Ukraine-US Minerals Deal: क्या जेलेन्स्की के जरिए चीन को साध रहे हैं ट्रंप? दुर्लभ खनिज भंडार हासिल करने के पीछे यह है खेल

By हरेंद्र चौधरी

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📍नई दिल्ली | 1 Mar, 2025, 3:35 PM

Ukraine-US Minerals Deal: यूक्रेन और अमेरिका के बीच दुर्लभ खनिजों और ऊर्जा संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर संभावित समझौता फिलहाल टल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की के बीच वॉशिंगटन में हुई तीखी बहस के बाद दोनों देशों के बीच इस समझौते को लेकर जारी बातचीत टल गई है। ट्रंप ने यूक्रेन को दी गई अमेरिकी सैन्य मदद को लेकर जेलेन्स्की की कृतज्ञता पर सवाल उठाए, जिसके बाद जेलेन्स्की समय से पहले बैठक छोड़कर निकल गए।

Ukraine-US Minerals Deal: Race for Rare Earth Reserves, Is Trump Countering China Through Zelenskyy

इस समझौते के तहत अमेरिका को यूक्रेन के खनिज संसाधनों तक पहुंच मिलने वाली थी। हालांकि, ट्रंप ने यह स्पष्ट किया था कि यह सौदा अमेरिकी टैक्सपेयर्स को यूक्रेन को दी गई सैन्य सहायता की भरपाई करने में मदद करेगा। दोनों देशों ने समझौते की प्रारंभिक शर्तों पर सहमति जता दी थी, लेकिन वॉशिंगटन में हुए विवाद के बाद इस पर अंतिम हस्ताक्षर नहीं हो सके।

Ukraine-US Minerals Deal: यूक्रेन में मिलते हैं ये रेयर अर्थ एलिमेंट्स

समझौते के मसौदे के मुताबिक अमेरिका को यूक्रेन के विशाल दुर्लभ खनिज (रेयर अर्थ मेटल्स) और ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच मिलती, जिससे यूक्रेन को आर्थिक पुनर्निर्माण में मदद मिलती। यूक्रेन यूरोप में सबसे अधिक दुर्लभ खनिज (Rare Earth Elements – REE) भंडार वाले देशों में से एक है। इसकी धरती में 22 ऐसे खनिज मौजूद हैं, जिन्हें यूरोपीय संघ ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना है। इनमें लिथियम, टाइटेनियम, ग्रेफाइट, ज़िरकोनियम जैसे खनिज शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, अंतरिक्ष और नवीकरणीय ऊर्जा में किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 तक यूक्रेन के दुर्लभ खनिज वैश्विक आपूर्ति का लगभग 5 फीसदी थे। खासतौर पर लिथियम, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी निर्माण में आवश्यक है, उसके 5,00,000 टन अज्ञात भंडार यूक्रेन में मौजूद हैं, जो इसे यूरोप के सबसे बड़े लिथियम उत्पादकों में शामिल कर सकता है। इसके अलावा यूक्रेन दुनिया के टाइटेनियम उत्पादन का 7 फीसदी हिस्सा रखता है, जिसका इस्तेमाल डिफेंस और एयरोस्पेस इंडस्ट्री में किया जाता है।

रूस के कब्जे वाले इलाकों में 40 फीसदी मेटल रिसोर्सेज

रूस ने 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण किया, अब तक देश के लगभग 20 फीसदी इलाके पर कब्जा कर चुका है, जिसमें खनिज संपदा से भरपूर लुहान्स्क, दोनेत्स्क, ज़ापोरिज़्ज़िया, डोनबास और खार्किव क्षेत्र शामिल हैं। इन इलाकों में यूक्रेन के 40 फीसदी मेटल रिसोर्सेज स्थित हैं, जो अब रूसी नियंत्रण में हैं। डोनबास में स्थित “शेवचेंको लिथियम फील्ड” को यूक्रेन का सबसे बड़ा लिथियम भंडार माना जाता है।

यूक्रेन सरकार का मानना है कि युद्ध के चलते न केवल आर्थिक नुकसान हुआ है, बल्कि हाई-टेक एंड डिफेंस सेक्टर को होने वाली ग्लोबल सप्लाई चेन भी प्रभावित हुई है।

Ukraine-US Minerals Deal: समझौते की प्रमुख शर्तें

ट्रंप प्रशासन ने एक रिकंस्ट्रक्शन इन्वेस्टमेंट फंड (Reconstruction Investment Fund) बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसमें यूक्रेन अपने खनिज संसाधनों से उत्पन्न राजस्व का 50 फीसदी योगदान करेगा। इसका उपयोग युद्ध से प्रभावित यूक्रेन के पुनर्निर्माण और बुनियादी ढांचे के विकास में किया जाएगा। हालांकि, बाकी 50 फीसदी का नियंत्रण किसके पास रहेगा और अमेरिका इसमें कितना प्रभाव डालेगा, यह अब भी स्पष्ट नहीं है।

राष्ट्रपति ट्रंप का दावा है कि अमेरिका को यूक्रेनी खनिज संसाधनों से $500 बिलियन (43.605 लाख करोड़ रुपये) की संभावित आय का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि युद्ध के दौरान दिए गए अमेरिकी सैन्य और वित्तीय सहायता की भरपाई हो सके। हालांकि, इस दावे पर ज़ेलेंस्की ने विरोध जताया है।

यूक्रेन को अब तक अमेरिका से कितनी सहायता मिली?

अमेरिका और यूक्रेन के बीच सहायता राशि को लेकर विवाद जारी है। ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका ने यूक्रेन को 350 बिलियन डॉलर (30,615 अरब रुपये) से अधिक की मदद दी है, जबकि यूक्रेन का कहना है कि वास्तविक सहायता इससे कहीं कम है।

कील इंस्टीट्यूट फॉर द वर्ल्ड इकोनॉमी के अनुसार, अमेरिका ने यूक्रेन को अब तक 118 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान की है, जबकि अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार यह आंकड़ा 183 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। जिसमें यूक्रेन की सैन्य आपूर्ति को फिर से शुरू करने की लागत भी शामिल है।

Ukraine-US Minerals Deal: 20,000 खनिज खदानें

युद्ध से पहले, यूक्रेन में कुल 20,000 खनिज खदानें थीं, जिनमें से 8,700 खनिज भंडारों की पुष्टि हो चुकी हैं। देश में मौजूद 120 महत्वपूर्ण खनिजों में से 117 खनिज पाए जाते हैं, जिससे यह खनिज संपदा के मामले में विश्व के शीर्ष देशों में शामिल होता है।

रूस के कब्जे में यूक्रेन का वह हिस्सा है जहां अधिकांश दुर्लभ खनिज मौजूद हैं। इन क्षेत्रों में मौजूद टाइटेनियम, निकेल, कोयला, लौह अयस्क और यूरेनियम भंडार पर रूस का नियंत्रण है, जिससे वह ग्लोबल मिनरल सप्लाई पर खासा असर डाल सकता है। कहा जाता है कि रूस का लुहान्स्क और दोनेत्स्क पर कब्जा करने की एक प्रमुख वजह वहां मौजूद दुर्लभ खनिज और धातु संसाधन भी है।

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यूक्रेन सरकार के अनुसार, इन खनिज संसाधनों की अनुमानित कीमत ट्रिलियन डॉलर से अधिक है, लेकिन युद्ध के चलते यूक्रेन इनका पूरी तरह दोहन नहीं कर पा रहा है।

  • लुहान्स्क और दोनेत्स्क: लिथियम, कोयला और दुर्लभ धातुओं के बड़े भंडार
  • ज़ापोरिज़िया और निप्रोपेत्रोवस्क: लौह अयस्क, मैंगनीज और टाइटेनियम
  • खार्किव और पोल्टावा: गैस और तेल के महत्वपूर्ण भंडार

दुनिया में दुर्लभ खनिजों के सबसे बड़े भंडार

अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (USGS) के अनुसार, 2025 तक निम्नलिखित देशों के पास सबसे बड़े दुर्लभ खनिज भंडार हैं:

  • चीन – 44 मिलियन मीट्रिक टन (ग्लोबल सप्लाई का 70% कंट्रोल)
  • ब्राजील – 21 मिलियन मीट्रिक टन
  • भारत – 6.9 मिलियन मीट्रिक टन
  • ऑस्ट्रेलिया – 5.7 मिलियन मीट्रिक टन
  • रूस – 3.8 मिलियन मीट्रिक टन
  • वियतनाम – 3.5 मिलियन मीट्रिक टन
  • अमेरिका – 1.9 मिलियन मीट्रिक टन
  • ग्रीनलैंड – 1.5 मिलियन मीट्रिक टन
  • तंजानिया – 890,000 मीट्रिक टन
  • दक्षिण अफ्रीका – 860,000 मीट्रिक टन
  • कनाडा – 830,000 मीट्रिक टन

चीन और रूस के दुर्लभ खनिज बाजार पर कंट्रोल चाहता है अमेरिका

यदि अमेरिका और यूक्रेन के बीच समझौता होता है, तो यह ग्लोबल मिनरल सप्लाई और अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डाल सकता है। वहीं, अगर यूक्रेन अपने खनिज संसाधनों का सही तरीके से दोहन कर पाया, तो वह यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन सकता है। लेकिन युद्ध के हालात और रूस के कब्जे के चलते इसमें अभी लंबा वक्त लग सकता है। अमेरिका और यूक्रेन के बीच प्रस्तावित समझौता सफल होता है, तो इससे यूक्रेन को आर्थिक पुनर्निर्माण में मदद मिलेगी।

हालांकि, इस समझौते को लेकर यूक्रेन में भी मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यूक्रेन को अपने संसाधनों पर पूरी संप्रभुता बनाए रखनी चाहिए और इसे बाहरी दबाव में नहीं बेचना चाहिए।

दूसरी ओर, अमेरिका इस डील को अपनी भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मान रहा है, जिससे वह चीन और रूस के दुर्लभ खनिज बाजार पर कंट्रोल हासिल कर सके। हालांकि अगले कुछ महीनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि क्या अमेरिका और यूक्रेन के बीच इस समझौता असलियत में तब्दील होता है, या फिर यह भू-राजनीतिक विवादों का एक और शिकार बन जाएगा। लेकिन यह निश्चित है कि यूक्रेन के खनिज संसाधन न केवल इसके आर्थिक भविष्य के लिए बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण बने रहेंगे।

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