 4:03 PM
1971 War: भारतीय सिनेमा की जानी-मानी अभिनेत्री सेलिना जेटली ने आज अपने पिता, कर्नल विक्रम कुमार जेटली (सेना मेडल) की 1971 के भारत-पाक युद्ध में वीरता और बलिदान की कहानी साझा की। यह कहानी न केवल उनके पिता के साहस को सम्मानित करती है, बल्कि उन हजारों सैनिकों की याद दिलाती है जिन्होंने देश की आज़ादी और संप्रभुता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।
1971 War: युद्ध का आरंभ
सेलिना ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “3 दिसंबर 1971। यह वह दिन है जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ। मेरे 21 वर्षीय पिता लेफ्टिनेंट विक्रम कुमार जेटली को अपनी पहली तैनाती के आदेश मिले। उस समय उन्हें और उनकी 17 कुमाऊं रेजिमेंट के साथियों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि वे इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने जा रहे हैं। उनकी बटालियन ने भदौरिया की लड़ाई में अद्भुत साहस दिखाया, लेकिन इस दौरान उन्हें भीषण नुकसान का सामना करना पड़ा।”
21 साल का जवान और युद्ध की चुनौती
सेलिना ने अपने पिता के शुरुआती संघर्षों को याद करते हुए बताया कि वे केवल 21 साल के थे, जब उन्होंने युद्ध के मैदान में कदम रखा। उन्होंने लिखा, “मैं अक्सर सोचती हूं कि उस वक्त मेरे पिता के दिमाग में क्या चल रहा होगा। क्या वे जान पाए थे कि उन्हें गंभीर चोटें लगेंगी और वे गोलियों और बम के टुकड़ों के घाव जीवनभर के लिए अपने साथ लेकर चलेंगे?”
“कालिका माता की जय !” (I begin with the Kumaon regiments war cry)
Today on 3rd Dec the 1971 war broke out. My 21-year-old newly commissioned father, Lt. Vikram Kumar Jaitly, must have received his orders for deployment. Little did he and his comrades of 17 Kumaon know, their… pic.twitter.com/oWJl3qa18b— Celina Jaitly (@CelinaJaitly) December 3, 2024
युद्ध के दौरान उनके पिता को गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी वीरता दिखाने के लिए दो “वाउंड मेडल” और बाद में “सेना मेडल” से सम्मानित किया गया। ये मेडल सिर्फ शारीरिक बलिदान की नहीं, बल्कि उनकी अदम्य मानसिक शक्ति की गवाही देते हैं।
कुमाऊं रेजिमेंट का साहस और गर्व
कुमाऊं रेजिमेंट का युद्धघोष “कालिका माता की जय” आज भी वीरता और बलिदान का प्रतीक है। सेलिना ने बताया कि उनके पिता हमेशा कहा करते थे, “एक कुमाऊंनी सैनिक का हिस्सा बनना, ‘क्रीड ऑफ द मैन-ईटर्स’ का हिस्सा बनना है।” उनके पिता ने अपनी बटालियन के आदर्श वाक्य “पराक्रमो विजयते” (पराक्रम ही विजय दिलाता है) को अपनी ज़िंदगी का मूल मंत्र बनाया।
1971 युद्ध और देश का गौरव
सेलिना ने अपनी पोस्ट में 1971 के युद्ध की अहमियत को भी रेखांकित किया। इस युद्ध में भारत ने लगभग 3,000 सैनिक खोए और 12,000 घायल हुए। उन्होंने लिखा, “यह युद्ध केवल भारत-पाक का नहीं था, यह हमारे सैनिकों की अदम्य साहस और बलिदान की गाथा है। यह देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए किया गया प्रयास था, जिसने 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश के निर्माण की ऐतिहासिक घटना को जन्म दिया।”
पिता की वीरता का सम्मान
सेलिना ने अपने पिता और उनके साथियों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “आज मैं अपने पिता कर्नल विक्रम कुमार जेटली (सेना मेडल) और 17 कुमाऊं के वीर जवानों, एनसीओ और अधिकारियों को सम्मानित करती हूं। उनका साहस और त्याग हमारे सशस्त्र बलों की वीरता की मिसाल है।”
बलिदान और प्रेरणा
सेलिना ने यह भी लिखा कि बचपन में वह अपने पिता को उनकी वर्दी और उस पर लगे मेडल्स के साथ देखा करती थीं। लेकिन आज, उनके बलिदान का वास्तविक महत्व समझ में आता है। उन्होंने कहा, “इन मेडल्स के पीछे की कहानियां और उनके बलिदान की गहराई को अब जाकर पूरी तरह से महसूस कर पा रही हूं।”
देशभक्ति और सेना का योगदान
सेलिना ने अपने पोस्ट के अंत में लिखा, “हम कभी भी उन बलिदानों को नहीं भूल सकते जो हमारे देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए दिए गए। आज, हम अपने सशस्त्र बलों को सलाम करते हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी ताकि हम शांति और स्वतंत्रता में जी सकें।”
1971 के नायक: एक प्रेरणा
सेलिना जेटली ने अपने पिता के साहस और बलिदान को साझा करते हुए 1971 युद्ध के सभी वीर सैनिकों को नमन किया। उनका यह पोस्ट हर भारतीय को देश के प्रति अपने कर्तव्य और सैनिकों के बलिदान को याद करने की प्रेरणा देता है।