📍नई दिल्ली | 23 Apr, 2025, 7:11 PM
Pahalgam Terror Attack: 22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला न केवल आतंकी इतिहास की सबसे दर्दनाक हिंसक घटना थी, बल्कि यह ग्लोबल और रीजनल ज्यो-पॉलिटिक्स के एक बड़े खेल का हिस्सा भी था। इस हमले में 28 लोगों की जान गई और दर्जनों घायल हुए। यह केवल एक सामान्य आतंकी हमला नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई प्रतीकात्मक संदेश भी छिपे हैं, जिससे पता चलता है कि आतंकियों के मंसूबे क्या हैं, जो कश्मीर की वादियों से आगे की कहानी बयां करते हैं। इस हमले के पीछे की कहानी को समझने के लिए हमें वैश्विक शक्ति संतुलन, रीजनल ज्यो-पॉलिटिक्स और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को विदेश नीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की पुरानी रणनीति को गहराई से देखना होगा।
Pahalgam Terror Attack: पाकिस्तान का आतंक प्रेम और सेना प्रमुख की “टाइमिंग”
पहलगाम हमले से एक हफ्ते पहले ही पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनिर ने एक भड़काऊ भाषण दिया था। इस भाषण में उन्होंने दो-राष्ट्र सिद्धांत (Two Nation Theory) का जिक्र किया और कश्मीर को पाकिस्तान की “जुगुलर वेन” (जीवन रेखा) करार दिया। यह महज केवल भाषण नहीं था, बल्कि यह उन आतंकी संगठनों के लिए एक स्पष्ट संदेश था, जिन्हें पाकिस्तान लंबे समय से खाद-पानी देता रहा है। हमले की जिम्मेदारी लेने वाले लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटे द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने इस संदेश को तुरंत समझ लिया।
पाकिस्तान की आधिकारिक प्रतिक्रिया और भी चौंकाने वाली थी। हमले की निंदा करने के बजाय, इस्लामाबाद ने इसे “स्थानीय लोगों का सरकार के खिलाफ विरोध” बताने की कोशिश की। उन्होंने एक बार फिर आतंक को क्रांति और हिंसा को एक्टिविज़्म की चादर में लपेटने की कोशिश की। लेकिन पाकिस्तान का यह दावा तब और कमजोर पड़ गया, जब यह जानकारी सामने आई कि चार हमलावरों में से तीन विदेशी यानी पाकिस्तानी थे। जनरल आसिफ मुनिर का भाषण और उसके बाद हमला, यह महज संयोग नहीं है।
Pahalgam Terror Attack: सऊदी अरब और भारत की बढ़ती नजदीकियां
जब हमला हुआ तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सऊदी अरब की यात्रा पर थे। भारत और सऊदी अरब के बीच रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी पिछले कुछ वर्षों में तेजी से मजबूत हुई है। यह नजदीकियां पाकिस्तान को रास नहीं आ रहीं थीं। क्योंकि पाकिस्तान आज भी हर मामले में खाड़ी देशों के नैतिक और वित्तीय समर्थन पर निर्भर है।
पहलगाम हमला ठीक उसी समय हुआ, जब मोदी सऊदी नेतृत्व के साथ अहम बातचीत कर रहे थे। यह हमला भारत की कूटनीतिक पहल को अस्थिर करने और सऊदी अरब के सामने भारत को शर्मसार करने की कोशिश थी। इसके जरिए पाकिस्तान ने सऊदी अरब को यह संदेश देने की कोशिश की कि वह अभी भी दक्षिण एशिया में अस्थिरता पैदा करने की ताकत रखता है। साथ ही, सऊदी अरब को एक अप्रत्यक्ष संदेश देने की कोशिश थी कि “भारत के साथ दोस्ती के नतीजे क्या हो सकते हैं।” लेकिन पाकिस्तान यह भूल गया कि उसकी अर्थव्यवस्था संकट में है, उसकी अंतरराष्ट्रीय साख गिर चुकी है, और वह खाड़ी देशों के रहमोकरम पर है।
📜READ: What the Centre said while banning The Resistance Front (TRF) #Pahalgam
The Ministry of Home Affairs officially designated The Resistance Front (TRF) as a terrorist organization under the Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967. The decision, notified on January 5,… pic.twitter.com/XKcyD2JO3V
— Raksha Samachar | रक्षा समाचार 🇮🇳 (@RakshaSamachar) April 23, 2025
Pahalgam Terror Attack: गले नहीं उतर रही अमेरिका-भारत की दोस्ती
जब यह हमला हुआ तो अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत की यात्रा पर थे। हालांकि उनकी यह यात्रा व्यापार और रक्षा के क्षेत्र में भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने के लिए थी। पिछले कुछ सालों में दोनों देशों के बीच यह साझेदारी लगातार गहरी हुई है, जो पाकिस्तान और चीन को फूटी आंख नहीं सुहाा रहा है।
यह हमला अमेरिका के लिए भी एक संदेश था। पाकिस्तान ने इस हमले के जरिए अमेरिका को यह बताने की कोशिश की कि “कश्मीर अभी भी एक संवेदनशील मुद्दा है, और भारत जितना अमेरिका के करीब जाएगा, उतना ही अस्थिरता की आशंका बढ़ेगी।” वह चाहता था कि कश्मीर मुद्दा फिर से उछले और भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा हो। लेकिन इस बार भी पाकिस्तान की रणनीति उलटी पड़ गई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी को पूर्ण समर्थन का भरोसा दिया, और व्हाइट हाउस ने पुष्टि की कि दोनों नेताओं के बीच जल्द ही फोन पर बात होगी।
Pahalgam Terror Attack: फेल हुई ‘राजनीति-ए-आतंक’
पहलगाम हमला इस बात का सबूत है कि पाकिस्तान अभी भी आतंकवाद को अपनी विदेश नीति को एक हथियार के तौर पर जारी रखे हुए है। लेकिन यह रणनीति अब पुरानी पड़ चुकी है। पाकिस्तान को शायद यह समझना होगा कि आतंकवाद अब केवल एक “नॉन-स्टेट एक्टर्स” का मामला नहीं रह गया है। आज की दुनिया इसे एक “रोग्य स्टेटक्राफ्ट” यानी असफल राष्ट्र की नीति के रूप में देखती है। पहलगाम जैसे हमलों को अंजाम देकर या इनका समर्थन करके, पाकिस्तान केवल अपनी कूटनीतिक विश्वसनीयता को और कमजोर कर रहा है।
आज पूरी दुनिया आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है। भारत जैसे देश, जो आतंकवाद का दंश लंबे समय से झेल रहे हैं, अब इस खतरे से निपटने के लिए पहले से कहीं ज्यादा तैयार हैं। भारत ने न केवल अपनी सैन्य और खुफिया क्षमताओं को मजबूत किया है, बल्कि वह वैश्विक मंच पर भी आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत आवाज बनकर उभरा है।
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पहलगाम के हमले का मतलब
पहलगाम हमले में न केवल निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया, बल्कि भारत के एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल और अमरनाथ यात्रा के रास्ते को भी निशाना बनाना था। आतंकियों ने यह जगह सोच-समझकर चुनी, ताकि इस हमले के जरिए धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाए, पर्यटन पर चोट की जाए और देश के भीतर सांप्रदायिक तनाव को हवा दी जाए।